अपने मुरली देवड़ा मंगलवार को मनमोहन सिंह से मिले। तो उनने पेट्रोलियम कंपनियों को घाटे का ब्यौरा दिया। संसद का बजट सत्र खत्म हुआ। तब से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने की अटकलें। पर अपन को पहले से पता था। कर्नाटक चुनाव तक कीमतें नहीं बढ़नी। सो नहीं बढ़ी। अपनी सरकार है, सो हर मामले में राजनीति से परहेज क्यों। अमेरिका होता, तो राष्ट्रपति देश को आर्थिक घाटे का जिम्मेदार ठहरा दिया जाता। पर मनमोहन ने चुनावी फायदे के लिए महीना भर कीमतें रोके रखी। अब कीमतें बढ़ेंगी, इससे मुरली देवड़ा ने कभी इनकार भी नहीं किया। अपने अभिषेक मनु सिंघवी भी दो टूक शब्दों में कह चुके- 'देश कीमतें बढ़ने के लिए तैयार रहे।' सो कीमतें तो बढ़ेंगी ही। आज नहीं तो कल। पर सरकार भी आम लोगों को हलाल करने पर आमादा।
हर रोज इशारा करेगी- आज बढ़ेंगे, कल बढ़ेंगे। कीमतें बढ़ेंगी, इसमें अपन को कोई शक नहीं। पर बढ़ेंगी कितनी। यह सरकार को भी पता नहीं। पहले दिन खबर आई- 'दो रुपए डीजल, चार रुपए पेट्रोल।' फिर खबर आई- 'पेट्रोल दस रुपए बढ़ेगा।' फिर पेट्रोलियम कंपनियों ने कहा- 'कम से कम सत्रह रुपए बढ़ना चाहिए।' पर ऐसे हालात पैदा किसने किए। अपन एनडीए राज याद करा दें। एनडीए सरकार बनी। तो देश में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें सरकार तय करती थी। उसे अपन एपीएम कहते थे। दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें बढ़ती गई। अपने यहां समाजवादी ढर्रा जारी रहा। सो पेट्रोलियम कंपनियों का घाटा बढ़ता रहा। आखिर देवगौड़ा राज में केलकर कमेटी बनी। कमेटी ने फार्मूला बनाकर दिया- 'एपीएम पांच साल में धीरे-धीरे खत्म किया जाए। पेट्रोल -डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुताबिक तय हों। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटें। तो अपने यहां भी घटें। अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ें। तो अपने यहां भी बढ़ें। सरकार को मिट्टी के तेल पर सब्सिडी देनी हो तो दे। रसोई गैस पर सब्सिडी देनी हो तो दे।' जब तक कमेटी की रपट आई। तब तक यूएफ के दिन लद गए थे। सो वाजपेयी ने रपट को मंजूर किया। लागू भी किया। अपन ने वह दिन देखे। जब कभी दो रुपए महंगा होता था पेट्रोल। तो कभी अट्ठनी सस्ता भी होता था। पर लेफ्टियों को यह फार्मूला कभी नहीं जंचा। यूपीए सरकार बनी। तो लेफ्टियों ने सबसे पहले यही फार्मूला बंद करवाया। तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल अस्सी डालर बैरल था। अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 135 डालर बैरल। पर लेफ्टियों ने कीमतें बढ़ाने नहीं दी। कांग्रेस भी चुनावी फायदा देखती रही। मंगलवार को मुरली देवड़ा पीएम से मिले। तो बोले- 'यही हालत रही। तो कंपनियां दो लाख करोड़ के नीचे होंगी।' पर ओखली में सिर तो खुद यूपीए ने दिया था, अब भुगते। पर भुगतने की बात चली। तो मंगलवार को सरकार के फर्टिइल दिमाग में नया आइडिया आया। बोले- 'क्यों न इनकम टैक्स पर सरचार्ज लगा दें।' लेफ्ट-बीजेपी को यह फार्मूला मंजूर नहीं। आखिर वे हर्जाना क्यों भरें। जो डीजल-पेट्रोल इस्तेमाल नहीं करते। पेट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज डयूटी पहले भी कम नहीं। प्रकाश जावड़ेकर बता रहे थे- 'एक्साइज डयूटी के कारण भारत में पेट्रोलियम पदार्थ सबसे महंगे।' यों अगर एक्साइज डयूटी न लगे। तो पेट्रोल मिलेगा-छब्बीस रुपए लीटर। सरकार सचमुच आम आदमी वाली हो। तो पहले एक्साइज डयूटी घटाए। एक्साइज डयूटी का फंडा भी सुन लो। दस साल में अपनी खपत दुगुनी हो गई। दुनिया में रेट भी दुगुने हो गए। सो सरकार को आमदनी हुई चौगुनी। अब इसका खामियाजा आम आदमी क्यों भुगते। भुगते सरकार। जिसने ओखली में सिर दिया।
आपकी प्रतिक्रिया