पाकिस्तानी आतंकवादियों को अब भारत में बांग्लादेशी और सिमी के कार्यकर्ता जमीनी मदद दे रहे हैं
भारत में मुसलमानों की आबादी पंद्रह करोड़ के आसपास है। मुसलमानों की आबादी के लिहाज से इंडोनेशिया के बाद भारत का दूसरा नंबर है। दुनियाभर में चल रहे इस्लामिक कट्टरपंथ का भारत के मुसलमानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कुछेक जगहों पर जरूर विभिन्न स्थानीय शिकायतों के कारण मुस्लिम युवक पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी कट्टरपंथी और जेहादी संगठनों के बहकावे में आए होंगे। बहुसंख्यक भारतीय मुसलमान देश के प्रति वफादार और कानून का पालन करने वाले हैं। अगर उनकी छोटी-मोटी शिकायतें रही भी होंगी, तब भी उन्होंने भारत के हिंदुओं और भारतीय सरकार के खिलाफ आतंकवादियों का साथ नहीं दिया। भारत के मुसलमान आधुनिक विचारों के, शांतिप्रिय और विकासशील हैं।
इसका सबूत यह है कि 1980 के दशक में जब दुनियाभर से करीब दस हजार मुसलमान अफगानिस्तान को सोवियत संघ के चंगुल से बचाने के लिए अफगानिस्तान मुजाहिद्दीन में शामिल हुए थे, तब उनमें भारत का एक भी मुसलमान नहीं था। पाकिस्तान के विभिन्न मदरसों में इस्लामिक शिक्षा के नाम पर जेहाद की ट्रेनिंग दी जा रही है। इन मदरसों में दुनियाभर से मुस्लिम आतंकवाद की ट्रेनिंग लेने जाते हैं, लेकिन ऐसा कोई उदाहरण कभी नहीं मिला, जब भारतीय मुसलमान उन मदरसों में ट्रेनिंग लेने गए हों। ओसामा बिन लादेन की अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक फैडरेशन के तहत दुनियाभर के तेरह आतंकी संगठन शामिल हैं। इनमें भारत से जुड़ा एक भी आतंकी संगठन शामिल नहीं है। सात अक्टूबर 2001 को जब अमेरिकी फौजों ने अलकायदा और तालिबान के ट्रेनिंग कैंपों पर हमले शुरू किए, तो दुनियाभर में मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किए, लेकिन भारत में कहीं विरोध प्रदर्शन नहीं हुए। अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ शुरू हुई जंग का मुकाबला करने के लिए दुनियाभर से मुसलमान अलकायदा का साथ देने के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान पहुंचे। लेकिन उनमें भारतीय मुसलमान शामिल नहीं थे। दुनियाभर से जितने मुसलमान पाकिस्तान में इस्लामिक शिक्षा पाने के लिए जाते हैं, करीब-करीब उतने ही मुसलमान इस्लामिक शिक्षा के लिए भारत भी आते हैं। पाकिस्तान से शिक्षा पाकर लौटे मुसलमान अपने देशों में लौटकर आतंकवाद फैलाते हैं, नशीली दवाओं का अवैध धंधा करते हैं और अपने देश में कानून व्यवस्था तोड़ने वाले बनते हैं, जबकि भारत से शिक्षा हासिल करके लौटे हामिद करजई अफगानिस्तान के राष्ट्रपति बन गए। इससे स्पष्ट है कि ओसामा बिन लादेन और पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई की बरसों की मेहनत भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति को हिला नहीं सकी।
