सवाल यह है कि क्या राज्यपाल ने अपरिपक्वता दिखाई ? जब सदन में विशवास मत रखा जा चुका था , क्या उन्हें मुख्यमंत्री के लिए विशवास मत लेने की समय सीमा रखनी चाहिए थी ? जब स्पीकर ने 15 विधायकों का इस्तीफा मंजूर नहीं किया था तो राज्यपाल कैसे कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री ने बहुमत खो दिया है ? खासकर तब जब सुप्रीमकोर्ट ने भी स्पीकर के मामले में दखल से इनकार कर दिया था | क्या राज्यपाल के प्रेम पत्रों की इसी लिए मुख्यमंत्री और स्पीकर ने धज्जियां उडाई , क्योंकि राज्यपाल कानूनी तौर कहीं ठीक नहीं लगते |
नई दिल्ली ( अजय सेतिया ) कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर और मुख्यमंत्री की राज्यपाल वजुभाईवाला से थन चुकी है | बृहस्पतिवार की रात को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री एच.डी.कुमारस्वामी को चिठ्ठी लिख कर शुक्रवार दोपहर डेढ़ बजे बहुमत साबित करने को कहा था | स्पीकर ने आज डेढ़ बजे तक सदन में मतविभाजन नहीं करवाया तो राज्यपाल ने एक और चिठ्ठी लिखी कि बहुमत आज ही शाम साढ़े छह बजे तक साबित किया जाए | पर मुख्यमंत्री और स्पीकर ने ठान लिया कि राज्यपाल के निर्देशों का पालन नहीं करना |
मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि राज्यपाल का दूसरा लव लेटर आया है | उन ने स्पीकर से कहा कि वह इस से निपटें | देर शाम मुख्यमंत्री और कांग्रेस दो मुद्दों को ले कर सुप्रीमकोर्ट चली गई , इन में से महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि जब सदन चल रहा हो तो राज्यपाल को निर्देश देने का अधिकार नहीं है | दूसरा मुद्दा यह है कि व्हिप जारी करना राजनीतिक दल का अधिकार है , सुप्रीमकोर्ट को किसी को व्हिप जारी करने से नहीं रोक सकती | असल में सुप्रीन्कोर्ट ने जब यह कहा था कि विधायकों को सदन में आने से बाध्य नहीं किया जा सकता | इस का यह निकाला गया कि राजनीतिक दल दाखिल करने वाले को व्हिप जारी न कर सकती | हां;लांकि तथ्य यह है कि जब तक इस्तीफा मंजूर नहीं होता , तब तक उन विधायकों पर व्हिप लागू होता है | इस लिए उम्मींद यही है कि सुप्रीमकोर्ट अपनी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाले जाने की बात कहेगा |
लेकिन मुख्यमंत्री और कांग्रेस ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटा कर शुक्रवार को मतविभाजन को टालने की रणनीति बना ली | हालांकि स्पीकर रात आठ बजे भी सदन में कह रहे थे कि वह आज ही मतविभाजन करवाना चाहते हैं | कांग्रेस और जेडीएस की नियत साफ़ था कि वे सोमवार तक बहस टालना चाहते हैं और अंतत: सवा आठ बजे स्पीकर ने मतविभाजन सोमवार तक स्थित कर दिया | अब राज्यपाल के पास दो विकल्प हैं , या तो वह मुख्यमंत्री को नई चिठ्ठी लिख कर सोमवार शाम तक की समय सीमा बढ़ा दें , या केंद्र से सरकार बर्खास्त करने की इजाजत मांगे |
सवाल यह है कि क्या राज्यपाल ने अपरिपक्वता दिखाई ? जब सदन में विशवास मत रखा जा चुका था , क्या उन्हें मुख्यमंत्री के लिए विशवास मत लेने की समय सीमा रखनी चाहिए थी ? जब स्पीकर ने 15 विधायकों का इस्तीफा मंजूर नहीं किया था तो राज्यपाल कैसे कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री ने बहुमत खो दिया है ? खासकर तब जब सुप्रीमकोर्ट ने भी स्पीकर के मामले में दखल से इनकार कर दिया था | क्या राज्यपाल के प्रेम पत्रों की इसी लिए मुख्यमंत्री और स्पीकर ने धज्जियां उडाई , क्योंकि राज्यपाल कानूनी तौर कहीं ठीक नहीं लगते |
आपकी प्रतिक्रिया