आलोक तोमर की याद में आज हुए आठवें वार्षिक समारोह में मोदी सरकार विरोधियों का जमावड़ा था । पिछले साल भी मोदी सरकार निशाने पर थी । यह मंच एक खास विचारधारा का भड़ास मंच बन गया है । इस बार तो विषय मे भी कोई परहेज नहीं रखा गया था । विषय था क्या हिंदी पत्रकारिता का यह दब्बू युग है । सभी वक्ताओं का एक ही एजेंडा था कि मोदी को हिंदी पत्रकारिता के दब्बू युग का कारण बताया जाए ।
भीड़ अच्छी थी, कोई पांच सौ से ज्यादा लोग आलोक तोमर की याद में पहुंचे थे | आलोक जी की पत्नी सुप्रिया राय पिछले आठ साल से उन की याद में गोष्ठी का आयोजन करती है | आलोक जुझारू पत्रकार थे , मेरा उन से परिचय जनसत्ता के दिनों में हुआ | उन दिनों वह हिन्दी पत्रकारिता के चमकते हुए सितारे थे , उनकी जोरदार लेखनी के सब दीवाने थे | अटल बिहारी वाजपेयी से , चन्द्र शेखर तक और वीपी सिंह से ले कर अर्जुन सिंह तक उन की लेखनी का लोहा मानते थे, इन सभी के साथ उन के बहुत घनिष्ट सम्बन्ध बन गए थे | अमिताभ बच्चन ने जब कौन बनेगा करोडपति शुरू किया था, तो अमिताभ बच्चन की ओर से पूछे जाने वाले सवाल आलोक तोमर ही लिखते थे | उन्हें कभी किसी ने भाजपा समर्थक या भाजपा विरोधी नहीं कहा | किसी विचारधारा का समर्थक या विरोधी होते नहीं देखा |
पर आलोक की याद का मंच एक ख़ास विचारधारा के पिच्च्ल्गुओं का मंच बनता जा रहा है | मेरे मित्र कुरबान अली का मैं बीबीसी के दिनों से मुरीद रहा हूँ | उन की पद यात्रा और उस की रिपोर्टिंग ने मुझे उन का मुरीद बनाया था | वह मोदी विरोधी तो हैं , लेकिन मैं समझता था रविश कुमार और ओम थानवी की तरह अंधे विरोधी नहीं हैं | पर उन का भाषण भी मोदी विरोध के एजेंडे से बाहर नहीं निकला |
अपन को सिर्फ डी पी त्रिपाठी ही मुद्दे पर बात करते वक्ता लगे, हालांकि उन का नाम वक्ताओं की सूची में नहीं था | वह एनसीपी के प्रवक्ता और सांसद हैं , लेकिन पत्रकार रहे हैं | डीपी त्रिपाठी ने दो घटनाओं का जिक्र कर के याद भी दिलाया कि कैसे मालिकों के सामने झुकने के बजाए सम्पादक इस्तीफा दे दिया करते थे । इस सम्बन्ध में उन्होंने एच.के.दुआ का नाम भी लिया, जिन्होंने टाईम्स आफ इंडिया के सम्पादक पद से इस लिए इस्तीफा दे दिया था क्योंकि मालिकों ने उन की मर्जी के बिना दो पत्रकारों की नियुक्ति कर दी थी | एच.के.दुआ का उदाहरण दे कर उन्होंने इशारों में कहा अब अगर मोदी का दबाव है, तो वह मालिकों पर ही होगा न । पत्रकार क्यों दब्बू बन रहे हैं ।
वक्ताओं में वामपंथी पत्रकारिता के विरोधी इंडिया टूडे हिन्दी के पूर्व सम्पादक जगदीश उपासने का भी नाम था , लेकिन वह नहीं आए | मुझे तो वक्ताओं में उन का नाम देख कर ही हैरानी हुई थी, क्योंकि बाकी सब वक्ता क्या बोलने वाले हैं यह पता ही था | लेकिन मन में खुशी थी कि प्रतिवाद की सम्भावना भी रखी गई है | पर हैरानी तब हुई , जब देखा कि जगदीश उपासने नहीं आए | मंच से बताया गया कि कल खबर आई थी कि उपासने की जगह पर राम बहादुर राय आएँगे, लेकिन वह भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे | पता नहीं राम बहादुर राय के आने की सूचना किस ने दी थी, और पता नहीं हामी भर कर भी जगदीश उपासने भी क्यों नहीं आए | हालांकि मंच मोदी विरोधियों के हवाले था पर सुप्रिया राय ने जगदीश उपासने को बुला कर मंच को निष्पक्ष बनाने की कोशिश की थी |
मोदी विरोधियों के जमावड़े में कोई प्रतिवाद करने वाला नहीं पहुंचा तो जंग-ए-मैदान नहीं बना | हालांकि उपासने और राम बहादुर राय दोनों ही शांत स्वभाव के पत्रकार हैं, लेकिन जनूनी भीड़ का तो कुछ नहीं किया जा सकता | रविश कुमार के भाषण पर बजी तालियों से स्पष्ट था कि उन्हें हूट करने वाली भीड़ मौजूद थी | प्रतिवाद की अनुपस्थिति में मोदी के खिलाफ जमकर जहर उगला गया । कईयों ने खुल कर नाम लिया तो कईओं ने चोकीदार जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर के मोदी के खिलाफ अपनी भड़ास निकाली | मोदी विरोधी पत्रकारिता की अगुवाई कर रहे रवीश कुमार ने नाम ले कर जागरण के सम्पादक मालिक को कोसा । तो दैनिक हिन्दुस्तान के सम्पादक शशि शेखर पर भी भडास निकाली । उन्होंने बताया कि संपादको को क्या छापना चाहिए, क्या नहीं। उन का गुस्सा इस बात पर था कि " दि हिन्दू" में राफेल को लेकर आधे अधूरे दस्तावेज से जो फर्जी स्टोरी छपी थी , उसे दैनिक हिन्दुस्तान ने अगले दिन क्यों नहीं छापा | आलोक तोमर के मंच से रविश कुमार ने यह अजीब किस्म की पत्रकारिता सिखाने की कोशिश की कि जिस खबर को वह पसंद करते हैं , वही सही है, बाकी गलत है, और जिसे वह सही मानते हैं , वह सभी अखबारों को जस का तस दूसरे अखबार से उठा कर अगले दिन छापना चाहिए |
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