अजय सेतिया / मोदी सरकार के 370 हटाने के फैसले का विरोध करने वाला कोई भी राजनीतिक दल यह नहीं बता पा रहा है कि 370 क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए था | जो लोग पहले जन संघ और बाद में भाजपा की 370 हटाने की मांग को साम्प्रदायिक बता कर विरोध करते थे , उन का तर्क हुआ था कि यह मुस्लिम बहुल राज्य को दिए गए विशेषाधिकार का उलंघन होगा , इस लिए यह फैसला साम्प्रदायिक होगा | हालांकि मोदी सरकार का यह फैसला साम्प्रदायिकता पर चोट करने वाला और सेक्यूलरिज्म को बढावा देने वाला है , लेकिन विडम्बना यह है कि साम्प्रदायिकता का विरोध करने वाले सेक्यूलरिज्म के झंडाबरदार 370 हटाए जाने का विरोध कर रहे हैं |
संविधान के इस प्रावधान को बरकरार रखने के पक्ष में ज्यादा से ज्यादा दो तर्क दिए जा रहे हैं , पहला यह है कि 1927 में महाराजा के कार्यकाल में ही बाहरी लोगों पर प्रतिबंध लगाने के लिए स्टेट सब्जेकट लागू हो गया था , संविधान में तो सिर्फ उस प्रावधान को बरकरार रखने की व्यवस्था की गई थी | उन का तर्क है कि स्थानीय संस्कृति को बरकरार रखने के लिए स्टेट सब्जेक्ट लागू किया गया था | वे यह नहीं बता पाते कि अगर राजशाही के क़ानून कायदों को ही बरकरार रखना है तो लोकतंत्र और संसदीय प्रणाली का मतलब ही क्या है | फिर आंध्र प्रदेश में 370 नहीं है तो तेलुगु संस्कृति नष्ट हो गई क्या , या तमिलनाडू में तमिल संस्कृति नष्ट हो गई क्या | फिर सवाल खड़ा होता है कि अगर कश्मीर में बाहरी लोग सम्पत्ति नहीं खरीद सकते , तो कश्मीरी लोगों को देश के अन्य हिस्सों में जमीन खरीदने का अधिकार क्यों दिया गया | उन के मुम्बई में जमीने खरीदने या वंहा जा कर बसने से मराठी संस्कृति नष्ट हो गई क्या |
दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड और पूर्वोतर के कई राज्यों में भी बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है | यह तर्क असल में तर्कहीन है , किसी भी राज्य में जम्मू कश्मीर की तरह ब्लेंकेट बैन नहीं है , सभी राज्यों में कुछ शर्तें पूरी करने पर जमीनें खरीदी जा सकती हैं | स्टेट सब्जेक्ट का मामला सिर्फ जमीनों का नहीं है , स्टेट सब्जेक्ट में संसद से ज्यादा अधिकार राज्य विधान सभा को दे दिए गए | भारत की संसद का कोई भी क़ानून तब तक कश्मीर पर लागू नहीं हो रहा था , जब तक कि वहां की विधान सभा पास न करे | जम्मू कश्मीर की विधान सभा ने बाल विवाह, शिक्षा का अधिकार , बाल मजदूरी, मानवाधिकार जैसे अनेक कानूनों का अनुमोदन नहीं किया | शेख अब्दुला ने जवाहर लाल नेहरु से अपनी निकटता का फायदा उठा कर 370 का प्रावधान एक साजिश के तहत शामिल करवाया था , 1927 का स्टेट सब्जेक्ट तो जवाहर लाल नेहरु को राजी करने के लिए सिर्फ एक बहाना था | इस साजिश को सरदार पटेल और डा. अम्बेडकर समझते थे , इस लिए वे 370 के लिए राजी नहीं हुए थे , वह तो नेहरु की इच्छा के कारण सरदार पटेल ने उन की मदद की , वरना सब जानते हैं कि कांग्रेस ने भी 370 जोड़ने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था |
शेख अब्दुल्ला की साजिश को समझने के लिए उन की आत्मकथा “ आतिश-ए-चिनार ” को पढना पड़ेगा, जिस में उन्होंने महाराजा हरी सिंह के खिलाफ उन की रहनुमाई में चलाए गए मुस्लिम आन्दोलन को विस्तार से लिखा है | उन के भडकाऊ साम्प्रदायिक भाषण की वजह से उन्हें 1931 में गिरफ्तार किया गया था | अपनी किशोरावस्था से ही वह एक घोर साम्प्रदायिक नेता थे , उन्होंने बाकायदा मुस्लिम आन्दोलन शुरू किया था और जम्मू कश्मीर में मुस्लिम लीग की ब्रांच खोली थी | लेकिन नेहरु के नजदीक आने के कारण उन्हें महाराजा हरिसिंह का विकल्प बना कर पेश कर दिया गया , जबकि वह न तो निर्वाचित प्रतिनिधी थे और न महाराजा हरी सिंह के प्रतिनिधी | कश्मीर घाटी में मुस्लिम बाहुल्य बनाए रखने की साजिश के तहत शेख अब्दुल्ला ने संविधान में 370 जुडवाया , जो 35 ए जोड़ने का आधार बना , जिस के तहत कश्मीर का अपना संविधान भारत के संविधान पर भारी हो गया |
शेख अब्दुल्ला जो जो बात कहते रहे , नेहरु उसे मानते रहे | वरना न तो कश्मीर को विशेष दर्जे की मांग महाराजा हरी सिंह ने की थी , और न ही यह विलय की शर्त थी , जैसा कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने संसद में बहस के समय कहा | बाद में कांग्रेस इस जाल में फंस गई कि मुसलमानों को खुश रखने के लिए 370 बनाए रखना जरूरी है , जबकि कश्मीर के मुसलमानों का शेष भारत के मुसलमानों को कोई रिश्ता ही नहीं है | अगर वे शेष भारत के मुसलमानों से रिश्तेदारी रखना चाहते होते तो वे कश्मीर के संविधान में यह प्रावधान क्यों जुड़वाते कि कश्मीर की बेटी अगर कश्मीर से बाहर शादी करेगी तो सम्पत्ति पर उस का अधिकार खत्म हो जाएगा | उन्हें पता था कि कश्मीर की हिन्दू लडकियों का ही भारत के अन्य भागों में रिश्ता होगा और उन के सम्पत्ति के अधिकार खत्म होते जाएंगे | बात सिर्फ सम्पत्ति तक खत्म नहीं हुई राज्य के संविधान का बहाना बना कर यहाँ तक प्रावधान कर लिया गया कि अगर पाकिस्तान से मुस्लिम कश्मीर में आते हैं तो उन्हें नागरिकता मिलेगी , लेकिन वहां से आने वाले हिन्दुओं को नहीं | क्या मुस्लिम बहुल राज्य को इस तरह का गैर बराबरी वाला साम्प्रदायिक अधिकार देना किसी भी हालत में किसी लोकतांत्रिक और सेक्यूलर देश में जायज था |
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