अपन ने पिछले दो दिन सीएनएन-आईबीएन पर लिखा। सीएनएन-आईबीएन ने सांसदों की खरीद-फरोख्त का स्टिंग आपरेशन किया। पर दिखाया नहीं। अपन ने तीस जुलाई को बताया था- 'चैनल दगा दे गया। अब तीनों सांसदों का चैनल दफ्तर के बाहर धरने का इरादा।' अपना अंदाज सौ फीसदी सही निकला। अभी धरने का ऐलान तो नहीं हुआ। पर बीजेपी चैनल से दो-दो हाथ करने पर आमादा। गुरुवार को बीजेपी ने चैनल के बायकाट का ऐलान कर दिया।
अब बीजेपी के नेता चैनल पर नहीं दिखेंगे। न बहस में हिस्सा लेंगे। न चैनल को बाईट देंगे। जब से विजुअल मीडिया आया। तब से जर्नलिज्म के रंग-ढंग बदल गए। मीडिया खुद सियासत करने लगा। मीडिया खुद मुकदमे सुनने लगा। अदालत बन गया। फैसला सुनाने लगा। मीडिया के स्टिंग आपरेशन को स्पीकर ने सबूत मान लिया। ग्यारह सांसद बर्खास्त कर दिए गए। न मुकदमा चला, न दलील सुनी, न गवाह पेश हुए। चैनल ही अदालत, चैनल ही सबूत, चैनल ही गवाह। सांसदों को बर्खास्त करवा मीडिया ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया। अब स्टिंग आपरेशन छुपाकर वही मीडिया खुद कटघरे में। खास पार्टी के सांसदों का स्टिंग आपरेशन दिखाना। खास पार्टी के सांसदों का छुपाना। किसी के गले नहीं उतर रहा। वैसे अमेरिकी चैनल ऐसा स्टिंग आपरेशन दिखाता ही कैसे। गलती तो बीजेपी नेताओं की। जिनने स्टिंग आपरेशन के लिए सीएनएन-आईबीएन चुना। ताकि सनद रहे सो बता दें- चैनल ने खुद-ब-खुद स्टिंग आपरेशन नहीं किया। बीजेपी सांसदों को फोन आने लगे। तब सांसदों ने अपने नेताओं को बताया। बीजेपी के एक आला नेता ने यह चैनल चुना था। चैनल चुनने में ही गलती हुई। स्वदेशी चैनल चुनते। तो धोखा न होता। सीएनएन असल में अमेरिकी चैनल। चैनल के भारतीय मालिक पद्मश्री राजदीप सरदेसाई। अपन ने अभी विदेशी चैनलों के लिए पूरे दरवाजे नहीं खोले। सिर्फ इसी तरह की खिड़की खोली है। इराक पर अमेरिकी हमले के वक्त सीएनएन का दुष्प्रचार खूब देखा-सुना। सद्दाम हुसैन के पास मारक हथियारों का जखीरा बताता रहा। पूरी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बुश का भौंपू बन गया था सीएनएन। सोचो, सांसदों की खरीद-फरोख्त का स्टिंग आपरेशन दिखा देता। तो स्पीकर मुश्किल में न फंस जाते। स्पीकर ने चैनल पर स्टिंग आपरेशन देख ही तो ग्यारह सांसदों को बर्खास्त किया था। सीएनएन स्टिंग आपरेशन दिखा देता। तो स्पीकर को विश्वासमत रोकना पड़ता। एटमी करार भी रुक जाता। सो अमेरिका ऐसा कैसे होने देता। बीजेपी को तो सरकार और औद्योगिक घराने के दबाव का अंदेशा। पर अपन को तो अमेरिकी दबाव का भी अंदेशा। पद्मश्री राजदीप सरदेसाई बयान जारी कर सफाई देते घूम रहे हैं। सफाई किसी के गले नहीं उतर रही। बीजेपी के गले तो उतरेगी ही कैसे। सो बीजेपी ने चैनल के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। बायकाट का ऐलान तो किया ही। जर्नलिज्म की मर्यादाएं भी याद दिलाई। चैनल के एक-एक तर्क का मुंहतोड़ जवाब दिया। चैनल ने बयान में कहा था- 'सच एकतरफा नहीं हो सकता। सच अधूरा नहीं हो सकता। स्टोरी पूरी नहीं थी। जर्नलिज्म की विश्वसनीयता स्पीड से नहीं नापी जाती। तथ्य होने चाहिए, सनसनी नहीं। रिपोर्ट होनी चाहिए, आरोप नहीं। स्टोरी में कई ऐसी बातें थी। जिनकी पुष्टि करना जरूरी था।' वेंकैया नायडू ने पलटवार करते हुए कहा- 'जांच करना, फैसला सुनाना मीडिया का काम नहीं। मीडिया का काम जानकारियां जस की तस जनता को मुहैया करवाना।' उनने सीधा हमला बोला- 'चैनल सरकार और कार्पोरेट घराने के दबाव में आ गया है।' सवाल तो खड़ा होगा ही। हर कोई पूछ रहा है- 'स्टिंग आपरेशन को दिखाना नहीं था। तो किया क्यों?
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