देश के मिजाज का थर्मामीटर बन गया है गुजरात

Publsihed: 23.Oct.2017, 22:58

अजय सेतिया / गुजरात का चुनाव गले की फांस बन गया है | मोदी के पीएम बनते ही भाजपा बदल चुकी है | लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा की चौकड़ी दिखी थी | जब नरेंद्र मोदी , राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और अरुण जेटली इक्कठे बैठे थे | शायद वह तस्वीर सामूहिक नेतृत्व की आख़िरी तस्वीर थी | अपन ने 30 साल तक भाजपा नेताओं से सामूहिक नेतृत्व का राग सुना था | पर अब भाजपा में कोई सामूहिक नेतृत्व की बात जुमले  के तौर पर भी नहीं कहता | अब अगर भाजपा बिहार में हारती है तो रणनीति की विफलता का ठीकरा मोदी के सिर फूटता है | दिल्ली हारती है, तो भी मोदी के सिर फूटता है | सामूहिक जिम्मेदारी अब नहीं होती | क्योंकि यूपी,उत्तराखंड जीतने का श्रेय भी मोदी लेते हैं | इस लिए अब अगर भाजपा गुजरात हारेगी तो ठीकरा मोदी के सिर ही फूटेगा | हिमाचल जीते भी, तो कोई फर्क नहीं पडेगा | अब गुजरात बनाम देश हो गया है | भाजपा गुजरात में हारी तो मतलब 2019 भी हारेंगे | गुजरात देश के मिजाज का थर्मामीटर बन कर उभर रहा है | यही कांग्रेस और भाजपा में बड़ा फर्क है | जहां जीत का श्रेय तो सोनिया राहुल को मिलता है, पर हार का ठीकरा प्रादेशिक नेतृत्व के सिर फूटता है | भाजपा में जीत का श्रेय मोदी लेंगे, तो हार का ठीकरा भी उन के सिर फूटेगा | यह नरेंद्र भाई मोदी अच्छी तरह जानते हैं | वह जानते हैं कि गुजरात हार गए, तो उन का एक छत्र राज खत्म हो जाएगा | सरकार और पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की बात फिर उठ आएगी | जीएसटी और नोटबंदी के भले ही मोदी अभी भी गुण गा रहे हों | पर संघ परिवार से नीतियों में सुधार का आदेश आ चुका है | और यह आदेश सितम्बर के पहले हफ्ते से आया पडा है | जब सरसंघ चालक ने अरुण जेटली को वृन्दावन में बुला कर दो टूक फीड बैक दिया था | फीड बैक नोटबंदी और जीएसटी ले कर था | व्यापारियों ने नोटबंदी की मार तो सह ली | पर जीएसटी ने तो उन्हें बर्बाद ही कर दिया | संघ ने जेटली के जरिए मोदी को बात पहुंचा दी थी | अरुण जेटली के बस में सुधार की गुंजाईश थी ही नहीं | जितनी थोड़ी बहुत थी , उन ने कुछ मदों में जीएसटी घटा कर की | पर "कमल का फूल , हमारी भूल " कहने वाला गुजरात संतुष्ट नहीं हुआ | मोदी जनता का मिजाज समझने में खुद को माहिर मानते हैं | पर मोदी को जो अब गुजरात में जा कर समझ आया , उसे संघ ने दो महीने पहले भांप लिया था | मोदी की आईबी और अमित शाह का सारा भाजपा अमला कोई फीड बैक नहीं दे पाया | अलबत्ता वाह वाह का फीड बैक ही देता रहा | जो मोदी को गुजरात जाने के बाद समझ आया | तो मोदी सफाई देते घूम रहे हैं कि जीएसटी लागू करने में तो कांग्रेस भी शामिल थी | क्या यह तर्क  किसी के गले उतरेगा |  सब जानते हैं कि कांग्रेस आम सहमती नहीं बना पाई थी , इस लिए उस ने जीएसटी लागू नहीं किया था | वरना यूपीए सरकार भी तो जीएसटी लागू करवा सकती थी | कांग्रेस ने संसद के कई सत्रों में इसे रोकने की कोशिश की थी | कांग्रेस की तीन मांगे कोई नहीं भुला होगा | पहली मांग थी- संविधान संशोधन में लिखा जाए कि अधिकतम जीएसटी 18 फीसदी होगी | दूसरी मांग थी-कि विवाद का निपटारा सुप्रीमकोर्ट के जज की कमेटी करे | तीसरी मांग थी - अन्तर्राज्यीय एक फीसदी टेक्स वापस लिया जाए | कांग्रेस लंबा समय तक अड़ी रही थी | जब कांग्रेस ने बिना बड़े बदलावों के ही बिल पास करवा दिया | तो अपन को हैरानी हुई थी | अपन 28 फीसदी के लिए कांग्रेस को दोषी मानते थे | वह न मानती तो बिल पास न होता | पर कांग्रेस की होशियारी अब समझ आ रही है | मोदी अपने ही बुने जाल में फंस गए हैं और राहुल गांधी मजा ले रहे हैं | राहुल गांधी ने गुजरात में डेरा डाल लिया है | हिमाचल उन ने वीर भद्र सिंह पर छोड़ दिया है | पर बात राहुल गांधी की | उन ने सोमवार को गुजरात में कहा- "जेटली जी और मोदी जी कहते हैं कि कांग्रेस की बात जीएसटी पर नहीं सुनेंगे. ..जीएसटी लागू कर दीजिए... लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि इनका जो जीएसटी है यह जीएसटी नहीं.... यह 'गब्बर सिंह टैक्स' है..पूरे देश की इकॉनमी को मोदी जी ने चौपट कर दिया है |" अब आप बताईए जीएसटी से परेशान गुजरात का व्यापारी मोदी की बात सुनेगा या राहुल गांधी की | अपन यहाँ यह भी याद दिला दें कि जब जीएसटी लागू हुआ था | तो कांग्रेस ने बहिष्कार किया था | कांग्रेस की राज्य सरकारों ने कुछ भी किया हो | राहुल के पास दिखाने को वह बहिष्कार का रिकार्ड है, जब मोदी सरकार जल्दबाजी में लागू कर रही थी | आप गुजरात में पाटीदारों की खरीद फरोख्त या दूसरी जातियों के नेताओं की खरीद फरोख्त की बात छोड़ दीजिए | चुनाव की गाडी जीएसटी पर अटकी है | चुनाव आयोग सफाई दे रहा है कि बाढ़ के कारण गुजरात के चुनाव का एलान नहीं हुआ | पर सच मानिए उलझन जीएसटी को दुरुस्त करने की है | सुनते हैं 10 नवम्बर की जीएसटी की मीटिंग बड़े बदलाव करने के लिए ही है | ताकि गुजरात के व्यापारियों का गुस्सा शांत हो सके | अब तो गुजरात के व्यापारी शहरों में मोदी और अमित शाह के पोस्टर भी लगाने नहीं दे रहे | 

 

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