यूएनपीए टूटने का ऐलान नहीं हुआ। पर यूएनपीए टूट गया। अब लेफ्ट समर्थन वापसी की चिट्ठी राष्ट्रपति को आज दे। या पीएम के टोक्यो लौटने से बाद दे। मनमोहन की सरकार भी बच गई। करार भी होगा। यूएनपीए मीटिंग के बाद चौटाला-चंद्रबाबू एकता की डुगडुगी बजाते रहे। करार पर राष्ट्रीय बहस का ऐलान किया। पर मुलायम सिंह एक शब्द नहीं बोले। अपन तभी समझ गए थे। जब अमर सिंह ने वही पुरानी दलील दोहराई- 'करार से ज्यादा खतरा सांप्रदायिकता से।'
अब इसके बाद क्या बचा था। चंद्रबाबू अपना सा मुंह लेकर हैदराबाद लौट गए। मुलायम-अमर यूएनपीए लीडरों को करार के पक्ष मे समझा नहीं सके। बुधवार की रात पीएमओ से बयान जारी करवाना भी बेकार गया। पर मीटिंग में वैज्ञानिकों से राय लेने का तुरुप काम आया। जब अमर सिंह ने यह ऐलान किया। अपन समझ गए थे। मुलायम अब एपीजे अब्दुल कलाम को ढाल बनाकर समर्थन करेंगे। अब्दुल कलाम पहले ही एटमी करार का समर्थन कर चुके थे। चौटाला से पूछा- 'क्या अब्दुल कलाम से पूछेंगे?' उनने कहा- 'उनसे भी राय लेंगे।' अमर सिंह से कहा- 'अब्दुल कलाम तो पहले ही करार का समर्थन कर चुके।' तिलमिलाते अमर सिंह बोले- 'आपके सामने किया होगा, हमारे सामने नहीं किया।' आखिर वही हुआ। इधर मीटिंग खत्म हुई। उधर मुलायम-अमर-रामगोपाल ने अब्दुल कलाम की राह ली। कलाम के घर से निकलते ही वही कहा। जो कहना था- 'करार देश के लिए अच्छा है।' अब मुलायम को मुस्लिम विरोध का डर भी खत्म। आखिर अब्दुल कलाम का समर्थन ढाल बना। मनमोहन को मुलायम पर पूरा भरोसा था। इसीलिए तो सुबह ही श्यामसरन ने कह दिया था- 'पीएम इतवार की रात टोक्यो रवाना होंगे। जहां जी-8 में करार और क्लाइमेट पर बात होगी।' लेफ्ट तो शायद आज पीएम से पूछेगा- 'कब जा रहे हो, सेफगार्ड करार के लिए।' जैसे ही विएना डेलीगेशन जाएगा। वैसे ही राष्ट्रपति भवन समर्थन वापसी की चिट्ठी। श्यामसरन ने कहा- 'सेफगार्ड ड्राफ्ट मोटे तौर पर तय। छोटी-मोटी चीजें बाकी। पीएम की हरी झंडी मिलते ही रवाना होंगे।' अपन ने गुरुवार को लिखा था- 'नौ-दस को लौटकर आईएईए पर फैसला होगा।' यही बात अब करीब-करीब तय। यूएनपीए एकजुट बताकर चौटाला प्रेस कांफ्रेंस में ताल ठोक रहे थे- 'पीएम के टोक्यो रवाना होने से पहले कोई फैसला नहीं होगा।' पर चौटाला ने दिल्ली भी पार नहीं की होगी। मुलायम ने दगा दे दिया। बोले- 'अब्दुल कलाम ने जो कहा, यूएनपीए लीडरों को बता दूंगा।' मुलायम-अमर ने सोनिया-प्रणव से किया वादा निभाया। बुधवार रात जब एमके नारायणन ने मुलायम-अमर को एटमी करार समझाया। तो दोनों ने नारायणन से कहा था- 'प्रधानमंत्री खुद करार पर देश की गलतफहमियां दूर करें।' घंटे भर बाद ही पीएमओ से बयान जारी हुआ। बयान में अपन को कुछ भी नया नहीं लगा। वही घिसी-पिटी पुरानी बातें। जो हाईड एक्ट से मेल नहीं खाती। अब इस दलील को कौन माने- 'वन-टू-थ्री के तहत करार होते ही हाईड एक्ट खत्म।' यह पूरे देश को बेवकूफ बनाने वाली बात। हाईड एक्ट से ही वन-टू-थ्री एग्रीमेंट का रास्ता खुला। वरना उस देश से वन-टू-थ्री एग्रीमेंट हो ही नहीं सकता। जिसने एनपीटी पर दस्तखत न किए हों। बिना एनपीटी पर दस्तखत किए हाईड एक्ट ने कुछ शर्तें लगाई। वह शर्तें वन-टू-थ्री एग्रीमेंट से खत्म कैसे होंगी। पर मुलायम पीएमओ के बयान से गदगद थे। मुलायम-अमर की जोड़ी ने यूएनपीए के सामने पीएमओ का स्पष्टीकरण रखा। पर यूएनपीए ने ठुकरा दिया। मुलायम-अमर ने सरकार गिरने पर बीजेपी का हौव्वा दिखाया। पर इससे भी चंद्रबाबू-चौटाला-मरांडी-गोस्वामी बेअसर रहे। आखिर तय हुआ- 'पीएमओ के स्पष्टीकरण पर वैज्ञानिकों की सलाह ले ली जाए।' मुलायम सिंह को रास्ता मिल गया। आखिर वही हुआ।
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