आज जन्माष्टस्न्मी। देशभर में। विदेशों में भी। मोहन प्यारे याद किए जाएंगे। नेपाल भले ही हिंदूराष्ट्र नहीं रहा। पर नेपाल में भी मनाई जाएगी जन्माष्टस्न्मी। माओवादी राज जन्माष्टस्न्मी मनाने से नहीं रोक सकता। जैसे बंगाल में कミयुनिस्ट राज केञ् बावजूद दुर्गापूजा नहीं रुकी। कミयुनिस्टों की भले ही धर्म-कर्म में आस्था नहीं। पर वोटरों को दिखाने केञ् लिए दुर्गा पूजा में धोती पहनकर खड़े होंगे।
नहीं, दुर्गा पूजा की नहीं। अपन बात कर रहे थे कृञ्ष्ण की। कृञ्ष्ण की बात चली। तो अपन को अपने जन्म से पहले की एक फिल्म याद आ गई- 'जागते रहो।' शैलेंद्र का लिखा गीत लता ने गाया था- 'जागो मोहन प्यारे।' पर गाना याद आते ही अपनी नजर आज केञ् मन-मोहन पर टिकी। मनमोहन की बात बाद में। पहले मनमोहन को रास्ता दिखाने वाले गुलाम नबी आजाद की। आजाद ने निराशा केञ् इस माहौल में आशावादी काम किया। अपने मनमोहन दागियों को मंत्री बनाने से नहीं रोक पाए। पर आजाद ने उस मंत्री से विभाग छीन लिया। जिसकी छवि खराब हो गई थी। दूसरी तरफ मनमोहन केञ् मंत्रियों और जेल का रोटी-बेटी का रिश्ता। कभी जेल के अंदर। तो मंत्रिमंडल से बाहर। जेल से बाहर। तो मंत्रिमंडल के अंदर। पर बात गुलाम नबी की। जिनने अपने मंत्री काजी मोहミमद से जंगलात महकमा छीन लिया। काजी कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं। सहयोगी पार्टी पीडीपी का कद्दावर नेता। जबसे कांग्रेस-पीडीपी सरकार बनी। तब से केञ्बिनेट मंत्री। वह भी दो-दो विभागों के। जंगलात के साथ शहरी मंत्रालय भी। पर जबसे काजी जंगलात मंत्री बने। तब से जंगलों में बाकायदा जंगल राज। उनने स्टेट फोरेस्ट कार्पोरेशन का एमडी बनाया एजाज अहमद को। मंत्री और मंत्री का संतरी- यानी एमडी। दोनों ने जंगलों को खूब लूटा। गुलाम नबी ने एजाज अहमद को तो पैदल कर दिया। पर गठबंधन की राजनीति में काजी मंत्री बने रह गए। वैसे उनने जैसे काजी से जंगलात महकमा छीना। मनमोहन केञ् लिए तो इतना सबक ही काफी। जन्माष्टस्न्मी पर मनमोहन अगर जागना चाहें। तो गुलाम नबी ने रास्ता दिखा दिया। अपन बात दागी मंत्रियों की नहीं कर रहे। वह मनमोहन केञ् बस में नहीं। सो अपन बात कर रहे हैं सिर्ड्डञ् अंबूमणि रामदास की। जो अपनी जिद्द से कई बार कोर्ट में सरकार की नाक कटवा चुकेञ्। एミस केञ् डायरेタटर वेणुगोपाल को हटाने केञ् लिए タया-タया कौतुक नहीं किए। अपने किसी रिश्तेदार को लगाना चाहते थे। साा केञ् नशे का यह उミदा उदाहरण। पर वेणुगोपाल ने हार नहीं मानी। अपने अरुण जेटली हर बार कोर्ट से बचा लाते। अलबाा हर बार अंबूमणि को कोर्ट से फटकार भी पड़ती। अब यह चौथा-पांचवां किस्सा। जब हाईकोर्ट ने अपने स्वास्थ्य मंत्री का बाजा बजाया। आप पढ़ रहे होंगे कुञ्छ दिन से एミस केञ् डाタटरों का किस्सा। जबसे अंबूमणि-वेणुगोपाल जंग शुरूञ् हुई। तबसे एミस में डिग्रियां नहीं बंटी। इस बार सब्र का प्याला भरा। तो ग्रेजुएट डाタटर हड़ताल पर उतर आए। अंबूमणि बोले- 'डिग्रियों पर वेणुगोपाल केञ् फर्जी रजिस्ट्रार संदीप अग्रवाल केञ् दस्तखत। जब तक मेरे रजिस्ट्रार वीपी गुप्ता का दस्तखत नहीं होगा। मैं दस्तखत नहीं करूंञ्गा।' बात गुप्ता की। तो अंबूमणि ने रजिस्ट्रार भी ऐसा बनाया। जो पद की योग्यता पूरी नहीं करता। सो अग्रवाल-गुप्ता का मामला पहले से कोर्ट में। अब डिग्रियों का मामला भी कोर्ट गया। तो सोमवार को कोर्ट ने अंबूमणि से कहा- 'चौबीस घंटे में उन्हीं डिग्रियों पर दस्तखत करो। जिन पर संदीप अग्रवाल केञ् दस्तखत।' पर यह जागने की घड़ी अंबूमणि की नहीं। जागने की घड़ी मनमोहन प्यारे की। साख अंबूमणि की नहीं। अलबाा मनमोहन सरकार की गिर गई।
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