अजय सेतिया / हरियाणा और राजस्थान से कुछ खबरें प्रोत्साहित करने वाली हैं , जिन में कहा गया है कि किस तरह धर्म परायण धनाढ्य परिवारों ने अपने शहरों के हजारों के पेट भरने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा कर सरकार और प्रसाशन को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए मुक्त कर दिया है | दिल्ली में भी जगह जगह भोजन वितरण में धार्मिक संस्थाओं और गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका सरकार से कहीं ज्यादा दिखाई दे रही है |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को ट्विट कर के कहा कि दूसरों की मदद करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है | मोदी सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं के जी-जान से लग जाने से अभिभूत हैं , क्योंकि इस से सरकारें बीमारी का इलाज करने में ज्यादा बड़ी भूमिका निभा पाएंगी | उन्होंने समाज सेवा में जुटे साधू संतों , धार्मिक गुरुओं का भी आभार जताया है | सरकारी दावे चाहे चार लाख को रोज भोजन करवाने के हों या छह लाख को भोजन करवाने के ,जमीन पर तो सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं और व्यक्तिगत भूमिकाएं ही ज्यादा दिख रही हैं | इन का सेवा भाव देख कर भारत के पुराने दिन लौट आए दिखाई देते हैं , जहां नर सेवा ही नारायण सेवा माना जाता रहा |
डाक्टर , नर्सें , पुलिस वाले और आंगनबाडी की कार्यकर्ता भी मानव सेवा में जी-जान से लगे हैं | इन चारों तरह के सरकारी कर्मचारियों का मानवता की सेवा करने वाला रूप पहली बार सामने आया है , दिन रात एक कर के हम सब की सेवा में जुटे हैं कि किसी तरह कोरोना वायरस हम तक न पहुंच पाए और जिन को कोरोना ने जकड़ लिया है , उन को कैसे बचाया जा सके | जहां इस तरह की खबरें भाव विभोर करती हैं , वहीं कुछ खबरें मनुष्य के दानव बन जाने वाली भी हैं , जो निश्चित रूप से विचलित करती हैं | जिन डाक्टरों और नर्सों का आभार जताने के लिए 22 मार्च और 5 अप्रेल को भारत की जनता ने तालियाँ , थालियाँ बजाई और दीपक जलाए , उन्हीं नर्सों डाक्टरों के साथ कुछ जगह पर अमानवीय व्यवहार किए जाने की खबरें भी आई हैं |
इंदौर और अन्य कई शहरों में जिस तरह डाक्टरों पर हमला हुआ , दिल्ली –गाजियाबाद में जिस डाक्टरों पर थूका गया ये सब खबरें मनुष्य के दानव बन जाने की ओर इशारा करती हैं | कुछ दिन पहले एक पुलिस कर्मी का फोटो वायरल हुआ था , जो अपने घर जा कर भी इस डर से अपनी बच्ची को गले नहीं लगा रहा क्योंकि उसे डर है कि फिल्ड ड्यूटी के कारण कहीं वह वायरस की चपेट में आ गया होगा तो उस की बेटी भी बीमार पड जाएगी | दोनों बाप-बेटी रूंधे गले से एक दुसरे को देख रहे हैं | इस तस्वीर ने पत्थर दिल इंसान को भी पिघला दिया था |
अब कर्नाटक से आए एक वीडियो ने सभी को भाव विभोर कर दिया है , जिस में अपनी मां से मिलने के लिए बेकरार एक छोटी-सी बच्ची दूर से अपनी मां को देख कर रोती दिखाई दे रही है | सुगंधा नाम की यह नर्स उत्तर कर्नाटक में बेलागवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के कोविड-19 वार्ड में पिछले 15 दिनों से बिना घर गए अस्पताल में सेवा में जुटी है | उस की तीन साल की बेटी मां से मिलने की जिद्द करती है तो बच्ची का पिता उसे मोटर साईकिल पर बिठा कर अस्पताल ले जाता है | मां अस्पताल के गेट पर बाहर आती है , लेकिन वह भी उसी डर से बेटी के पास जा कर उसे गले नहीं लगाती | बेटी को देख कर मां बिलख रही है और सामने देख कर भी मां से मिलने नही दिया जाता तो बच्ची चिल्ला रही है | नर्स के समर्पण और मां तथा बच्चे के बीच दूरी ने लोगों का दिल छू लिया |
यह सबूत है कि डाक्टर और नर्स किस लग्न से अपने काम में जुटे हैं , और एक दूसरा वीडियो दिल्ली का है , जो बताता है कि हम कितने स्वार्थी हो गए हैं | दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल की दो महिला रेसीडेंट डॉक्टरों पर उनके पड़ोसियों ने बुधवार रात इस लिए हमला कर दिया क्योंकि वे दोनों फ्रूट लेने घर से बाहर निकली थीं | पड़ोसियों ने इन दोनों डॉक्टरों पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाते हुए इन पर चिल्लाना शुरू कर दिया और मार-पीट तक की |
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