चुनाव आयुक्त नवीन चावला के खिलाफ बीजेपी का केस अब और मजबूत। बीजेपी ने पिछले साल सात अगस्त को चावला को हटाने की अर्जी लगाई थी। बीजेपी का आरोप था- 'नवीन चावला कांग्रेस के हाथों की कठपुतली। वह सोनिया गांधी के करीबी। सो निष्पक्ष होकर काम नहीं कर सकते।' यों नवीन चावला की इंदिरा परिवार से नजदीकी बहुत पुरानी। इमरजेंसी में चावला काफी विवादों में रहे। इमरजेंसी के अत्याचारों की जांच हुई। तो शाह कमिशन ने चावला का काफी जिक्र किया। नजदीकी का ताजा सबूत सत्रह फरवरी 2006 को सामने आया। जब खुलासा हुआ- 'कांग्रेस के पांच सांसदों ने चावला की बीवी रूपिका के ट्रस्ट को सांसद निधि से फंड दिया।'
सांसद थे- ए.ए. खान, आरपी गोयनका, अंबिका सोनी, डा. कंवर सिंह, एआर किदवई। चावला की कांग्रेस से करीबी का इससे बड़ा सबूत क्या होता। फिर एक और सबूत सामने आया। अशोक गहलोत जब राजस्थान के सीएम थे। तो उनने रूपिका के लाला चमनलाल एजुकेशन ट्रस्ट को छह एकड़ जमीन दी। बवाल खड़ा हुआ। तो चावला के हवाले से खबरें छपी- 'साहब सिंह वर्मा ने भी ट्रस्ट को फंड दिया।' पर यह बात गलत निकली। एक और खबर छपी- 'अरुण जेटली की बीवी संगीता ने भी रूपिका के ट्रस्ट को तेरह हजार रुपए दिए।' पर बाद में खुलासा हुआ- 'ट्रस्ट ने फर्नीचर की सेल लगाई थी। फर्नीचर खरीद संगीता ने तेरह हजार रुपए दिए थे। ट्रस्ट को चंदा नहीं था।' एनडीए के 205 सांसद चावला की बर्खास्तगी के लिए लामबंद हुए। पंद्रह मार्च को राष्ट्रपति कलाम का दरवाजा खटखटाया गया। पर कलाम ने चावला के खिलाफ आई अर्जी केबिनेट को भेज दी। यों तरीका यह था- चावला के खिलाफ जो शिकायत मिली थी। उसे राष्ट्रपति कलाम सीईसी को भेजते। पर मनमोहन सरकार ने उन्हें गलत सलाह दी। मनमोहन सरकार ने एक बार नहीं। अनेक बार कलाम को गलत सलाह दी। बिहार में राष्ट्रपति राज लगवाने वाला किस्सा तो याद होगा ही। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर और केंद्र दोनों को फटकार लगाई। मनमोहन भी कटघरे में थे। पर उनने ठीकरा सिर्फ बूटा सिंह के सिर फोड़ा। चावला के मामले में भी यही हुआ। कलाम को गलत सलाह दे मनमोहन सरकार ने फाइल दबा दी। थककर बीजेपी सुप्रीम कोर्ट गई। कोर्ट ने केबिनेट का फैसला तलब किया। तो सरकार के होश उड़े। तभी सीईसी ने कोर्ट में कहा- 'चुनाव आयुक्त को हटाने की सिफारिश करने का उसे पूरा हक। पर उसके पास कोई अर्जी नहीं पहुंची।' इसी पर अदालत ने एनडीए से कहा- 'आप आयोग के पास जाइए।' तो एनडीए ने कोर्ट की सलाह मान ली। अपनी अर्जी वापस ले ली। सात अगस्त 2007 को सीधे सीईसी को अर्जी लगाई। यों तो चावला की पक्षपाती भूमिका के ढेरों सबूत थे। जिन्हें एनडीए ने अपनी अर्जी में लिखा था। पर अब तो खुद सीईसी एन. गोपालस्वामी ने सबूत दे दिया। खुलासा हुआ है- 'चावला ने कर्नाटक के चुनाव टलवाने की कोशिश की। उनने सीईसी को बाकायदा चिट्ठी लिखी। जिसमें मई की बजाए अगस्त में चुनाव की गुहार लगाई।' बारिश के कारण अगस्त में चुनाव हो नहीं सकते थे। चुनाव अक्टूबर-नवंबर में जाकर होते। कांग्रेस भी यही चाहती थी। कांग्रेस येदुरप्पा की लोकप्रियता से डरी हुई थी। बीजेपी को चावला-सोनिया खुसर-पुसर की भनक लगी। तो फौरन गोपालस्वामी का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में जाने की धमकी भी दी। बीजेपी की रणनीति कामयाब रही। गोपालस्वामी ने चावला की सलाह तो मानी ही नहीं। अलबत्ता बीस मार्च को चावला को करारा जवाब भी दिया। जिसमें उनने लिखा- 'चुनाव टाले, तो सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना पड़ेगा।' याद है- मई-जून में चुनावों का एलान हुआ। तो कांग्रेस कैसे हड़बड़ाई थी। पर अब सारे सबूत सामने आ गए। तो चावला के खिलाफ पेंडिंग अर्जी में एक और सबूत जुड़ गया।
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