अजय सेतिया / कश्मीर का आतंकवाद आज़ादी की लड़ाई कतई नहीं है | कश्मीर में बाकायदा संविधान सभा का गठन हुआ था , जिस ने अपना संविधान बनाया था | 1989 में जब पाकिस्तान ने इस्लाम के नाम पर आपरेशन टोपाज शुरू किया , तब से कश्मीर में आतंकवाद शुरू हुआ | 19 जनवरी 1990 की रात मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों को काफिर घोषित करते हुए उन्हें चेतावनी दी गई कि सभी पुरुष अपनी औरतों को यहीं पर छोड़ कर कश्मीर से भाग जाएं , या इस्लाम कबूल कर लें , या मरने के लिए तैयार रहें | उस दिन से कश्मीर की आज़ादी की नहीं , बल्कि इस्लामिक आतंकवाद की शुरुआत हो गई थी | तब कश्मीर घाटी में पांच लाख से ज्यादा हिन्दू रहते थे , अब उन की संख्या कोई पांच हजार के आस पास ही है | पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना था और 1947 से ही वह इसीलिए जम्मू कश्मीर पर दावा ठोक रहा था क्योंकि कश्मीर में मुस्लिम आबादी बहुमत में थी | कश्मीर में रह रहे पांच लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित पाकिस्तान की आँख की किरकिरी बने हुए थे , पाकिस्तान के रणनीतिकारों का मानना था कि कश्मीरी पंडित कश्मीर में भारत की पहचान बने हुए हैं , अगर उन्हें वहां से निकाल दिया गया तो बाकी बचे कश्मीरी मुस्लिम पाकिस्तान के पक्ष में खुद ही खड़े हो जाएंगे | पाकिस्तान की यह रणनीति काफी हद तक कामयाब रही , क्योंकि उस के बाद बड़ी तादाद में कश्मीरी मुस्लिम इस्लाम के नाम पर आतंकवाद में कूद पड़े थे |
सिर्फ कश्मीर में नहीं , बल्कि पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर लड़ाई लड़ी जा रही है | गैर मुस्लिमों को मुस्लिम बनाने या उन्हें मौत के घाट पर उतारने की यह जंग तब से चल रही है , जब से इस्लाम का जन्म हुआ , भारत ने तो इसे छटी शताब्दी में झेलना शुरू कर दिया था , जब इस्लामी देशों के बादशाहों ने भारत पर कब्जा करने की शुरुआत की थी | विदेशी हमलावरों ने हिन्दू राजाओं को हरा कर बड़े पैमाने पर तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन करवाया | कश्मीरी पंडितों की धर्म बचाने की लड़ाई तो गुरु तेग बहादुर के बलिदान के समय से चल रही थी , जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने 11 नवम्बर 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में उनको शहीद कर दिया था | धर्म परिवर्तन के साथ साथ नए बने मुसलमानों में हिन्दुओं के प्रति नफरत की ऐसी आग झुलसाई गई कि इस्लाम के नाम पर भारत के भीतर दो मुस्लिम देश बन चुके हैं | अमेरिका और यूरोप को तो इस्लामिक आतंकवाद ने बीसवी सदी में झुलसाना शुरू किया है , लेकिन कुछ वर्षों के भीतर ही वे इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ खड़े हो चुके हैं | आपस में ही लड़ रहे इस्लामिक देशों के मुसलमानों को यूरोप ने खुले दिल से पनाह दी थी , लेकिन अब उन्हें एहसास हो रहा है कि उन्होंने गलती की क्योंकि वे यूरोपीय देशों में इस्लामिक क़ानून और कायदे लागू करवाना चाहते हैं |
अमेरिका तो पिछले डेढ़ दशक से इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ ही रहा है | उस ने ओसामा-बिन-लादेन के बाद अबू-बकर-अल-बगदादी और उस के नम्बर दो अबू-हसन-अल-मुहाजिर को भी जन्नत में पहुंचा दिया है | सीरिया से लेकर कश्मीर तक के इस्लामिक आतंकवादियों को इन आतंकी सरगनाओं के हश्र से सबक लेना चाहिए | इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के साथ यूरोपीय देश भी जुड़ रहे हैं , लेकिन सेक्यूलरिज्म के नाम पर भारत और भारतीयों की आँखे अभी तक नहीं खुली हैं | भारत में अभी भी इस्लामिक आतंकवाद को नहीं पहचाना जा रहा | हैरानी है कि यूरोपियन सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के कश्मीर जा कर हालात का जायजा लेने का भारत के विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं | जब कि भारत ने यूरोपिन यूनियन के देशों को कश्मीर जाने की इजाजत इसलिए दी है क्योंकि भारत सरकार दुनिया को यह दिखाना चाहती है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से संयुक्त राष्ट्र में बताई गई कश्मीर में मुसलमानों पर कथित अत्याचारों की कहानी सरासर झूठी है | पहले 370 खत्म करते समय यह कह कर विरोध करना कि कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा है , इसलिए संसद इस पर एक तरफ़ा फैसला नहीं ले सकती और अब यूरोपियन प्रतिनिधिमंडल का यह कह कर विरोध करना कि यह अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप है , न सिर्फ हैरानी पैदा करता है , बल्कि पाकिस्तान के एजेंडे को भी पूरा करता है | जबकि यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब विदेशी प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर जाने की इजाजत दी गई हो |
आपकी प्रतिक्रिया