नवीन पटनायक के रास्ते पर केजरीवाल

Publsihed: 16.Feb.2020, 15:03

अजय सेतिया  / अरविंद केजरीवाल ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर के तिकडमी राजनीति के झंडे गाड  दिए हैं | जो लोग यह समझते थे कि अन्ना हजारे के आन्दोलन से उठा बुलबुला है , झाग की तरह बैठ जाएगा , उन का आकलन गलत साबित हुआ | अलबत्ता केजरीवाल को आँखे दिखाने वाले प्रशांत भूषण , योगेन्द्र यादव , मयंक गांधी , प्रो.आनन्द कुमार झाग की तरह बैठ गए | केजरीवाल ने लोकपाल बनाने का अन्ना हजारे का सपना चकनाचूर कर दिया  ,बहुतेरे लोगों ने अन्ना हजारे के कान भर कर केजरीवाल के खिलाफ बयान भी दिलवाए ,पर अन्ना हजारे का विरोध भी केजरीवाल का कुछ नहीं बिगाड़ सका |

भाजपा से ज्यादा झटका तो कुमार विशवास को लगा है , जो यह समझ रहे थे कि केजरीवाल 2015 में उन के चुनाव प्रचार के कारण जीते थे | वह तो यह भी कह रहे थे कि केजरीवाल ने क्योंकि उन्हें पंजाब में चुनाव प्रचार के लिए नहीं भेजा , इसलिए आम आदमी पार्टी वहां चुनाव हार गई | कुमार विशवास के साथ आशुतोष को भी बड़ा झटका लगा है, दोनों राज्यसभा सदस्यता न मिलने के कारण आम आदमी पार्टी छोड़ गए थे | किरन बेदी तो खैर अरुण जेटली के माध्यम से भाजपा में शामिल हो कर उपराज्यपाल बन गई , लेकिन शाजिया ईल्मी , विनोद कुमार बिन्नी और कपिल मिश्रा के सितारे अभी गर्दिश में ही हैं |   

अन्ना हजारे के साथ जुड़ने से पहले केजरीवाल शहरी नक्सलियों के टोले में शामिल एनजीओ वाले थे , इसी नाते उन्हें मैगासेसे पुरस्कार भी मिला | केजरीवाल जब राजनीति में उतरे थे तो वामपंथी विचारधारा के सभी बुद्धिजीवियों , पत्रकारों ने उन के पक्ष में लिखना शुरू कर दिया था | फोर्ड से फंडिंग वाले सभी एनजीओ 2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल के लिए काम कर रहे थे | जेएनयू में नक्सलियों के समर्थक माने जाने वाले प्रोफेसर टीवी चेनलों पर केजरीवाल के समर्थन में बहस करते थे | 2014 का लोकसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद केजरीवाल ने विपक्षी दलों के साथ मंच साझा करना शुरू किया , कांग्रेस और वामपंथियों की तरह ही उन की राजनीति भी मुस्लिम परस्त की होने लगी | दिल्ली की मस्जिदों के मौलवियों को सरकार से वेतन मिलने लगा |

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव ने सारी स्थिति को बदल दिया | राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति 2014 से भी ज्यादा प्रभाव दिखाने लगी तो मोदी 282 से 303 पर पहुंच गए , वहीं से केजरीवाल ने अपनी राजनीति बदलना शुरू किया | उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलना बंद कर दिया और संसद में 370 हटाए जाने का समर्थन किया | कांग्रेस और वामपंथियों से सार्वजनिक किनारा कर लिया | नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ शाहीन बाग़ के मुस्लिम धरने को पर्दे के पीछे से समर्थन दे कर खुद हनुमान भक्त बन गए | इस तरह अपने मुस्लिम और मुफ्त बिजली,पानी , शिक्षा , स्वास्थ्य वाले निम्न वर्गीय वोट बैंक को बरकरार रखते हुए अपर कास्ट हिन्दू वोट बैंक , खासकर अपनी बनिया जाति के वोटबैंक को भी मोदी के खेमे में जाने से रोका |

अब उन की राजनीति पूरी तरह बदल गई है | रविवार को शपथ ग्रहण में उन का भाषण इस का सबूत है | इस भाषण से संकेत मिलते हैं कि वह सॉफ्ट हिंदुत्व ही नहीं बल्कि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तरह सॉफ्ट भाजपा समर्थक की राजनीति भी कर सकते हैं | बीजू जनता दल एनदीए में नहीं है , लेकिन हर मुद्दे पर भाजपा का साथ दे रहा है , नागरिकता संशोधन क़ानून पर भी साथ दिया था | केजरीवाल ने  वामपंथियों सहित किसी भी विपक्षी नेता को अपने शपथ ग्रहण समारोह में नहीं बुलाया , लेकिन नरेंद्र मोदी को न्योता भेजा | मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के बाद जनता को संबोधित करते हुए  केजरीवाल ने कहा " हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शपथ ग्रहण के लिए न्योता भेजा था, लेकिन वाराणसी में उनका कार्यक्रम था,  इसलिए वह नहीं आ पाए | मैं केंद्र सरकार के साथ मिलकर दिल्ली को आगे ले जाना चाहता हूं... दिल्ली को दुनिया का नंबर एक शहर बनाना चाहता हूं | ऐसे में मैं प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्रियों से चाहता हूं कि दिल्ली को आगे ले जाने के लिए हमें आशीर्वाद दें |” सिर्फ एक साल पहले केजरीवाल से इस भाषा की उम्मींद कौन करता था |

 

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