जो जैसे पटे। उसे वैसे ही पटाने की रणनीति। राजनीतिक कीमत चुकानी पड़े। तो चुकाने में हर्ज नहीं। थैलियों का मुंह खोलना पड़े। तो कोई झिझक नहीं। अबके तो थैलियों में रुपयों के बजाए डालर। भारत को रिएक्टर बेचने वाले अमेरिकी आ पहुंचे। दिल्ली के फाइव स्टार होटलों में अमेरिकीयों के कमरे बुक। मनमोहन सरकार बचेगी। तो अमेरिकीयों को चालीस हजार करोड़ का बिजनेस मिलेगा। सो सौ-दो सौ करोड़ की क्या हैसियत। बिकने वाले बिकेंगे, ओहदे वाले ओहदा लेंगे। कुछ रामलखन यादव भी होंगे। कुछ शिबू सोरेन और सूरजमंडल भी। नरसिंह राव को जब बहुमत साबित करना पड़ा। तो अपन ने दोनों तरह के सौदे होते देखे। भजन लाल नोटों से भरी डिक्कियों वाली कारें लेकर घूम रहे थे। विद्याचरण शुक्ल मंत्री पद का लालच देते घूम रहे थे।
भजन लाल की बात चली। तो बता दें, अब उन्हीं भजन लाल का बेटा कुलदीप कांग्रेस के गले की फांस। पार्टी से बर्खास्त। पर लोकसभा का निलंबन बाकी। निलंबन होने वाला था। तो इस्तीफा फैक्स कर दिया। जो दादा ने मंजूर नहीं किया। अब वोट डालने से कौन रोकेगा। दादा की बात चली। तो बताते जाएं। आज नहीं, तो कल इस्तीफा होगा। पर बात राव जमाने के शक्ति परीक्षण की। भजन लाल की कारें महादेव रोड पर घूमीं। तो सबके कान खड़े हुए थे। वहीं रहते थे राम लखन। राम लखन को केबिनेट मंत्री भी बनाना पड़ा। जो न राम थे, न लखन। पर राव-राम की दोस्ती परवान चढ़ी। तो दोनों के बेटों ने मिलकर सरकार को 184 करोड़ का चूना भी लगाया। ऐसी यूरिया खाद मंगवाई, जो आज तक नहीं आई। तब की तरह अब भी दोनों तरह के जुगाड़ शुरू। तेलंगाना के चंद्रशेखर राव को रामलखन यादव बनाने की पेशकश। प्रणव दा ने खुद चंद्रशेखर से बात की। प्रणव दा ही थे तेलंगाना बनाने वाली कमेटी के अध्यक्ष। तीन साल इंतजार करके टीआरएस को यूपीए छोड़ना पड़ा। यों टीआरएस का निलंबित सांसद नरेंद्र पट चुका। बाकी बचे टीआरएस के दो सांसद। चंद्रशेखर जैसी जुगत देवगौड़ा-अजित सिंह से भी भिड़ाने की कोशिश। जेडीएस के विरेंद्र कुमार लेफ्ट को चुन चुके। अब देवगौड़ा के साथ सिर्फ एक सांसद। राजनीतिक सौदेबाजी तो फारुख-उमर बाप-बेटे से भी शुरू। महबूबा मुफ्ती को बुलाने के लिए उड़नखटोला भेजा। तो उमर अब्दुल्ला नाराज। प्रणव दा ने मान मनोव्वल की। पर उमर अब्दुल्ला ने उसके बाद करात से मुलाकात की। तो प्रणव दा ने लंदन बैठे फारुख को फोन लगाया। फारुख ने वादा तो किया है। पर एक म्यान में दो तलवारें आएंगी कैसे। जम्मू कश्मीर की चुनावी रणनीति भी हाथों हाथ तय होगी। जहां एक तरफ बाहर बैठों को पटाने की कोशिश। वहां घर में बखेड़ा खड़ा हो गया। पांच सांसदों वाले शिबू सोरेन की एनडीए से गुटर-पुटर शुरू। झारखंड की मधु कोड़ा सरकार भी हाथों हाथ गिर जाए। तो अपन को हैरानी नहीं होनी। लो अब अपन पूरी कहानी सुना दें। शिबू खेमा छोड़कर सरकार के पक्ष में ताजा आंकड़ा 263 का। अपन ने इसमें ओवेसी, ई. अहमद, महबूबा, देलकर, आठवाले, नुकुलदास राय, टीआरएस के नरेंद्र, तृणमूल की ममता, मिजो फ्रंट के वनलाललवमा, यूपी के बालेश्वर यादव, लद्दाख के थूप्सत्न चेवांग, केरल कांग्रेस के फ्रांसिस जार्ज भी गिन लिए। एमडीएमके के चार में से दो भी यूपीए में गिन लिए। एमडीएमके के बाकी दोनों करार के खिलाफ। यों अपने हिसाब से झारखंड के बाबूलाल मरांडी, असम के विशमुत्थारी, यूपी के हरीश नागपाल, मणिपुर के चेरनामई करार के खिलाफ। केरल के इंडीपेंडेंट सेबेस्टियन पाल तो लेफ्ट के साथ हैं ही। टीआरएस - नेशनल कांफ्रेंस भी फिलहाल सरकार के खिलाफ। अपन अजित सिंह-देवगौड़ा के पांच सांसदों को बाजू रखें। तो फिलहाल शिबू समेत कांग्रेस के पास 268 ही। जबकि सरकार के खिलाफ 269 का आंकड़ा। बाकी बची तीन सीटें। दो सीटें खाली, पीसी थामस को वोट का हक नहीं।
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