घी हर किसी को हजम नहीं होता। पर कई होते हैं, जो इंसान को भी कच्चा चबा जाएं। डकार भी न लें। अपन आज राजनीति के दो महारथियों की बात करेंगे। पी. चिदंबरम। जिनने ताजा बढ़ी महंगाई पर कहा- 'इतनी भी नहीं बढ़ी। चीखने-चिल्लाने की जरूरत नहीं।' दूसरे- अर्जुन सिंह। जिनका सितारा गर्दिश में। हताश अर्जुन को पिछले महीने बताया गया था- सोनिया-राहुल की चापलूसी से बाज आएं। तो अबके अर्जुन ने अपनी कमान से नया तीर निकाला। उनने सीधा सोनिया पर निशाना साध दिया। बोले- 'हाईकमान सलाह मशविरे से फैसले नहीं ले रहा। इसलिए कांग्रेस में मुश्किल-दर-मुश्किल।' अपन अर्जुन के जहर बुझे राजनीतिक तीरों से वाकिफ।
जरूर मन में कोई टीस रही होगी। अर्जुन बिना मतलब कुछ नहीं बोलते। पर पहले बात चिदंबरम की। मुद्रास्फीति अब 7.61 हो गई। अपन को समझ नहीं आ रहा। चिदंबरम की आलोचना करें भी या नहीं। चिदंबरम कांग्रेस के उन नेताओं में शिरोमणि। जो गरीबी नहीं, गरीबों के दुश्मन। सच मानें, तो चिदंबरम देश के आर्थिक कसाई हो गए। चिदंबरम को महंगाई नहीं दिख रही। चिदंबरम की बात तो छोड़िए। किसी कांग्रेसी से पूछ लीजिए। कहेगा- 'कहां है महंगाई।' अपन मोती लाल वोरा से बतिया रहे थे। तो वह बोले- 'मैं तो खरीददारी करने नहीं जाता। मेरी पत्नी जाती है। वह बताती हैं- महंगाई घट रही है। दालें सस्ती हो गई हैं। सब्जियां भी सस्ती हो गई।' पता नहीं, वोरा की पत्नी किस बाजार से खरीददारी करती हैं। नेताओं का कोई एक्सक्लूसिव बाजार हो। तो अपन नहीं जानते। अपन तो उसी सरकार के आंकड़े बता रहे हैं। जिसकी तरफदारी मोती लाल वोरा ने की। शुक्रवार को जारी आंकड़ों में कहा गया- 'चाय पत्ती, मसाले, सब्जियां, फल-फ्रुट और महंगे हो गए।' अपन सच्ची बात बताएं। चिदंबरम ने विकासदर के खोखले आडंबर से महंगाई बढ़ाई। सो अपनी नजर में वह आम आदमी के कसाई। पता नहीं, सोनिया इस बात को कब समझेंगी। अपन तो साल भर से सुनते-सुनते थक गए। चिदंबरम अब गए, कि अब गए। पर चिदंबरम नहीं गए। कमलनाथ तो जा भी नहीं सकते। महंगाई के लिए जितने जिम्मेदार चिदंबरम। उससे कहीं ज्यादा कमलनाथ। रब ने अच्छी जोड़ी मिलाई। पांचों ऊंगलियां घी में। पर अपन ने शुरू में ही लिखा- घी सबको हजम नहीं होता। अपने अर्जुन सिंह को ही लो। सत्ता की मलाई हजम नहीं होती। गैर कांग्रेसी सरकारों की उतनी आलोचना नहीं करते। जितनी अपनी ही सरकार की। पिछली बार भी आखिरी साल अपनी ही सरकार को डंडा दिया। अबके भी आखिरी साल डंडा लेकर पीछे पड़ गए। नरसिंह राव का आखिरी साल कष्ट भरा रहा। अर्जुन सिंह जैसे अपनों ने ही सरकार का जीना हराम किया। निशाने पर तब भी राव कम, मनमोहन ज्यादा थे। कहा था- 'उदारवादी नीतियों का मानवीय चेहरा होना चाहिए।' अबके मनमोहन की नीतियों पर तो कोई हमला नहीं। पर जहर बुझे तीर मनमोहन पर ही। जब उनने कहा- 'राहुल को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कुछ गलत नहीं।' तो उनने एक तीर से दो निशाने साधे। एक तो सोनिया-राहुल की चापलूसी। दूसरा- मनमोहन को पीएम की रेस से आउट करना। पर सोनिया ने अपने हरकारे से कहलवा दिया- 'हमें चापलूसी पसंद नहीं।' अब अर्जुन ने दूसरा तीर निकाला। उनने कहा- 'कांग्रेस में अब राय मशविरे से फैसले नहीं होते।' अपन जानते हैं- अर्जुन का निशाना सोनिया के इर्द-गिर्द मंडराने वालों पर। खासकर अहमद पटेल पर। अर्जुन कैंप अपन को अर्से से बता रहा था- 'अहमद भाई ही अर्जुन को राजभवन भिजवाने पर आमादा।' अर्जुन कैंप को चापलूसी पसंद नहीं वाला डॉयलाग भी अहमद भाई का लगा। सो अब अर्जुन ने सोनिया के फैसलों पर सवाल उठाया। तो शकील अहमद से कहलवाया गया- 'सोनिया हर फैसला सलाह मशविरे से ही करती हैं।' मतलब यह- जिनसे सलाह करनी हो, करती हैं। अर्जुन सिंह की सलाह जरूरी नहीं समझी जाती।
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