माब लिंचिंग वाले वकीलों का लाईसेंस रद्द हो  

Publsihed: 05.Nov.2019, 14:22

अजय सेतिया / दो नवम्बर को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में एक वकील की पार्किंग को लेकर की गई धींगामुश्ती अब पूरी दिल्ली में फ़ैल चुकी है | ऐसे अनेक वीडियो सामने आए हैं जिन में तीस हजारी के वकील खुद को तीसरे दर्जे का साबित कर रहे हैं | आग लगाते , पुलिस कर्मियों से धक्का मुक्की करते , उन पर पत्थर फैंकते , मार-पिटाई करते वकीलों को देख कर लगता है कि काला कोट मवालियों ने पहन रखा है | दिल्ली में वकील कोई ऐसा पहली बार नहीं कर रहे | ऐसा कई बार हो चुका है , पुलिस के साथ धींगामुश्ती के बाद हडताल कर देते हैं और पुलिस को बीच बचाव से काम चलाना पड़ता है , जबकि गलती वकीलों की ही होती है | जब वकील पुलिस का यह हाल करते हैं , तो अंदाजा लगा सकते हैं कि आम आदमियों को कैसे उन के सामने भीगी बिल्ली बन कर रहना पड़ता होगा | जिस मोहल्ले में ऐसे वकील रहते होंगे , उन मोहल्ले वालों का क्या हाल होगा | सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खेहर छोटी अदालतों के वकीलों की इसी तरह की हरकतों से तंग आ कर एक बार यहाँ तक कह चुके हैं कि सुप्रीमकोर्ट को बंद कर देना चाहिए |

वकीलों के अलावा दिल्ली पुलिस भी किसी से नहीं डरती , इस लिए बाकी तो कोई भी हो , उसके साथ पुलिस का व्यवहार पशुओं जैसा होता है | पुलिस की छवि समाज के हर नागरिक का खून चूसने वाली बन चुकी है | पुलिस थाणे लूट के अड्डे बन गए है , दिल्ली के कुछ थाणे ज्यादा कमाई/लूट वाले माने जाते हैं , वहां की नियुक्ति के लिए थानेदार भारी रिश्वत दे कर तैनात होते हैं | ट्रेफिक पुलिस को सडक पर खड़ा देख कर क़ानून का पालन करने वाला भी रास्ता बदल लेता है | अच्छी कमाई के चक्कर में दिल्ली पुलिस के जवान मोटी रिश्वत दे कर ट्रेफिक पुलिस में डेपुटेशन पाते हैं , इस से अंदाज लगा सकते हैं कि पुलिस में कितना भ्रष्टाचार फैला है | यानी हालत यह है कि वकील और पुलिस में सेर सवा सेर की लड़ाई है | दोनों एक दूसरे की औकात जानते हैं | लेकिन इस बार वकीलों ने सडकों पर उतर कर मवालियों जैसी हरकतें कर के आम जनता में अपनी छवि पुलिस से ज्यादा खराब कर ली है | जिस से आम जनता की सहानुभूति पुलिस के साथ बन गई है | इस कारण पुलिस में हिम्मत आई है और अपने स्वाभिमान और क़ानून का राज स्र्थापित करने के लिए नैतिक व् आत्मिक साहस बनाए रखने के लिए वे पहली बार अपने कमिश्नर के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए सडकों पर उतरे हैं | 

ऐसे मौके कई बार आ चुके हैं जब वकीलों की गलती होने के बावजूद गृह मंत्रालय के दबाव में पुलिस को झुकना पड़ा है , लेकिन यह पहली बार हुआ है कि पुलिस कमिश्नर को झुकने से पहले ही पुलिस कर्मी दबाव में ले आए हैं | जितने भी वीडियों सामने आए हैं , उन सभी से यह साबित होता है कि क़ानून की रक्षा करने वाले कानूनदानों ने क़ानून व्यवस्था की स्थिति पैदा की | तीन चार वकील जिस तरह पुलिस वें को आग लगाते हुए दिखे हैं , 1984 का वह दृश्य ताज़ा हो गया , जब कांग्रेसियों की भीड़ टायरों को आग लगा कर सिखों के गले में डाल देती थी | माब लिंचिंग का वही सीन दिल्ली में दोहराने की कोशिश की गई, भगवान का शुक्र है कि पुलिस वेन में बैठा पुलिस कर्मी वकीलों की माब लिंचिंग का शिकार नहीं हुआ |

हालांकि न्यायिक जांच शुरू हो चुकी है , लेकिन न्यायिक जांच भी वकीलों के दबाव का शिकार हो सकती है , इस लिए सुप्रीमकोर्ट को चाहिए कि वह उन सभी वकीलों की शिनाख्त करवाए जो किसी भी तरह की हिंसा और आगजनी में शामिल थे , उन सभी के वकालत करने के लाईसेंस रद्द किए जाने चाहिए , ताकि भविष्य में कोई वकील पुलिस या आम नागरिक पर धौंस पट्टी न जमा सके |   

 

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