कर्नाटक में जब कांग्रेस की लुटिया डूब रही थी। तो सोनिया अपनी बेटी प्रियंका के घर नाते-नाती से खेल रही थी। सोनिया बारह बजे से पांच बजे तक प्रियंका के घर रही। राजीव जब पीएम थे। तो छुट्टियां मनाने की परंपरा दुबारा से शुरू की। यों जवाहर लाल नेहरू भी छुटि्टयां मनाने जाते थे। पहली बार उनने हिमाचल में छुट्टियां मनाई। पर बाद में पीएम छुट्टियों से कन्नी काटने लगे। राजीव अलग तरह के राजनीतिबाज थे। उनने अपने यहां यूरोपियन रिवाज लागू किया। हफ्ते में दो दिन छुट्टियों का। फाइव डे वीक राजीव की देन। सोनिया तो ठहरी ही यूरोपियन। सो हार में वह क्यों अपना संडे बर्बाद करती।
अपन को सोनिया की मेहनत पर कोई मलाल नहीं। उनने तो अपनी तरफ से खूब मेहनत की। अब कांग्रेसी ही कामचोर हों। तो वह क्या करें। बात कांग्रेसियों की कामचोरी की। तो सुनते हैं, कर्नाटक में नेता बहुतेरे थे, वर्कर नदारद। अब नेता एक-दूसरे पर कीचड़ फेंकने को बेताब। सबसे बड़ी हिम्मत तो एस एम कृष्णा ने मारी। उनने सारा ठीकरा दिल्ली से गए नेताओं के सिर फोड़ा। इशारा जरूर पृथ्वीराज चव्हाण, दिग्गी राजा, कपिल सिब्बल की ओर होगा। तीनों ने वहां खूब धड़ाम-चौकड़ी मचाई। जैसे लोकसभा चुनावों में बीजेपी-कांग्रेस के दफ्तर अदालत बनते थे। इधर से जेटली की दलीलें होती। तो उधर से कपिल सिब्बल की। फिर दोनों की वकालत राज्यसभा में खूब चमकी। इस बार दोनों कर्नाटक में अपनी-अपनी पार्टी के वकील थे। हर बार की तरह इस बार भी सिब्बल हारे। सिब्बल यों भी फुलटाइम राजनीतिबाज नहीं। सो सोमवार को चव्हाण-दिग्गी ने ही दस जनपथ में मत्था टेका। हार की थोड़ी-बहुत वजहें तो बताई ही होंगी। जो उनने अपने सामने गिनाई। उससे कुछ ज्यादा भी हो सकती हैं, कम भी। पृथ्वीराज बता रहे थे- 'बीजेपी ने लिंगायत एकजुट कर लिए। हम सेक्युलर वोट एकजुट नहीं कर सके।' पर लिंगायतों की बात छोड़िए। दलित भी कांग्रेस का साथ छोड़ गए। इस बार मायावती ने भी कर्नाटक में मोर्चा खोला। पर खाता नहीं खुला। मनीष तिवारी खुद बोले- 'रिजर्व 36 दलित सीटों में से बीजेपी 22 जीत गई। कांग्रेस के हाथ दस लगीं। बाकी चार में से तीन देवगौड़ा के खाते में।' देवगौड़ा की बात चली। तो देवगौड़ा-सिध्दारमैया की जनादेश से नई साजिश बताएं। कुमारस्वामी-सिध्दारमैया सोमवार को इस तिकड़म में जुटे रहे- येदुरप्पा को तीन इंडीपेंडेंट विधायकों का समर्थन न मिले। सिध्दारमैया बागी कांग्रेसियों नरेंद्र स्वामी-वाथुर प्रकाश से मिले। तो कुमारस्वामी इन दोनों के अलावा बागी कांग्रेसियों वेंकटरामनप्पा, डी. सुधाकर से भी मिले। अपने बागी एमएलए गुल्लीहट्टी शेखर से तो मिले ही। पर बीजेपी का बागी शिवराज थंगड़ी और जेडीएस का बागी गुल्लीहट्टी उस मीटिंग में मौजूद थे। जिसमें येदुरप्पा को लीडर चुना गया। कांग्रेस के बागी रामनप्पा और सुधाकर भी येदुरप्पा के साथ। पर अपन बात कर रहे थे कांग्रेस की हार पर। कांग्रेस की नजर में हार की वजहें थी- टिकटों की गलत बंदरबांट। ठीकरा एस एम कृष्णा, सिध्दारमैया, वीरप्पा मोइली के सिर फूटेगा। तीनों ने अपने चंपुओं को टिकटें दिलाकर कांग्रेस का बाजा बजाया। सबसे ज्यादा नुकसान कृष्णा ने पहुंचाया। खुद भी घाटे में रहे। गवर्नरी छोड़कर सीएम बनने आए थे। पर सोनिया ने प्रोजेक्ट ही नहीं किया। अब कह रहे हैं- 'येदुरप्पा की तरह कांग्रेस भी सीएम प्रोजेक्ट करती। तो फायदा होता।' पर मनीष तिवारी बोले- 'कांग्रेस ने कहीं भी, कभी भी सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया।' पर पृथ्वीराज का रुख थोड़ा बदला हुआ दिखा। न सिर्फ उनने महंगाई, अफजल, आतंकवाद को भी हार का मुद्दा माना। अलबत्ता सीएम के मामले पर भी बोले- 'कांग्रेस को कर्नाटक-गुजरात-हिमाचल से सबक लेना चाहिए। सीएम प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़ने के बारे में सोचना चाहिए।' पर इसके नतीजे कांग्रेस को और उलझा देंगे। सबसे पहले तो लोकसभा चुनाव में पीएम बताना होगा। सोनिया खुद होंगी, मनमोहन सिंह होंगे या राहुल बाबा। येदुरप्पा-मोदी-धूमल की तरह बीजेपी तो आडवाणी प्रोजेक्ट कर चुकी।
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