इम्तिहान की घड़ी में फिर वही 1993 जैसा हाल। तब शिबू सोरेन की पार्टी में चार सांसद थे। अब पांच सांसद। नरसिंह राव ने चारों से सौदा किया था। अजित सिंह के अब तीन सांसद। तब सात सांसद थे। राव के मैनेजरों ने सातों को दाना डाला। पर तीन-चार ही पटे। अब फिर वही शिबू सोरेन, वही अजित सिंह। यों 1989 के बाद कभी किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला। सो सरकार की नब्ज छोटी-छोटी पार्टियों के हाथ में।
गुरुवार को दिनभर दोनों खेमे अजित सिंह को पटाते रहे। मनमोहन ने लखनऊ हवाई अड्डे का नाम बदल दिया। अब हवाई अड्डे का नाम चौधरी चरण सिंह के नाम पर होगा। तीन साल पहले जब मुलायम सीएम थे। तो यूपी सरकार ने प्रस्ताव भेजा था। तब मनमोहन सरकार फाइल दबाकर बैठ गई। हवाई अड्डों के नाम के मामले में कांग्रेस का रवैया कौन नहीं जानता। हैदराबाद का हवाई अड्डा एनटीआर के नाम पर था। अब बदलकर राजीव गांधी के नाम पर। अजित सिंह को दिया तोहफा काफी हद तक रिश्वत। फिर भी अजित सिंह मानेंगे या नहीं। वक्त ही बताएगा। एबी वर्धन ने भी गुरुवार को अजित सिंह से मुलाकात की। मनमोहन अगर मजबूरी में शिबू सोरेन को मंत्री बनाएंगे। तो अजित सिंह मंत्री पद के बिना क्यों मानेंगे। जैसा अपन ने कल बताया। सरकार बेहद मुश्किल में। शिबू-अजित न माने। तो बाईस जुलाई की रात गिरेगी सरकार। वैसे भी अब तक पांच विश्वास प्रस्ताव पेश हुए। पांचों में सरकार गिरी। अब सिर्फ चार दिन बाकी। शुक्र, शनि, रवि, सोम। असली खेल पांचवें दिन मंगलवार को होगा। पर हर रोज कोई न कोई नया धमाका। यों तो अपन पहले ही लिख चुके थे। पर गुरुवार को तस्दीक हो गई। जब हरीश नागपाल पहले राजनाथ के घर पहुंचे। बाद में बीजेपी दफ्तर। अब विपक्ष के 264 वोटों में कोई शक-शुबा नहीं। हां, एक खुलासा कर दें। गुजरात-बिहार के एक-एक कांग्रेसी सांसद ने बीजेपी से टिकट मांगा है। एक गलतफहमी दूर भी कर दें। वाजपेयी बाईस को सदन में रहेंगे। लोकसभा सचिवालय को व्हील चेयर के लिए कह दिया गया। पर बीजेपी के धर्मेन्द्र का कोई अता-पता नहीं। कांग्रेस तो शिबू-अजित को पटाने में मशरूफ। पर चंद्रशेखर राव, मणिचेरनामई, विसमुत्थारी, थुप्सत्न चेवांग नई खिचड़ी पकाने लगे। चारों की अपनी-अपनी अलग राज्य की मांग। चारों की गुफ्तगू में हरित प्रदेश मांगने वाले अजित सिंह भी जुट गए। तो क्या मनमोहन राज्य पुनर्गठन आयोग बनाएंगे। पर फिलहाल दारोमदार शिबू पर। शिबू का दिनभर इंतजार होता रहा। शिबू की शर्त जगजाहिर हो चुकी- 'इक्कीस से पहले शपथ दिलाई जाए।' नहीं तो मधु कोड़ा सरकार गिराकर बीजेपी की मदद से सीएम बनेंगे। शिबू-अजित का नाम आते ही अपन को 1993 याद आ गया। कैसे बची थी राव सरकार। उन दिनों की जर्नलिज्म बड़ी रूमानी थी। दिनभर अफवाहों का बाजार गर्म रहता। कभी कोई मंत्री अजित सिंह के घर पहुंचता। तो कभी कोई मंत्री अजित सिंह के सांसदों के घर। कोई मंत्री शिबू सोरेन को पटाता। तो कोई शिबू के बाकी तीन साथियों को। अपन कभी अशोका रोड, कभी विंडसर पैलेस, कभी महादेव रोड चक्कर लगाते रहते। राव के मोहरे वहीं थे। फिर 29 जुलाई का दिन आ गया। जब नीचे सदन में वोटिंग का वक्त था। ऊपर प्रेस गैलरी खचाखच भरी थी। तभी अजित सिंह खड़े होकर चिल्लाए थे। अपनी पार्टी के सांसदों को खरीदने का आरोप लगाया था। तो सदन में हंगामा खड़ा हो गया था। बाहर सूरज डूब रहा था। अंदर लोकसभा इतिहास रच रही थी। सरकार बच गई। लोकतंत्र का मुंह काला हुआ। कुछ दिन बाद अजित सिंह खेमे के रामलखन यादव मंत्री बन गए। फिर एक दिन संसद के 64 नंबर कमरे में वाजपेयी की प्रेस कांफ्रेंस हुई। सनसनी फैल गई। जब वाजपेयी ने झारखंडी सांसदों को खरीदने का दस्तावेजी आरोप लगाया। उनने खुलासा किया- 'पंजाब नेशनल बैंक में रिश्वत का पैसा जमा करवाया गया।' दस्तावेजी सबूत थे- 'पहली-दूसरी अगस्त को नरोजी नगर के पीएनबी में चार खातों में एक करोड़ 62 लाख 80 हजार रुपए जमा हुए थे।' मुकदमा चला। चारों सांसद बच गए। पर ट्रायल कोर्ट ने अक्टूबर 2000 में नरसिंह राव-बूटा सिंह को तीन-तीन साल की सजा सुनाई। दोनों पंद्रह मार्च 2002 को हाईकोर्ट से बरी हुए। कोर्ट ने कहा- 'सुरेश महतो भरोसेमंद गवाह नहीं।' पर इसी गवाह ने बैंक खातों का खुलासा किया था।
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