अजय सेतिया / मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए तो 26 मई को लोकसभा टीवी पर घंटे भर की चर्चा थी | तीन पत्रकारों को बुलाया हुआ था , चर्चा के आखिर में एंकर ने आख़िरी वाक्य बोलने को कहा | संयोग से आखिर में मुझे बोलने को कहा गया था | मैंने पांच मुद्दों की शिनाख्त की थी और कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाकी के दो साल में इन पांच मुद्दों से निपटना होगा | अगले दिन 27 मई को इन्हीं पांच मुद्दों पर मेरा लेख नवज्योति में भी छपा था | ये पांच मुद्दे हैं किसान, बेरोजगारी,कश्मीर,आतंकवाद और नक्सलवाद | बाद में अपने एक लेख में मैंने आतंकवाद और नक्सलवाद के चीर स्थाई मुद्दों को बाजू रख कर उन तीन महत्वपूर्ण मुद्दों की शिनाख्त की थी, जो नरेंद्र मोदी सरकार के लिए कष्टकारी साबित होने वाले हैं | किसान, बेरोजगारी और कश्मीर | अपन इन तीनों मुद्दों पर सरकार को घिरा हुआ मानते हैं | तमिलनाडू के किसानों ने मई महीने में ही दिल्ली में धरना दे कर देश का ध्यान आकर्षित किया था | एक पखवाड़े के भीतर ही मेरी आशंका सही साबित हो रही है | मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों से जुडी दो बड़ी दुर्घटनाएं हो गई है | इन दोनों राज्यों में पहली जून से किसान सड़कों पर आ गए थे , किसानों को उन के उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है, नतीजतन वे अपने उत्पादन को सड़कों पर बिखेर कर रोष प्रगत कर रहे थे |
छह जून को महाराष्ट्र में चार किसानों ने आत्महत्या कर ली और उसी दिन मध्यप्रदेश के मंदसौर में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोली चल गई , जिस में छह किसान मारे गए | भाजपा नेताओं की यह बात सही है कि कांग्रेस ने किसानों को उकसाया | लेकिन लोकतंत्र में विपक्षी दल का यही धर्म है कि वह समाज के उन वर्गों को के लिए खुद भी लडे और सरकार के खिलाफ उन्हें खड़ा करे , जिन की सरकार उपेक्षा कर रही हो | जब भाजपा विपक्ष में होती है, तो वः भी यही करती है, लेकिन अगर ये सबूत मिलते हैं कि कांग्रेस के नेताओं ने शरारती तत्वों को हिंसा के लिए उकसाया या कांग्रेसी खुद मौके का फायदा उठा कर हिंसा कर रहे थे, तो यह लोकतंत्र के लिए भयानक स्थिति है | यह तो मेजिस्ट्रेटी जांच से जाहिर होगा कि हिंसा कैसे शुरू हुई ,लेकिन तथ्य यह है कि किसानों पर फायरिंग ने बात बिगाड़ दी | राहुल गांधी ने भट्टा परसोल और सहारनपुर की तरह निषेधाज्ञा का उलंघन करके आग में घी डालने का काम ही हुआ है | मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की छवि ‘किसान हितैषी’ की रही है | मध्य प्रदेश में किसानों की हालत महाराष्ट्र जैसी खराब भी नहीं है | बाकी देश के मुकाबले मध्य प्रदेश के किसान खुशहाल है | राज्य की कृषि विकास दर वास्तव में 20 प्रतिशत हो चुकी है | मगर सोमवार को मंदसौर की घटना ने उनकी छवि दागदार कर दी | पहले तो पुलिस ने फायरिंग से ही इनकार किया | पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नन्द कुमार सिंह की तारीफ़ करनी चाहिए | उन ने बिना लाग-लपेट कहा कि पुलिस ने गोली चलाई |
कांग्रेस ने अगर शरारती तत्वों को पहले दिन हिंसा के लिए नहीन भी उकसाया होगा, तो दूसरे दिन हिंसा का जो नंगा नाच हुआ , उस में कांग्रेस के हर नेता के भड़काने वाले बयानों का असर था | मध्य प्रदेश के मंदसौर-नीमच से राजस्थान की ओर जा रहे राजमार्ग में जमकर हिंसा हुई | डीएम स्वतंत्र कुमार सिंह किसानों को समझाने पहुंचे तो उन की पिटाई हो गई | एसपी ओपी त्रिपाठी पहुंचे,तो उनके साथ भी बदसलूकी हुई | कारें तोडी गई | ट्रेनें रोकी गईं | पेट्रोल पम्प जलाए गए, टोल प्लाजा जला दिए गए, शहरों में शु रूम और माल लुटे गए | नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पहली बार लगा कि बात गंभीर हो गई | इस लिए जहां दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई, वहां शिवराज सिंह चौहान को भी सलाह दी गई कि वह किसानों के हित में तुरंत योजनाओं का ऐलान करें, और उन्होंने केबिनेट बुला कर कुछ फैसले किए भी | लेकिन यह मर्ज सर म्ल्ल्हम पत्ती से ठीक होने वाला नहीं है, किसानों की कर्ज माफी, ब्याज माफी जैसी राहतें अस्थाई इलाज है, किसानों की हालत स्थाई रूप से सुधरे , फसल बीमा जैसी योजनाएं किसानों से क़िस्त वसूली का नया धंधा बन कर न रह जाए, इस भी विचार करना होगा | किसानों को उन की उपज की कीमत और बाज़ार में उपभोगताओं से वसूले जाने वाली कीमत का अंतर कम करने के उपाय करने होंगे | को-आपरेटिव सोसईतियाँ बना कर किसानों को शहरों में अपने उत्पादन खुद बेचने देने के रास्ते खोजने होंगे |
किसान हर बार राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का औजार बन कर रह जाता है , कुछ दिन मध्यप्रदेश राजनीतिक अखाड़ा बनेगा | राजनीतिक रोटियाँ सिकेंगी | किसान ठगे से रह जाएंगे | तीन साल बीतते ही राजनीतिक हालात गर्म होने लगे हैं | महाराष्ट्र में राजनीतिक रोटियाँ सेकना का काम शिवसेना ने अपने हाथ में ले लिया है | शिवसेना ने कहा कि कई साल बाद, पिछले साल का मानसून किसानों के लिए उम्मीदें लेकर आया था | भारी फसल भी हुई , पर नोटबंदी के चाबुक ने किसानों को बर्बाद कर दिया | नोटबंदी से मार्केट में कैश की कमी आ गई, किसानों के पास रोजमर्रा का खरचा उठाने के लिए भी पैसे नहीं बचे थे , उन्हें अपनी फसलों को मिट्टी के मोल बेचने पर मजबूर कर दिया | कर्ज में दबे किसान भारी घाटे में डूब गए | शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा कि भाजपा अगर यूपी में कर्ज माफी कर सकती तो महाराष्ट्र में क्यों नहीं | लेकिन यह भी सच नहीं है, उत्तर प्रदेश में भी किसानों के कर्जों का न ब्याज माफ़ हुआ है, न कर्ज माफ़ हुआ है, बात सिर्फ केबिनेट का फैसला होने तक सीमित हो कर रह गई है | जमीन पर किसानों को कोई राहत नहीं मिली है, किसानों को बैंकों के नोटिस आने शुरू हो गए हैं | मध्यप्रदेश के बाद किसानों का गुस्सा उत्तर प्रदेश में कभी भी फूट सकता है | अगर अपन एनजीओ के दावों को मानें तो दो दशक में डेढ़ लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं |
उद्योगपति तो कर्ज ले कर विदेश भाग जाते हैं , जुगाडू उद्योगपति कर्ज माफी भी करवा लेते हैं | कर्जदार किसी न्यूज चैनल का मालिक हो तो बैक को वित्त मंत्री का फोन आ जाता है | बैंक का मनेजर ब्याज की दर 19 से 9 फीसदी कर देता है | कर्जदार हवाई जहाज कम्पनी का मालिक हो और नेताओं को अपने ब्रांड की बीयर के साथ दक्षिण अफ्रिका वाले जंगल में आवभगत करवाता हो तो उसे विदेश भागने से भी कोई नहीं रोकता | पर बेचारा कर्जदार किसान क्या करे | उस की दुनिया तो घर,परिवार,खेत,गाँव, पंचायत तक सीमित है | कोई बैंक वाला उस की दहलीज पर आ जाए , तो वह शर्म से ही मर जाता है | उस के पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं होता या फिर पुलिस की गोली से मरे | किसान की हालत बेहद खस्ता है , बिचौलिए अभी भी खा रहे हैं | भाजपा ने स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करने का वादा किया था , तीन साल बीत गए | किसानों की हालत जस की तस है | 2022 तक किसानों की आमदनी डबल करने का नया फार्मूला आ गया है | पर सरकार को जनादेश तो 2019 तक का है , तब तक क्या करेंगे , कितना करेंगे | फिलहाल उस की बात करनी चाहिए , ताकि किसान न पुलिस की गोली से मारें, न आत्महत्या करें |
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