भाजपा ने महाराष्ट्र का बदला मध्य प्रदेश में लिया

Publsihed: 20.Mar.2020, 19:01

अजय सेतिया / माधव राव सिंधिया जो नहीं कर पाए थे , वह उन के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कर दिखाया है | 1989 में कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के राजनीतिक आका अर्जुन सिंह ने माधव राव सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया था , जबकि कांग्रेस आला कमान यानी राजीव गांधी उन्हें मुख्यमंत्री बनवाने के पक्ष में थे | तब कमल नाथ और दिग्विजय सिंह का इतना कद नहीं था कि उन में से कोई अर्जुन सिंह के वारिस के तौर पर मुख्यमंत्री बनता | इस लिए अर्जुन सिंह ने मोटी लाल वोरा को मुख्यमंत्री बनवा दिया था , जिन की रहनुमाई में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा सत्ता में आ गई थी |

2019 के चुनाव के बाद माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने के पूरे चांस थे , क्योंकि तब के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव की बागडोर उन्हीं के हाथ एन सौंपी थी | लेकिन तीस साल बाद अर्जुन सिंह के दोनों चेले फिर इक्कठे हो गए और सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया | इस बार न सिर्फ ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया , बल्कि राजनीति की इसी बिसात बिछाई कि उन्हें लोकसभा का चुनाव भी हरवा दिया | एक तरह से ज्योतिरादीय की राजनीतिक बर्बादी की पटकथा लिखी जा रही थी |

ज्योतिरादित्य को लगा कि राहुल कमजोर पद गए हैं और अब कांग्रेस में उन का बचाव करने वाला कोई नहीं है | इस लिए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का वह सब से बड़ा फैसला लिया जो उन के पिटा माधवराव सिंधिया 1989 में नहीं ले सके थे | उन्होंने अपनी दादी और दोनों बाओं की पार्टी यानी भारतीय जनता में शामिल हो कर एक तीर से कई निशाने साध दिए | कमल नाथ और दिग्विजय सिंह को धूल चटा दी , ग्वालियर सम्भाग पर अपना नियन्त्रण बनाए रखने के लिए अपने समर्थक 22 विधायकों का टिकट पक्का करवा कर भाजपा का मजबूत किला बनवा दिया और खुद के भी मोदी सरकार में मंत्री बनने का रास्ता भी खोल लिया |

हालांकि निकट भविष्य में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा की ओर से मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री की कोई सम्भावना नही दिखती , लेकिन जल्द ही भाजपा में उन का कद काफी ऊंचा हो जाएगा | शुक्रवार को कमल नाथ के इस्तीफा देने के बाद शिव राज सिंह विधायक दल के नेता इस लिए नहीं चुने जा सके क्योंकि ज्योतिरादित्य भोपाल नहीं पहुंच पाए थे | यह उन का महत्व दर्शाता है हालांकि अब जिन भाजपा विधायकों के बूते शिव राज सरकार बनने जा रही है , उन में ज्योतिरादित्य समर्थक एक भी विधायक नहीं है | सुप्रीमकोर्ट की ओर से 24 घंटों के भीतर उन के इस्तीफे मंजूर या नामंजूर किए जाने के निर्देश के बाद स्पीकर ने सभी विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए हैं |

सवाल है कि अगर कांग्रेस आलाकमान कमल नाथ की बजाए ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाता तो क्या कांग्रेस की सरकार पांच साल चल सकती थी ? नहीं क्योंकि जैसे अन ज्योतिरादित्य ने कमलनाथ की सरकार गिराई है , वैसे ही दिग्विजय सिंह और कमल नाथ मिल कर ज्योतिरादित्य की सरकार गिरवा देते | कमल नाथ ने तो डेढ़ साल सरकार  चला ली , लेकिन ज्योतिरादित्य की सरकार वे छह महीने भी नहीं चलने देते | कमल नाथ ने मुख्यमंत्री बन जाने के बाद ज्योतिरादित्य की घोर उपेक्षा न की होती तो वह पांच साल पूरे भी कर सकते थे |

अगर कांग्रेस आला कमान राज्य सभा चुनाव में भी सिंधिया को प्रथम उम्मीन्द्वार बना लेता तो भी शायद कांग्रेस में विभाजन नहीं होता | लेकिन दिग्विजय सिंह और कमलनाथ ने मिल कर सिंधिया को किनारे करने की रणनीति के तहत प्रथम उम्मीन्द्वार नहीं बनने दिया , तो ज्योतिरादित्य के सब्र का प्याला भर गया | सिंधिया के भाजपा में जाने और उन के खेमें के 22 विधायकों के इस्तीफे ने तय कर दिया था कि कमल नाथ सरकार कुछ दिन की मेहमान है , लेकिन दिग्विजय सिंह और कमल नाथ उन विधायकों को मनाने की कोशिश करते रहे | स्पीकर ने 22 में से 16 विधायकों के इस्तीफे मंजूर न कर के कमल नाथ की बहुत दिन तक मदद की ,लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने स्पीकर को 24 घंटे में फैसला करने के निर्देश दे दिए और कमल नाथ को भी 24 घंटे में बहुमत साबित करने को कहा तो कमल नाथ का सारा खेल खत्म हो गया | कमल नाथ ने विधानसभा का सामना करने की बजाए प्रेसकांफ्रेंस में ही इस्तीफे का एलान कर दिया | इस तरह भाजपा ने महाराष्ट्र का बदला ले लिया जहां कांग्रेस और एनसीपी ने शिवसेना को समर्थन दे कर उस की सरकार बनवा दी थी और भाजपा चुनाव जीतने के बावजूद मुहं देखती रह गई थी |

 

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