1989 से 1993 तक जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादी नहीं घुसे थे, उन्होंने कश्मीर के युवकों को बहला-फुसलाकर आतंकवाद की राह पर लाने में सफलता हासिल की थी। पाकिस्तान इन युवकों को पीछे से मदद कर रहा था, लेकिन जब स्थानीय युवक सफल नहीं हुए, तो पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने पाकिस्तान में प्रशिक्षित किए गए आतंकवादियों की घुसपैठ करवानी शुरू कर दी। जम्मू कश्मीर में घुसपैठ करने वाले आतंकवादी वही थे, जो अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ जंग जीतकर वापस लौटे थे। तब से पाकिस्तानी आतंकवादी जम्मू कश्मीर में कश्मीरी युवकों के नाम पर आतंकवाद का झंडा बुलंद किए हुए हैं। जम्मू कश्मीर में हुए आत्मघाती हमलों में शामिल सभी युवक पाकिस्तानी या अफगानिस्तानी ही पाए गए हैं। पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई एक मकसद को लेकर भारत में आतंकवाद फैला रही है। बांग्लादेश का निर्माण होने के बाद पाकिस्तान में भारत को तोड़ने की रणनीति बनाई गई। इसी रणनीति के तहत अस्सी के दशक में जहां एक तरफ जम्मू कश्मीर में कश्मीरी युवकों को भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए तैयार किया गया। वहां दूसरी तरफ पंजाब में सिखों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काकर आतंकवाद फैलाया गया। पाकिस्तान को न कश्मीर में सफलता मिली, न पंजाब में। 1993 में मुंबई में बम धमाकों को सरअंजाम करने के बाद पाकिस्तान गए दाऊद इब्राहिम की मदद से आईएसआई ने अपनी रणनीति को सफल बनाने के लिए दूसरे तरीके इस्तेमाल करने शुरू कर दिए। इसके तहत कई जगहों पर दाऊद के आदमियों को आतंकवाद के लिए इस्तेमाल किया गया और उनके माध्यम से जगह-जगह पर स्थानीय कारणों से नाराज गरीब मुस्लिम युवकों को बहका-फुसलाकर आतंकी वारदातों के लिए राजी किया गया। पाकिस्तानी आतंकवादियों के उकसावे पर पहले उत्तर प्रदेश में और बाद में देशभर में इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के नाम से अलगाववादी संगठन खड़ा हुआ। आखिर बीस साल की मेहनत के बाद आईएसआई भारतीय मुसलमानों में अपने सैल कायम करने में कामयाब हो गई है।
पाकिस्तानी जेहादी संगठनों हरकत-उल-मुजाहिद्दीन, हरकत-उल- जेहाद- अल-इसलामी, लश्कर-ए-तोएबा, जैश-ए- मुहम्मद और लश्कर-ए-झांगवी में से पहले चार संगठन भारत में काम कर रहे हैं। जबकि इनमें से आखिरी संगठन लश्कर-ए-झांगवी पाकिस्तान में सुन्नियों का शिया विरोधी आतंकी संगठन। भारत में आतंकवाद फैलाने वाले चारों पाकिस्तानी आतंकी संगठन भारतीयों को यह कहकर बहका रहे हैं कि उनका इरादा कश्मीर को हिंदू भारत से आजाद करवाना है और अंतिम लक्ष्य भारत के बाकी पंद्रह करोड़ मुसलमानों को आजादी दिलाकर दो नए मुस्लिम देश बनाने हैं। जेहादी संगठनों का लक्ष्य उत्तर भारतीय मुसलमानों को भारत से अलग करके नया देश बनाकर देना और दक्षिण भारतीय मुसलमानों के लिए अलग मुस्लिम देश का गठन करना है। इसी लंबे मकसद को हासिल करने के लिए पाकिस्तानी जेहादी संगठनों ने आईएसआई की मदद से भारतभर में आतंकवादी वारदातें शुरू की हुई हैं। पाकिस्तानी जेहादी संगठनों को भारतीय मुसलमानों का साथ तो नहीं मिल रहा, लेकिन बड़ी तादाद में भारत में आकर बसे बांग्लादेशी उनके लिए कारगर साबित हो रहे हैं। बांग्लादेशियों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए आईएसआई ने योजनाबध्द तरीके से बांग्लादेश में आतंकी संगठन हरकत-उल-जेहाद-ए-इसलामी(हूजी) को खड़ा किया और हूजी के आतंकियों को भारत में अपने ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। हाल ही की कई आतंकवादी वारदातों में लश्कर-ए-तोएबा या जैश-ए-मुहम्मद की बजाए हूजी का हाथ होने के सबूत मिले हैं। भारत सरकार के पास ऐसी पुख्ता जानकारियां हैं कि पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई का बांग्लादेशी गुप्तचर एजेंसी के साथ तालमेल बना हुआ है और दोनों देश मिलकर भारत के खिलाफ जेहादियों की मदद कर रहे हैं। इस मामले में भारत में रह रहे बांग्लादेशियों के साथ-साथ सिमी में सक्रिय हुए भारतीय मुस्लिम युवक उन्हें स्थानीय स्तर पर मददगार हो रहे हैं। जिन-जिन जगहों पर भारतीय मुसलमान पाकिस्तानी-बांग्लादेशी जेहादियों का आतंकवाद में साथ नहीं दे रहे हैं, वहां-वहां मुस्लिम आबादियां और मस्जिदें भी आतंकवाद का शिकार हो रही हैं। इसका उदाहरण हमने आठ सितंबर 2006 को मालेगांव की मस्जिद में हुए विस्फोटों और 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों के रूप में देखे हैं। आतंकियों का मकसद भारतीय हिंदुओं और देशभर के मुसलमानों को आतंकित करना तो है ही, दोनों समुदायों में एक-दूसरे के खिलाफ शक पैदा करना भी है। इसीलिए योजनाबध्द तरीके से 14 फरवरी 1998 को कोयम्बटूर में लालकृष्ण आडवाणी के दौरे के समय बम धमाके किए गए। फिर संसद पर हमले के बाद 24 सितंबर 2002 को अक्षरधाम मंदिर में और पांच जुलाई 2005 को अयोध्या, तीन मार्च 2006 को वाराणसी के मंदिरों पर आतंकी हमले हुए और अब तेरह मई 2008 को जयपुर के हनुमान मंदिर के अंदर और बाहर बम धमाके। सोमवार को शिवमंदिरों पर, मंगलवार को हनुमान मंदिरों पर और शुक्रवार को मस्जिदों में बम धमाकों से जेहादियों के इरादे समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए।
भारत सरकार इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज करके आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। भारत सरकार के सामने यह दुविधा भी है कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करते समय स्थानीय बेकसूर मुसलमान कानून का शिकार न हों। हालांकि सिमी के बैनर तले भारतीय मुसलमानों की भागीदारी के बाद यह काम बहुत मुश्किल हो गया है। केंद्र सरकार की इसी संवेदनशीलता का जेहादी संगठन फायदा उठा रहे हैं और स्थानीय मुसलमानों को आतंकवाद के खिलाफ बनाए गए कड़े कानून के खिलाफ भड़काते रहते हैं। नतीजा यह निकला है कि आतंकवाद के खिलाफ बने टाडा को राजनीतिक दबाव में रद्द करना पड़ा और बाद में एनडीए सरकार के समय बने पोटा के खिलाफ सिमी जैसे संगठन ने मुहिम छेड़कर देश के सेक्युलर दलों को पोटा के खिलाफ लामबंद कर दिया। नतीजतन पोटा को भी रद्द कर दिया गया, जबकि पोटा न्यूयार्क में हुए नाइन-इलेवन की आतंकवादी वारदात के बाद संयुक्तराष्ट्र की सभी देशों को सख्त कानून बनाने की हिदायत के तहत बनाया गया था। आतंकवाद के खिलाफ बनाकर रद्द किए गए कानूनों से पाकिस्तानी-बांग्लादेशी जेहादियों के हौंसले बुलंद हुए हैं और वे इन दोनों कानूनों के रद्द होने को अपनी रणनीति की सफलता मानते हैं। निराशाजनक बात यह है कि जहां इन दोनों आतंकवाद विरोधी कानूनों को रद्द करने से भारत की आतंकवाद से लड़ने की इच्छाशक्ति में कमजोरी झलकती है, वहां आतंकवादियों के अड्डे बन चुके बांग्लादेशियों के ठिकाने राजनीतिक दलों की मजबूरी बन चुके हैं। देश की जनता में अपनी साख खो चुके राजनीतिक दल बांग्लादेशियों के अवैध वोटों को सत्ता की सीढ़ी बना चुके हैं। जाने-अनजाने वही राजनीतिक दल और नेता भारत के बटवारे की कोशिश में जुटे आतंकवादियों के मददगार बन गए हैं।
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