आपने आज खबर पढ़ ली होगी। मनमोहन की महंगाई रिकार्ड तोड़ गई। अपन ने यह भविष्यवाणी पिछले हफ्ते पांच जून को की थी। जब अपन ने लिखा- 'मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे।' तब अपन ने मनमोहन के 1995 वाले रिकार्ड की बात की। जो नौ फीसदी मुद्रास्फीति का था। यों तो शुक्रवार को वह रिकार्ड टूट गया। पर सरकार नहीं मानी। असल में सरकार का इरादा अपन को शुगर कोटेट कुनीन खिलाने का। सो 31 मई के असली आंकड़े दो महीने बाद पता चलेंगे। जो सवा नौ फीसदी से ऊपर होंगे। पर सरकार कितना छुपाएगी। किसी ने हजामत कराते समय नाई से पूछा- 'मेरे सिर पर कितने बाल?'
नाई ने कहा- 'थोड़ी देर रुक जाओ। अभी सामने आ जाएंगे।' सो इस झूठ के आंकड़े की पोल आठ अगस्त को खुल जाएगी। पर अपन को अगस्त तक इंतजार की जरूरत नहीं। अगले शुक्रवार देख लेना। मुद्रास्फीति नौ के पार होगी। तब मनमोहन अपना सितंबर 1995 वाला रिकार्ड तोड़ देंगे। ताकि सनद रहे सो बता दें। जुलाई आते-आते मुद्रास्फीति दस फीसदी से पार न हो। तो अपन को कहना। अपन को मनमोहन के पीएम बनने वाला दिन नहीं भूलता। सेंसेक्स धड़ाम से गिरा था। बाजार को पता था- कांग्रेस का राज कैसा होगा। ऊपर से मनमोहन पीएम हो गए। तो बाजार की प्रतिक्रिया 'नीम चढ़ा करेला' वाली थी। बाजार ने सरकार की नब्ज तभी पहचान ली। जो बहुतेरे लोगों ने तब नहीं पहचानी। अब जब चार साल बीत गए। तो बाजार की आशंका सच निकली। तब सिर्फ सेंसेक्स नहीं चढ़ा था। मुद्रास्फीति भी चढ़ी थी। अगस्त 2004 का सरकारी आंकड़ा भी अपने सामने। तब मुद्रास्फीति छलांग लगाकर 8.33 हो गई थी। शुक्रवार को मनमोहन सरकार ने अपना रिकार्ड तो तोड़ ही दिया। अपने पहले वाले रिकार्ड से प्वाइंट 57 ज्यादा। बजट के वक्त अपन को चिदंबरम सब्जबाग दिखा रहे थे। पर अब बाजार से सब्जियां गायब। जब यूपीए सरकार बनी थी। तो अपन ने लिखा था- कूटनीति-आर्थिक नीति पर कांग्रेस-लेफ्ट में छत्तीस का आंकड़ा। सो आने वाले दिनों में इन दोनों मुद्दों पर दोनों में जूतम-पैजार होगी। अपन समझते थे- सरकार ज्यादा दिन नहीं चलनी। दोनों मुद्दों पर चार सालों से टकराव जारी। पर सरकार का बाल भी बांका नहीं हुआ। लेफ्ट ने सिर्फ भौंकने का काम किया। काटने का नहीं। नतीजा निकला- सरकार आम जनता को काटने लगी। माफ करिएगा- भौंकने और काटने वाला जुमला अपना नहीं। तीन साल पहले जब महंगाई सिर चढ़कर बोली। यह जुमला तब अपने सीताराम येचुरी का था। उनने कहा था- 'सरकार यह न समझे, हम सिर्फ भौंकते हैं। भौंकने वाले कभी-कभी काटते भी हैं।' अपन इंतजार करते रहे- एक दिन लेफ्ट मनमोहन सरकार को काटेगा। तब आम आदमी बचेगा। पर मनमोहन सरकार आम आदमी को काटती रही। लेफ्ट भौँकता रहा। आम आदमी ने सरकार को अपना वफादार दोस्त समझा था। पर आम आदमी गलत साबित हुआ। पर बात लेफ्ट की। शुक्रवार को लेफ्टियों ने एक बार फिर भड़ास निकाली। नीलोत्पल बसु बोले- 'देश की आर्थिक हालत बेहद गंभीर। जब तक सरकार की नीतियां नहीं बदलेंगी। आम आदमी को निजात नहीं मिलेगी। हम नहीं समझते, सरकार हालात को संभालने के कदम उठा रही है।' बीजेपी के राजीव प्रताप रूढ़ी को तो बरसना ही था। सो वह सरकार पर बरसे। पर बीजेपी का सरकार पर बरसना नीलोत्पल बसु को नहीं पचा। बोले- 'बीजेपी सिर्फ बयानबाजी करती है।' अब यही बात बीजेपी वाले लेफ्टियों के बारे में कहें। तो ज्यादा तर्कसंगत लगेगी। सो अपन नीलोत्पल के बयान को गधे का गुस्सा कुम्हार पर कहें। तो शायद गलत नहीं होगा। पर बात सोनिया-मनमोहन-चिदंबरम की सरकार और कांग्रेस की। इन चारों का दिलासा सुनते-सुनते अपनी अंखियों के नीर सूख गए। शकील अहमद का पुराना राग फिर सुना- 'हम क्या करें, सारी दुनिया में बढ़ रही है महंगाई।' महंगाई 'खामोशी' फिल्म का गाना गाने लगी- 'आज मैं ऊपर, आम आदमी नीचे।'
आपकी प्रतिक्रिया