दादा की चिट्ठी ने तो बवाल खड़ा कर दिया। चिट्ठी कैसे लीक हुई। अब इसकी जांच होगी। चिट्ठी तो पढ़ने के बाद फटनी थी। विस्फोटक चिट्ठी से दादा कटघरे में खड़े हो गए। चिट्ठी में दादा ने बीजेपी के साथ वोट पर ऐतराज किया। दादा जब स्पीकर पद को निष्पक्ष बता रहे थे। तभी बीजेपी से अपनी एलर्जी भी जाहिर कर गए। कांग्रेस भले दादा के कदम पर फूली न समाए। जयंती नटराजन बोली- 'सोमनाथ चटर्जी का अब किसी पार्टी से कोई सरोकार नहीं है।' इतना बताना जरूरी- दादा की बोलपुर सीट अबके रिजर्व हो गई। खैर बात दादा की चिट्ठी की।
लेफ्ट में तो चिट्ठी के बाद मुर्दनी छा गई। दादा सीपीएम के लिए इतनी मुसीबत खड़ी करेंगे। पोलित ब्यूरो ने सोचा नहीं होगा। पर दादा तो खुद मुसीबत में। बीजेपी ने दादा को कटघरे में खड़ा किया। राजीव प्रताप रूढ़ी बोले- 'इससे साफ हो गया- सोमनाथ कितने पक्षपाती।' लेफ्ट ने तो सवाल नहीं उठाया। पर बीजेपी ने उठाया। बीजेपी ने पूछा- 'अगर वह उस पार्टी का कहना नहीं मानते। जिसके टिकट पर वह चुनकर आए। तो सीपीएम को अनुच्छेद-10 के तहत अनुशासनात्मक कदम का हक।' पर बीजेपी ने फिर भी दादा से इस्तीफा नहीं मांगा। रूढ़ी बोले- 'दादा अपनी अंतरात्मा टटोलें।'जब एक-एक सांसद पर सांस अटकी हो। तो लेफ्ट के लिए भी दादा का वोट बेहद जरूरी। दादा सरकार गिराने के हक में नहीं दिखते। सो अब लेफ्ट भी दादा की उम्मीद छोड़ दें। सांसदों की खरीद-फरोख्त का खेल तो शुरू हो चुका। जुबान से दहशत फैलाने का खेल भी चालू। अपन राहुल बाबा को इतना खिलाड़ी नहीं समझते थे। पर वह तो उम्दा किस्म के खिलाड़ी निकले। रायबरेली जाकर बोले- 'विपक्ष के युवा सांसद भी एटमी करार के हक में। कई सांसद मुझसे प्राइवेट तौर पर बात कर चुके।' राहुल के इस बयान से बीजेपी में खलबली मची। सो राजीव प्रताप रूढ़ी ने चुनौती दी- 'राहुल गांधी हवा में तीर न चलाएं। उस विपक्षी सांसद का नाम बताएं। जिसने एटमी करार का समर्थन किया।' बात राहुल बाबा की चली। तो बताते जाएं। उनसे जब सरकार बचने की उम्मीद पर पूछा। तो वह बोले- 'मैं कोई भविष्यवाणी नहीं करता। मतदान हो जाने दीजिए। उसके बाद हम देखेंगे।' राहुल बाबा की जगह इंदिरा गांधी का बयान होता। तो अपन इसका मतलब निकालते। हम देखेंगे का मतलब होता- 'एक बार विश्वासमत जीत लें। उसके बाद लोकसभा भंग करेंगे।' यों यूपीए की मौजूदा हालत बेहद पतली। आज की तारीख में सरकार के पक्ष में 261 सांसद। टीआरएस के दो समेत सरकार के खिलाफ 266 सांसद। अपन को ममता-उमर अब्दुल्ला के एबस्टेन होने का अंदेशा। कांग्रेस ने अजित सिंह, थुप्सत्न चेवांग, विसमुत्थारी के पांच वोट जुगाड़ भी लिए। तो विपक्ष की बराबरी पर आएगी। जहां तक देवगौड़ा समेत जेडीएस के दो सांसदों का सवाल। तो अपनी खबर कुछ चौंकाने वाली। एम शिवन्ना को येदुरप्पा ने काफी हद तक पटा लिया। देवगौड़ा का वोट सरकार को पड़ा। शिवन्ना का वोट विपक्ष को पड़ा। तो जेडीएस हराने-जिताने के खेल से बाहर। तब दोनों पालों में 267-267 हो जाएंगे। फिर सारा दारोमदार शिबू सोरेन के पांच सांसदों पर। शिबू राजनीति के असली सौदागर। नरसिंह राव को भी शिबू सोरेन ने बचाया था। कैसे बचाया था- किसको नहीं मालूम। वैसे बात विश्वास मत की है, अविश्वास मत की नहीं। यों तो 26 अविश्वास मत पेश हुए। पर अविश्वास मत के समय सिर्फ मोरारजी ने इस्तीफा दिया। जबकि विश्वास मत से पांच सरकारें गिर चुकी। छठा विश्वासमत मनमोहन सिंह का। सबसे पहले बीस अगस्त 1979 को चरण सिंह सरकार गिरी। उनने सदन में विश्वास मत रखने से पहले ही हार मान ली। फिर सात नवंबर 1990 को वीपी सिंह सरकार गिरी। तब बीजेपी-कांग्रेस ने हाथ मिलाया था। वीपी सिंह को 152 वोट पड़े। उनके खिलाफ 356 सांसद थे। तीसरी सरकार 28 मई 1996 को वाजपेयी की गिरी। उनने विश्वास मत तो रखा। पर मतविभाजन से पहले इस्तीफे का ऐलान कर दिया। चौथी सरकार 11 अप्रेल 1997 में देवगौड़ा की गिरी। तब भी कांग्रेस-बीजेपी ने हाथ मिलाया था। देवगौड़ा को 190 का समर्थन मिला। खिलाफ रहे 338 सांसद। पांचवीं सरकार 17 अप्रेल 1999 को वाजपेयी की गिरी। सिर्फ एक वोट से। बहुत खतरनाक है विश्वासमत।
आपकी प्रतिक्रिया