अपन को येदुरप्पा का पंद्रह अगस्त वाला बयान नहीं भूलता। उनने कहा था- 'अगली बार बेंगलूर में झंडा मैं फहराऊंगा।' येदुरप्पा बहुत जल्दी में थे। पंद्रह अगस्त से भी पहले उनने बचकानी हरकत की। जब उनतीस जुलाई को विधानसभा में कहा- 'तीन अक्टूबर से मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठूंगा।' यह बात उनने बगल में बैठे कुमारस्वामी की मौजूदगी में कही। जैसे कुमारस्वामी को कुर्सी खाली करने के लिए चिढ़ा रहे हों। स्याने लोग इतनी जल्दबाजी नहीं दिखाते।
येदुरप्पा राजनीति के जरा भी समझदार होते। तो गौड़ा बाप-बेटे का धर्मसिंह को दिया गया धोखा याद रखते। छाछ को भी फूंक मारकर पीते। पर उनने गरम-गरम दूध हलक से उतार अपना गला जला लिया। तीन अक्टूबर तो निकल गई। येदुरप्पा ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी। येदुरप्पा को तो छोड़िए। राजनाथ सिंह भी बा-उम्मीद। बुधवार को बोले- 'शुक्रवार को मेरी देवगौड़ा से बात होगी।' अब इसमें भारी कंफ्यूजन। देवगौड़ा ने बेंगलूर में कहा- 'राजनाथ से मेरी चार अक्टूबर को बात होगी।' देवगौड़ा आज दिल्ली आएंगे। यह तो तय। शुक्रवार को जेडीएस पीएसी की मीटिंग बुला रखी है। पर उससे पहले आज बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड की मीटिंग। देवगौड़ा तो बोर्ड मीटिंग के बाद ही दिल्ली आएंगे। सो देवगौड़ा से दो टूक बात से पहले बोर्ड मीटिंग फिजूल। देवगौड़ा को किसी ने समझाया था। पांच अक्टूबर निकल गया। तो कुमारस्वामी सीएम बने रहेंगे। सो उनने पांच अक्टूबर तक की मोहलत मांग ली। अपने राजनाथ सिंह ने दे भी दी। देवगौड़ा ने कहा था- 'दस अक्टूबर तक पितृ पक्ष। बीजेपी का धर्म-कर्म में ज्यादा विश्वास। सो पितृ पक्ष में शपथ ग्रहण न हो। तो अच्छा।' इस पर येदुरप्पा ने सही फरमाया- 'मेरी ईश्वर में पूरा भरोसा। पर देवगौड़ा पर नहीं।' गौड़ा परिवार भरोसे लायक होता। तो ट्वंटी-20 महीने खेलने का वचन निभाता। पर कुमारस्वामी का अभी और बैटिंग का इरादा। गौड़ा परिवार को अब कांग्रेस पर भरोसा। कांग्रेसियों में दो तरह की राय। एक राय- 'देवगौड़ा भरोसे लायक नहीं। वह पहले भी धोखा दे चुके। वैसे भी जनता देवगौड़ा से खफा। सो चुनाव का बेहतरीन मौका।' दूसरी राय- 'बीजेपी को पॉवर में नहीं आने देना चाहिए। सो बीजेपी-जेडीएस गठबंधन तोड़ने का बढ़िया मौका। हाथ से न जाने दें।' पर दूसरी राय को ज्यादा समर्थन नहीं। नए-नए महासचिव पृथ्वीराज चव्हाण बोले- 'कांग्रेस की पैनी निगाह। तेल देखिए, तेल की धार देखिए।' जयंती नटराजन बोली- 'फिलहाल हमारी कोई भूमिका नहीं। हमारी हालात पर पैनी निगाह।' वैसे जब तक सोनिया न्यूयार्क से न लौटें। तब तक कांग्रेसी कुछ कहने की हालत में भी नहीं। क्या पता सोनिया आकर क्या फैसला करें। यों जब अगस्त में ही देवगौड़ा के तेवर दिखने लगे। तो सत्रह अगस्त को तीस कांग्रेसी एमएलए दिल्ली आए थे। जो आलाकमान को देवगौड़ा से बचकर रहने की सलाह देकर गए। अपन याद करा दें। पिछले साल जनवरी में येदुरप्पा दिल्ली से हरी झंडी लेकर गए। कुमारस्वामी-येदुरप्पा में ट्वंटी-20 पर सहमति हुई थी। अट्ठारह जनवरी को धर्मसिंह सरकार धर्मसंकट में पड़ी। कुमारस्वामी ने सारे एमएलए गोवा भेज दिए। येदुरप्पा ने चेन्नई। पर देवगौड़ा ने चौबीस को दिल्ली आकर सोनिया से अपने बेटे के लिए 'हाथ' मांगा। सोनिया तब नहीं मानी थी। तो अब कांग्रेस का 'हाथ' कुमारस्वामी के साथ कैसे होगा। बीजेपी में जरा भी राजनीतिक समझ हो। तो इशारे समझे। देवगौडा के दिल्ली वाले अर्दली दानिश अली बोले- 'बीजेपी ने गठबंधन धर्म नहीं निभाया।' इसे कहते हैं- दूसरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत। अब बीजेपी में आत्मसम्मान बचा हो। तो गौड़ा परिवार को और नौटंकी का मौका न दे। आज ही पार्लियामेंट्री बोर्ड में दो टूक फैसला ले। यों अपन से कोई पूछे। तो बीजेपी का देवगौड़ा के समर्थन से सरकार बनाना फिजूल। पर बीजेपी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना चाहे। तो रोकेगा कौन?
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