अजय सेतिया / जब से भारत के ग्यारह राज्यों में तबलीगी जमात के कारण बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस फैलने की खबर आई है तब से तबलीगी जमात कोतुहल का विषय बन गई है | कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने ट्विट में लिखा है कि उम्मींद करनी चाहिए कि इस संगठन का किसी अवांछित संगठन से सम्बन्ध नहीं होगा | उन के कहने का आशय है कि उम्मींद करनी चाहिए कि तबलीगी जमात का इस्लामिक आतंकवादी संगठन से सम्बन्ध नहीं होगा | हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि तबलीगी जमात आतंकवादी संगठनों से भी ज्यादा खतरनाक है , क्योंकि यह इस्लामिक कट्टरता को बढावा देती है , मोहम्मद के जमाने वाली शाषण की खलीफा पद्दति को वापस लाना चाहती है और दुनिया भर में शरीयत लागू करवाना तबलीगी जमात का उद्देश्य है |
तबलीगी जमात की वेबसाईट कहती कहती है –“ तबलीगी जमात एक इस्लामिक मिशनरी मूवमेंट है , जो मुसलमानों को प्रेरित करती है कि इस्लाम को इसी तरह अपनाया जाना चाहिए , जैसा पैगम्बर मोहम्मद के समय में अपनाया जाता था , खासकर मजहबी प्रक्रिया , चाल ढाल और व्यक्तिगत व्यवहार | ” वेबसाईट यह भी कहती है कि जमात गठन 1927 में उस समय जब हिन्दुओं में नवजागृति आ रही थी , वे संगठित हो रहे थे और इस्लाम व ईसाईत कबूल करने वालों को वापिस हिन्दू धर्म में लाने के लिए शुद्धिकरण चल रहा था | शायद उन का इशारा आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ की ओर है | 1885 में आर्य समाज का गठन होने के बाद आर्य समाज ने शुद्धिकरण आन्दोलन चलाया था और हिन्दुओं को संगठित करने के लिए 1925 में आरएसएस का गठन हो चुका था |
तबलीगी जमात का गठन मेवात में रहने वाले मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने 1927 में किया था , मेवात में राजपूत मुस्लिम बने थे और आर्य समाज के प्रभाव में दुबारा हिन्दू बन रहे थे | हालांकि तबलीगी जमात की वेबसाईट कहती है कि यह अध्यात्मिक संगठन है , इस का राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है , लेकिन इसी वेबसाईट में यह भी कहा गया है कि इस्लामिक राजनीतिक पतन और मराठों के उदय और उस के बाद ब्रिटिश राज स्थापित होने के कारण भारत में इस्लामिक पुनरोदय के लिए जमात का गठन हुआ |
निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का मुख्यालय मुहम्मद इलियास के समय में ही बन गया था | नवम्बर 1941 में जमात की पहली मरकज में 25000 लोग शामिल हुए थे | भारत की आज़ादी के बाद यह आन्दोलन दुनिया के बाकी देशों में भी फैला और अब 155 देशों में इस का फैलाव है | सारा साल यहाँ धार्मिक क्लासें चलती है , जिस में तीन दीन , पांच दिन , दस दिन , 40 दिन और 120 दिन तक के कार्यक्रम चलते हैं | जो जितने दिन के कार्यक्रमों में ट्रेनिंग लेता है , वह उसी तरह फिर प्रचार के लिए निकलता है | मार्च में मरकज होता है , जिस में सात-आठ हजार लोग शामिल होते हैं | इस साल भी पहली मार्च से 31 मार्च तक 8000 से ज्यादा लोगों ने मरकज में शामिल हुए थे |
इस साल मरकज में शामिल होने वालों में 311 विदेशी थे , सब से ज्यादा लोग 1500 तमिलनाडू से आए थे | सवाल यह उठ रहा है कि जब सारी दुनिया में कोरोनावायरस का खौफ था तो मरकज को स्थगित क्यों नहीं किया गया | चीन ने 20 जनवरी को आदमी से आदमी तक महामारी फैलने की बात कबूल कर ली थी और उस के बाद से दुनिया भर के देशों से कोरोना वायरस की खबरें आने लगी थी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली मार्च को एलान कर दिया था कि कोरोना वायरस के कारण वह होली नहीं मनाएंगे | उन्होंने सभी से होली नहीं मनाने की अपील भी की थी | जब हिन्दू अपना सब से बड़ा त्यौहार मनाना ताल सकते हैं , तो मुसलमानों के दिमाग में ऐसी बात क्यों नहीं आती , कम से कम नकल तो की जा सकती है | हिन्दुओं ने अपने सारे मंदिर बंद कर दिए , लेकिन कोई मस्जिद बंद नहीं की गई , जबकि सऊदी अरब ने भी 3 मार्च को “उमरा” की तीर्थ यात्राओं को स्थगित कर दिया था |
सवाल यह भी है कि आज़ादी के बाद से लगातार मुस्लिम बड़ी तादाद में पर्यटन का वीजा ले कर भारत कैसे आ रहे हैं | क्या कोई सरकारी एजेंसी निगाह नहीं रखती कि इतनी बड़ी तादाद में पर्यटन का वीजा लेने के बाद वे जाते कहाँ कहाँ हैं या जितनी देर का वीजा लेते हैं उतनी देर एक ही बिल्डिंग में पड़े रहते हैं | सरकार बदलने के बाद भी तो निजाम छह साल से सौ ही रहा था , कोरोनावायरस न होता तो निजाम सोया ही रहता कि क़ानून की बारीकियों का कैसे फायदा उठाया जा रहा था और पर्यटन के नाम पर धार्मिक प्रचार की ट्रेनिग हो रही थी |
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