अपनी आशंका सही ही निकली। घुसपैठ-धमाकों के तार पाकिस्तानी सियासत से ही जुड़े हैं। अपन ने कल सांभा सेक्टर में घुसपैठ का जिक्र किया। जिस पर एंटनी ने पाक फौज पर ऊंगली उठाई। घुसपैठ और विस्फोट के बाद बुधवार को तंगधार सेक्टर में गोलाबारी हुई। पाकिस्तान ने दूसरी बार सीज फायर का उल्लंघन किया। पाकिस्तानी फौज-आतंकवादियों का रिश्ता छुपा नहीं। यह कारगिल के वक्त भी साबित हुआ। जयपुर के विस्फोटों की जांच की सुई भी लश्कर-हूजी की ओर। लश्कर पाकिस्तानी आतंकी संगठन। तो हूजी आईएसआई का बांग्लादेशी आतंकी मॉडल। गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल जयपुर से लौटकर बोले- 'वारदात के पीछे सीमा पार की ताकतें।' पर जायसवाल के अलावा कोई पाक पर ऊंगली उठाने से बचा। शिवशंकर मेनन को ही लो। पूछा तो बोले- 'अभी किसी पर ऊंगली उठाना ठीक नहीं।' यह है आतंकवाद से लड़ने की भूल-भुलैया।
एंटनी ने मंगलवार को पाक पर निशाना साधा। जायसवाल ने गुरुवार को पाक की तरफ ऊंगली उठाई। पर विदेश मंत्रालय अपनी ऊंगली छुपाने लगा। अब शिवराज पाटिल क्या बोलेंगे। अपन को उसका इंतजार। बीजेपी ने तो पाटिल की काबलियत पर सवाल उठा दिया। यूपीए राज में आठ बड़ी आतंकी वारदातें हुई। अब तक एक वारदात की गुत्थी भी नहीं सुलझी। मजा तो तब आया। जब कांग्रेस ने भी पाटिल के बचाव में कन्नी काटी। मनीष तिवारी से पूछा गया। तो वह पाटिल को काबिल कहने से कतराए। पाटिल ने जायसवाल को जयपुर भेजकर खानापूर्ति कर ली थी। पर लालकृष्ण आडवाणी जयपुर पहुंच गए। तो अब गुरुवार को सोनिया भी जाएंगी। तो पाटिल को सरकारी उड़न खटौला ले जाना ही पड़ेगा। पर जयपुर से लौटकर जायसवाल जो बोले। उसने राजनीतिक बवाल खड़ा कर दिया। बोले- 'खुफिया एजेंसियों ने तो जानकारी दे दी थी।' जब पूछा- 'यह जानकारी कब दी थी?' तो बगलें झांकने लगे। फौरी जवाब नहीं सूझा। तो बोले- 'अजमेर दरगाह में हुए विस्फोटो के फौरन बाद।' अपन होम मिनिस्ट्री पर नजर रखने वाले जानते हैं- 'हर बड़ी वारदात के बाद सब जगह ऐसी चेतावनी भेजी ही जाती है।' जायसवाल के बयान पर अपनी वसुंधरा तो भड़की ही। फौरन खंडन जारी किया ही। बीजेपी को भी केंद्र पर हमले का मौका मिला। सो अटल-आडवाणी-जसवंत-राजनाथ का साझा बयान आया। केंद्र पर फिर वही आतंकियों से सहानुभूति, आतंकवाद से नरमी का आरोप। सबुत के तौर पर अफजल और पोटा तो है ही। कांग्रेस कर्नाटक चुनाव के वक्त अच्छी मुसीबत में फंसी। बीजेपी पर पलटवार से बची। कटघरे में खड़ी खुफिया एजेंसियों ने भी कमाल किया। खबर पेलते रहे- 'एक महीने में तीन बार चेतावनी भेजी गई। पर वसुंधरा सरकार सोई रही।' किसी ने मनीष तिवारी को यह जानकारी देकर उकसाना चाहा। पर तिवारी पलटवार से बचते रहे। पर बात मौजूदा आतंकवाद से पाक की सियासत से रिश्तों की। भले ही शिवशंकर मेनन पाक पर ऊंगली उठाने से बचे। पर मेनन बोले- 'प्रणव मुखर्जी और मैं बीस मई को इस्लामाबाद जाएंगे। जहां सचिव और मंत्री स्तरीय बातचीत होगी। बातचीत का मुख्य एजेंडा होगा आतंकवाद।' पर अपने देश में आतंकवाद से लड़ने की नियत नहीं। नियत होती, तो पोटा रद्द न होता। नियत होती, तो आतंकवाद से लड़ने के लिए फैडरल एजेंसी 2003 में बन जाती। जब देशभर के डीआईजी मान गए थे। पर आडवाणी ने तब मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई। तो जिन कांग्रेसियों-कम्युनिस्टों ने पोटा का विरोध किया। उनने फैडरल जांच एजेंसी का भी विरोध किया। अब वही कांग्रेसी फैडरल एजेंसी की जरूरत बताने लगे। कांग्रेस को पोटा की जरूरत अभी भी महसूस नहीं होती। पर शुक्र है बुधवार को कांग्रेस ने फैडरल एजेंसी की जरूरत महसूस की। प्रवक्ता मनीष तिवारी बोले- 'जो मुख्यमंत्री फैडरल एजेंसी का विरोध कर रहे हैं। अब वे विरोध छोड़ें। पिछली मीटिंग में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने समर्थन किया था।' पर कांग्रेस ने 2003 में विरोध क्यों किया था। वह तो बताएं।
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