इंडिया गेट से अजय सेतिया / अमित शाह और ओम बिडला ने यह धारणा तोड़ दी है कि सरकार चलाने के लिए अनुभव होना जरूरी होता है | दोनों ने 68 साल के संसदीय इतिहास के रिकार्ड तोड़े हैं | अमित शाह ने सिर्फ दो हफ्तों में राज्यसभा का नक्शा बदल कर रख दिया, जहां अल्पमत में होने के कारण नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली पांच साल तक परेशान रहे थे | उन का संसदीय जीवन सिर्फ दो साल का है , पार्टी अध्यक्ष बनने के तीन साल बाद 2017 में ही वह राज्यसभा में आए थे | उन्होंने अपनी चाणक्य नीति से 1952 से लागू संविधान के विवादास्पद अनुच्छेद को एक झटके में हटा दिया , तो ओम बिडला ने भी लोकसभा के कुशल संचालन से 1952 की पहली लोकसभा के कई रिकार्ड तोड़ दिए | ओम बिडला का संसदीय अनुभव सिर्फ पांच साल का है |
आखिर इन की क्या ट्रेनिंग थी कि राजनीति के बड़े बड़े धुरंधरों को धुल चटा दी | क्या कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के इन छोरों के मुकाबले कांग्रेस के अधेड़ धुरंधर टिक नहीं पा रहे और कांग्रेस जमीन चाट रही है | पिछले साल राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के बारे में फैलाई गई भ्रांतियां दूर करने के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने तीन दिन का कार्यक्रम रखा था , जिस में सभी दलों के नेताओं और सभी विचारधाराओं की अगुवाई करने वाले बुद्धिजीवियों को बुलाया गया था | इस कार्यक्रम में मोहन भागवत ने शंकाओं का समाधान भी किया | उन के सामने एक टेढा सवाल रखा गया कि आप एक तरफ कहते हैं कि संघ का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं और दूसरी तरफ भाजपा के सारे संगठन मंत्री आरएसएस के प्रचारक होते हैं | तो मोहन भागवत ने कहा कि किसी अन्य राजनीतिक दल ने उन से कार्यकर्ता मांगे ही नहीं , कांग्रेस अगर संगठन मंत्रियों की मांग करेगी , तो आरएसएस जरुर विचार करेगा |
यह बात अपन ने इस लिए लिखी क्योंकि अमित शाह और ओम बिडला दोनों को सामाजिक जीवन की ट्रेनिंग आरएसएस के विद्यार्थी संगठन विद्यार्थी परिषद से मिली है | इस समय मोदी सरकार में शामिल करीब करीब आधे मंत्री विद्यार्थी परिषद से निकले हैं | कुछ लोग यह मान लेते हैं कि विद्यार्थी परिषद कांग्रेस के एनएसयूआई की तरह भारतीय जनता पार्टी का विद्यार्थी संगठन है | यह सच नहीं है , विद्यार्थी परिषद का गठन छात्रों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने के लिए जनसंघ की 1952 में स्थापना से भी तीन साल पहले 1949 में हो गया था | विद्यार्थी परिषद् का मूल उद्देश्य राष्ट्र का पुनर्निर्माण है । इसलिए 17वीं लोसभा के पहले सत्र में ही एबीवीपी से प्रशिक्षित अमित शाह और ओम बिडलाकी राष्ट्र पुनर्निर्माण में भूमिका दिखाई दी |
विद्यार्थी परिषद बांग्लादेशी घुसपैठ और अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए समय-समय पर आन्दोलन चलाता रहा है । जहां एनएसयूआई का मकसद सिर्फ छात्रों की चुनावी राजनीति है , वहां संघ के छात्र संगठन एबीवीपी और वामपंथी छात्र संगठनों का मकसद विचारधारा आधारित छात्रों का निर्माण है | वामपंथी छात्र संगठनों और एबीवीपी में विचारधारा का मूल अंतर यह है कि दोनों के लक्ष्य अलग अलग हैं | जहां वामपंथी संगठनों का ज्यादा जोर सरकारों के खिलाफ अंसतोष पैदा करने वाले मुद्दे उठाने पर होता है , जिस कारण उन में वैसी राष्ट्र विरोधी ताकतें आसानी से घुसपैठ कर लेती हैं , जो भारत को समृद्ध एकजुट राष्ट्र के तौर पर नहीं देखना चाहती , वहीं एबीवीपी अलगाववाद, अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठाती है, जिस से उन में राष्ट्र के प्रति प्रेम जागृत होता है |
मोदी सरकार की बागडोर इस समय इस लिहाज से पूरी तरह विद्यार्थी परिषद के हाथ में कह सकते है कि राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रप्ति वेंकैयानायडू , लोकसभा के स्पीकर ओम बिडला , भारत के गृह मंत्री अमित शाह , रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह , परिवहन मंत्री नितिन गडकरी , पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, रसायन मंत्री सदा नन्द गौडा , विधि एंव न्याय मंत्री रविशंकर प्रशाद , मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक , रेल मंत्री पीयूष गोयल , जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत और अनेकों अन्य राज्य मंत्री विद्यार्थी परिषद से राष्ट्र भक्ति और सामाजिक जीवन का प्रशिक्षण पा कर आए हैं |
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