अपने शिवराज पाटिल अब दोहरी मुसीबत में। अफजल की पैरवी पर बीजेपी हमलावर थी ही। हरियाणा में बेटे-बहू के नाम पर धंधे का राज भी खुल गया। मंत्री सत्ता का कैसे दुरुपयोग करते हैं। यह उसकी जीती जागती मिसाल। हरियाणा में सरकार अपनी। सो कांग्रेसी मंत्रियों को खुल खेलने की छूट। केंद्र के गृहमंत्री होकर बहती गंगा में हाथ न धोएं। तो लोग क्या कहेंगे। पर अपन आज भ्रष्टाचार की इस बहती गंगा की बात नहीं कर रहे। अलबत्ता पाटिल के उस बयान की परतें उधेड़ेंगे। जिसमें उनने अफजल-सरबजीत की बराबरी की।
उनने कहा था- 'हम सरबजीत की फांसी माफ करने की बात करें। अफजल को फांसी देने की बात करें। तो अच्छा नहीं लगता।' इस तरह उनने अफजल को फांसी नहीं देने की नियत बता दी। पर अफजल गुरु को भी पाटिल की यह दलील नहीं जंची। अफजल ने आईएएनएस को इंटरव्यू देकर बवाल मचा दिया। बोले- 'मेरा और सरबजीत का कोई मुकाबला नहीं। मैं कश्मीर की आजादी के लिए जद्दोजहद कर रहा हूं।' अफजल के इंटरव्यू से बीजेपी और हमलावर हो गई। अफजल जिसने संसद पर हमले की साजिश रची। अपन उस आतंकी हमले के चश्मदीद गवाह। अपन अकेले शख्स थे। जो गोलियों की आवाज सुनकर गोल इमारत से बाहर निकले। अपने सामने गोलियां चलती देखी। सुरक्षाकर्मियों ने अपन को अंदर घुसने को कहा। तब तक दरवाजे बंद होने शुरू हो गए थे। अपन गोल-गोल घूमते तीसरे दरवाजे तक पहुंचे। जो बंद हो ही रहा था। एक सुरक्षाकर्मी ने खुलवाकर अपन को अंदर धकेला। बाहर जब धांय-धांय हो रही थी। तो अपन पहली मंजिल के बरामदे की मुंडेर पर लेटकर झांक रहे थे। साढ़े छह साल पहले की वारदात आज भी अपने जेहन में तरोताजा। सारे हमलावर तो मौके पर ही मारे गए। हमले की रणनीति बनाने वाले जल्द ही दबोच लिए गए। अफजल गुरु उन्हीं में से एक। अफजल गुरु वारदात की साजिश से इनकार भी नहीं करता। वह तो ताजा इंटरव्यू में भी बोला- 'फांसी मिली, तो कश्मीर का शहीद कहलाऊंगा।' सुप्रीम कोर्ट ने एक नहीं। दो-दो बार फांसी का फैसला सुनाया। पर मनमोहन सरकार आतंकवाद पर भी राजनीति को उतारू। जो बात बीजेपी वाले कह रहे थे। अब वही बात अफजल गुरु ने कह दी। उसने कहा- 'सरकार राजनीतिक वजह से फैसला नहीं कर रही।' बीजेपी के शाहनवाज हुसैन बोले- 'अफजल भी जानता है। कांग्रेस उसका मुस्लिम वोट बैंक के लिए इस्तेमाल कर रही है।' अफजल ने इंटरव्यू में कांग्रेस की पोल खोलकर रख दी। सो सोमवार को सारी बीजेपी हमलावर हुई। मुंबई में राजनाथ सिंह ने मोर्चा खोला। दिल्ली में राजीव प्रताप रूढ़ी ने। शाहनवाज हुसैन सबसे ज्यादा हमलावर हुए। अफजल ने और क्या कहा। जरा बताते जाएं। बोला- 'कांग्रेस राजनीतिक कारणों से फैसला नहीं कर सकती। आडवाणी प्रधानमंत्री बनें। तो जल्द फैसला करेंगे।' अफजल के इंटरव्यू से दिल्ली की राजनीति में भूकंप आ गया। यूपीए सरकार चौराहे पर नंगी हो गई। अपन याद करा दें- सुप्रीम कोर्ट ने अफजल को फांसी की सजा 2004 में सुनाई थी। तब कांग्रेस की सरकार बन गई थी। सो फांसी लटक गई। अफजल ने माफी की अर्जी चार अक्टूबर 2006 को दी। पौने दो साल हो गए। इस बीच सुप्रीम कोर्ट दुबारा फैसला कर चुकी। कांग्रेस हर चुनाव में इस सवाल से जूझती रही। हारती रही। पर अफजल की पैरवी नहीं छोड़ी। अब तो गृहमंत्री खुल्लम-खुल्ला पैरवी करने लगे। पर अफजल भी कांग्रेस के राजनीतिक स्वार्थ को समझ गया। वह बोला- 'मैं अब फांसी की माफी नहीं चाहता।' अब क्या करेगी सरकार। सरकार में तो मुर्दनी छा गई। कांग्रेस की बोलती बंद हो गई। सोमवार को अपन ने जयंती नटराजन से पूछा। तो वह बोली- 'अफजल के इंटरव्यू की विश्वसनीयता पता नहीं। सो कांग्रेस को कुछ नहीं कहना।'
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