भाजपा को चिंता झारखंड और दिल्ली की

Publsihed: 24.Oct.2019, 17:47

अजय सेतिया / मध्य प्रदेश , राजस्थान और छतीसगढ़ के बाद भाजपा को हरियाणा में झटका लगा है | झटका तो महाराष्ट्र में भी लगा है , जहां शिवसेना से गठबंधन के बावजूद भाजपा की सीटें घट गई | इस से पहले गोवा में भी महाराष्ट्र और हरियाणा जैसा झटका लगा था , जहां सरकार होने के बावजूद भाजपा की सीटें घट गई थी , हालांकि भाजपा ने जोड़तोड़ से सरकार बना ली थी | गोवा की तरह सरकार हरियाणा में भी बन सकती है , लेकिन झटका तो है ही कि 90 में से 75 सीटें जीतने की उम्मींद पाले बैठी भाजपा को बहुमत भी नही मिला | नरेंद्र मोदी के भाजपा की बागडोर सम्भालने के बाद भाजपा लगातार विधानसभाओं के चुनाव जीत रही थी , या जोड़ तोड़ कर के नई सरकारें बना रही थी | लेकिन लगातार जीत का एक दूसरा पहलू भी है कि मोदी के बागडोर सम्भालने के बाद भाजपा किसी भी राज्य में अपनी पुरानी सरकार बचा नहीं सकी | सिर्फ गोवा में ही दुबारा सरकार बन सकी , वह भी मनोहर परिकर के कारण , इसी तरह कर्नाटक में भी भाजपा की सरकार येद्दुरप्पा के कारण बन सकी है |

गोवा में जोड़ तोड़ कर के मनोहर परिकर का मुख्यमंत्री बनना और कर्नाटक में जोड़ तोड़ से येद्दुरप्पा का मुख्यमंत्री बनना एक अलग तरह का संदेश भी देता है | ये दोनों अपने अपने राज्य के क्षत्रप थे , इस लिए दूसरे दलों के विधायकों ने उन्हें आसानी से स्वीकार किया , भाजपा आला कमान अगर चाहता तो इन दोनों राज्यों में इन दोनों के नेतृत्व के बिना सरकार नहीं बना सकता था | हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के सन्दर्भ में भाजपा आलाकमान को कर्नाटक और गोवा के घटनाक्रम को भी समझना होगा | लब्बोलुवाब यह है कि केन्द्रीय नेतृत्व के भरोसे राज्यों का नेतृत्व खड़ा नहीं किया जा सकता | केंद्र से थोंपे गए मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल तो पूरा कर सकते हैं , लेकिन पार्टी की जड़ें जमाने और दुबारा चुनाव जितवाने में सहयोगी नहीं हो सकते | महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री का चुनाव दिल्ली से किया गया था , वे विधायकों की ओर से चुने गए मुख्यमंत्री नहीं थे | हालांकि दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने पांच साल अच्छी सरकार चलाई , लेकिन सिर्फ सरकार चलाना और पार्टी की जड़ें मजबूत करने में बहुत फर्क है | पार्टी की जड़ें पार्टी के क्षत्रप ही जमा सकते हैं , इस लिए भाजपा को सबक लेते हुए क्षत्रपों को उभारना होगा |

महाराष्ट्र में गोपी नाथ मूंडे और नितिन गडकरी भाजपा के दो बड़े जमीनी नेता थे | मूंडे रहे नहीं और 2014 में नितिन गडकरी को किनारे कर के देवेन्द्र फडनवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया | 2014 गोवा में भी मनोहर पारिकर को दिल्ली ला कर लक्ष्मीकांत पार्सेकर को मुख्यमंत्री बनाया गया था , लेकिन 2017 में वह भाजपा को बहुमत नहीं दिला सके , उसी तरह देवेन्द्र फडनवीस के मुख्यमंत्री रहते भाजपा की बीस –बाईस सीटें घट गई हैं | अगर शिवसेना के साथ चुनावी गठबंधन न होता तो भाजपा की सीटें बहुत ज्यादा घटती इस लिए चुनाव नतीजों के बाद देवेन्द्र फडनवीस ने उद्दव ठाकरे का आभार जताया | सोचिए कि चुनाव से पहले कांग्रेस और एनसीपी के दर्जनों विधायक तोड़ने के बाद भाजपा की सीटें घट गई , जबकि इतनी तोड़फोड़ के बाद अब की बार 200 पार का नारा था | मराठवाडा तो कभी भाजपा का गढ़ रहा नहीं , लेकिन विदर्भ भाजपा का गढ़ रहा है | नीतिन गडकरी और देवेन्द्र फडनवीस दोनों ही विदर्भ से आते हैं , जहां इस बार भाजपा को किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी है | कुछ लोगों का मानना है कि नितिन गडकरी की उपेक्षा के कारण भी भाजपा को नुक्सान हुआ | चुनावों के समय शरद पवार के खिलाफ ईडी की जांच का तो उलटे शरद पवार को फायदा हो गया, उन की सीटें बढ़ गई |  

इन चुनाव नतीजों से सबक लेना चाहिए कि चुनावों से पहले की गई कोई कार्रवाई, या दलबदल या बांटी गई रेब्दियों से मतदाताओं पर उलटा असर भी हो जाता है | झारखंड और दिल्ली विभान सभाओं के चुनाव भी नजदीक है तो दिल्ली की अवैध कालोनियों को वैध करने के केंद्र के प्रस्ताव को चुनावी रेवड़ी के रूप में देखा जा रहा है | भाजपा को सीखना होगा कि दूसरे दलों से आए मौकापरस्त उस का बड़ा पार नहीं करा सकते , हरियाणा , महाराष्ट्र के बाद झारखंड में भी कांग्रेस और जेएमएम से दलबदल करवाई जा रही है | दिल्ली में केजरीवाल को अभी भी भाजपा और कांग्रेस से बेहतर स्थिति में माना जा रहा है , और झारखंड की भाजपा सरकार के बारे में भी कोई अच्छी छवि नही बन रही |

 

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