अपन शिबू सोरेन के पांचों सांसद यूपीए में मानें। अजित के तीनों सांसद भी यूपीए में मानें। विसमुत्थारी, थुप्सत्न चेवांग, मणिचेरनामई को भी गिन लें। तो भी फिलहाल दोनों खेमों में 268-268 पर बराबरी के हालात। अब सिर्फ देवगौड़ा, अब्दुल्ला, ममता, दयानिधि का फैसला होना बाकी। देवगौड़ा भले ही शनिवार को मनमोहन से मिले। पर देवगौड़ा यूपीए के साथ जाएंगे। यह कोई ताल ठोककर नहीं कह सकता। अगर देवगौड़ा गए भी। तो अकेले ही जाएंगे।
केरल के विरेंद्र कुमार पहले ही लेफ्ट के साथ। शिवन्ना के बारे में अपन बता चुके। येदुरप्पा ने शिवन्ना को पटा लिया। वैसे बार-बार टूट रही अपनी पार्टी से देवगौड़ा खिन्न। सो विरेंद्र कुमार ने जाकर समझाया- 'सरकार गिराओ। इस समय जनता कांग्रेस के खिलाफ। कर्नाटक में भी सत्ता विरोधी वोट पड़ेंगे। बीजेपी-कांग्रेस दोनों मुश्किल में होंगे। उसका फायदा उठाओ।' यों देवगौड़ा को चंद्रशेखर राव और चंद्रबाबू ने भी समझाया। पर अपन जानते हैं- देवगौड़ा सुनते किसी की नहीं। सुन भी लें, तो करते मन की ही हैं। देवगौड़ा भी सरकार के खिलाफ गए। तो विपक्ष का पलड़ा दो वोट से भारी। फिर उमर अब्दुल्ला को अपने दोनों वोट मनमोहन को देने होंगे। मौजूदा हालात ही रहे। तो दोनों तरफ 270-270 हो जाएंगे। दयानिधि मारन, ममता बनर्जी के हाथ में होगी बाजी। दोनों सरकार के साथ गए। तो मनमोहन सरकार बचना तय। पर यह तब होगा, अगर मायावती ने मंगलवार तक और हाथ न मारा। मायावती अब तक मुलायम के पांच सांसदों पर हाथ मार चुकी। कांग्रेस के अपने कुलदीप विश्नोई और अरविंद शर्मा खिसक चुके। कुछ और कांग्रेसी सांसद खिसक गए। तो मनमोहन सरकार को कोई नहीं बचा सकता। पर सरकार ने जैसी खरीद-फरोख्त शुरू की। उससे लेफ्ट को अब सरकार बचने की उम्मीद। येचुरी बता रहे थे- 'सरकार बच भी गई। तो भी ज्यादा नहीं चलेगी। नवंबर में चुनाव तो होगा ही।' पर यह लेफ्ट की गलतफहमी। लेफ्टिए सोचते हैं- संसद में पल-पल वोटिंग कराएंगे। पर लेफ्टिए सेर, तो कांग्रेस सवा सेर। कांग्रेस जल्द सत्रावसान कर सबको घर भेज देगी। पर मायावती के दिल्ली में डेरे से शनिवार को सपा-कांग्रेस में खलबली मच गई। सोनिया ने एक-एक सांसद से मुलाकात की। दर्जनों सांसद गायब रहे। अब मैनेजरों-जुगाड़ुओं का काम नदारद सांसदों का पता लगाना। सरकार का खुफिया तंत्र भी सांसदों का पता लगाने में जुट गया। कर्नाटक से वेंकटेश नायक, अमरीश, हनमुतैया गायब थे। तीनों को आज तक लाकर सोनिया के सामने पेश करने का जुगाड़। वैसे अपन को कर्नाटक से खबर लगी- 'कांग्रेस के तीन सांसदों पर बीजेपी के डोरे।' पर तीसरे मोर्चे की हलचल ने बीजेपी की रफ्तार घटा दी। चंद्रशेखर राव, वर्धन, चंद्रबाबू ने मायावती को पीएम क्या प्रोजेक्ट किया। बीजेपी नेता नाक-भौँह सिकोड़ने लगे। यों एबी वर्धन ने सिर्फ इतना कहा था- 'मायावती पीएम इन वेटिंग से बेहतर।' उनने कोई प्रोजेक्ट करने की बात नहीं कही। सरकार गिरी तो वैकल्पिक सरकार बनाने की बात भी नहीं। पर बीजेपी में बिना वजह खलबली मची। जो प्रकाश जावड़ेकर छुपा नहीं पाए। बीजेपी ने आडवाणी को प्रोजेक्ट कर दिया। तो क्या किसी और को पीएम प्रोजेक्ट करने का हक नहीं? कांग्रेस भी करना चाहे। तो अपने पप्पू को करे, या भप्पू को। बीजेपी को क्या। पर बात पते की। जैसी खलबली कांग्रेस-सपा में। वैसी ही भगदड़ बीजेपी में भी। आडवाणी ने बहुत जल्दी ही कह दिया- 'एंटी इनकम्बेंसी सरकार के खिलाफ नहीं होती। इनकम्बेंसी होती है- सांसदों -विधायकों के खिलाफ।' सो जिन्हें टिकट कटने का खतरा। वे सभी फौरन चुनाव के खिलाफ। ऐसे दो सांसद कर्नाटक के भी निकले। जिन्हें मनाने अनंत कुमार को बेंगलुरु दौड़ना पड़ा। वैसे भी तीन बीमार सांसदों का आना अभी पक्का नहीं। फौरी चुनाव से बिदकने वाले दो-चार भाजपाई सांसद गायब हुए। तो मनमोहन सरकार का बचना तय।
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