सामाजिक सरोकार पर बाकी मीडिया इतना गंभीर नहीं। जितना अपन। सो मीडिया की बेरुखी पर सेमीनार हुआ। तो अपन सोशल वर्करों की खरी-खरी सुनकर आए। मौका था- 'बाल मजदूरी और शिक्षा पर दक्षिण एशिया सम्मेलन का।' यों तो बारह जून बाल मजदूरी के खिलाफ दिन था। जो दुनियाभर में मनाया गया। कैलाश सत्यार्थी के ग्लोबल मार्च ने तीन दिन का सम्मेलन रखा। तो उसमें एक सेशन मीडिया की बेरुखी पर भी हुआ। दिल्ली के कई खबरची मौजूद थे। कई अखबारों के ब्यूरो चीफ और राजनीतिक संपादक। सोशल वर्करों ने अपना गुस्सा उतारा।
तो अपन लोगों ने खबर के गुर सिखाए। वक्त के साथ बदले मीडिया की हकीकत बताई। पर ऐसा नहीं, जो सारा मीडिया बजारू हो गया हो। कम से कम प्रिंट मीडिया समाज से वैसा नहीं कटा। जैसा विजुअल मीडिया। ना विजुअल मीडिया की तरह अपन भूत-प्रेतों के शिकार हुए। ना थर्ड क्लास हंसोड़ों के गुलाम। पर बात सिर्फ मीडिया सेशन की नहीं। बाल मजदूरों को आजाद कराने के कानूनी पेचों पर किताब रिलीज हुई। किताब लिखी है- एमपी नायर ने। जो हाल ही तक यूनाइटेड नेशन में थे। पहले दिन लेबर मिनिस्टर आस्कर फर्नाडीस आए। यूनाइटेड नेशन के गैरी लेविस भी मौजूद थे। आस्कर की भले ही राजनीतिक जमीन न हो। पर सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव गहरा। जो अपन ने पहली बार नहीं, अलबत्ता कई बार देखा। सुबह विदेश से पहुंचे। बच्चों के सम्मेलन में बोलकर विदेश चले गए। अपन मंत्रियों पर विदेशी दौरों पर लगाई बंदिश की बात नहीं कर रहे। जो हाल ही में मनमोहन सिंह ने लगाई थी। आस्कर बाल मजदूरी को जड़ से मिटाने की कसम खा गए। वह अपने लिए ज्यादा महत्वपूर्ण। गुरुवार को दूसरा दिन था। आना तो पाकिस्तानी मानवाधिकार एक्टिविस्ट अंसार बर्नी को भी था। पर अपनी सरकार ने बर्नी को पिछले हफ्ते एयरपोर्ट से ही भेज दिया। तो अब वह क्यों आते। यों पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल के डेलीगेट मौजूद थे। बर्नी तो नहीं पहुंचे। पर अपनी दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित जरूर आई। अपन बाकी मुख्यमंत्रियों की बात नहीं जानते। पर शीला दीक्षित की बाल मजदूरी पर गंभीरता जग-जाहिर। पर इसे कलंक बताते हुए बोली- 'अभी भी यह कलंक पूरी तरह मिटा नहीं। जितना काम होना चाहिए था, हुआ नहीं।' ताकि सनद रहे सो बताते जाएं। अपने नरेंद्र मोदी ने बाल मजदूरों को आजाद कराने का रिकार्ड बनाया। गुरुवार को सम्मेलन में तीन मुद्दों पर गंभीर बहस हुई। तीनों तरह के लोग अलग-अलग कमरों में बैठकर मंथन में जुटे। मीडिया की बात तो अपन ने बता ही दी। दूसरा सेशन बाल मजदूरी से आजाद कराए गए बच्चों का हुआ। तीसरा सेशन समाज की भूमिका और जिम्मेदारी पर। गुरुवार के आखिरी सम्मेलन के मुखिया थे अपने अर्जुन सिंह। आना तो अपने अंशुमन सिंह ने भी था। वही अंशुमन जो गुजरात-राजस्थान के गवर्नर थे। बताते जाएं- अपने विराट नगर के बाल आश्रम ट्रस्ट के चेयरमैन हैं अंशुमन। पर वह नहीं पहुंचे। रहनुमाई की सांसद रविप्रकाश वर्मा ने। रविप्रकाश लोकसभा के ऐसे एकमात्र सांसद। जिनकी अपन ने एजुकेशन पर गंभीरता देखी। संसद में पूछे गए ज्यादातर सवालों का वास्ता एजुकेशन से रहा। पर बात अर्जुन सिंह की। अर्जुन सिंह के बारे में अपन बता दें। वह पहले पहल अपने मध्यप्रदेश में शिक्षा मंत्री बने थे। फिर चीफ मिनिस्टर बने। देश के पहले मानव संसाधन मंत्री भी अर्जुन सिंह बने। उसी कुर्सी पर अर्जुन सिंह की यह दूसरी पारी। अर्जुन सिंह चौरासी साल के हो गए। यों तो दो-एक साल से गवर्नर बनाकर भेजने की चर्चा। पर सोमवार को राहुल गांधी से मुलाकात तय हुई। तो दिल्ली से रवानगी की चर्चा फिर से चली। पर आखिरी वक्त पर मुलाकात टल गई। फैसले का अपन को नहीं पता। अर्जुन सिंह बड़ी बात कह गए। कह गए- 'शिक्षा के अधिकार का कानून अगले सत्र में बनाएंगे। सर्वशिक्षा अभियान को बचपन बचाओ आंदोलन से जोड़ेंगे।' आप कहेंगे, शिक्षा का अधिकार कानून तो बन चुका। हां, बना था। पर स्टेट सब्जक्ट में जुड़ गया। अब कानून बनाकर लाजिमी किया जाएगा।
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