नई दिल्ली। आपने अगर ठान लिया है कि सफलता पानी है तो कोई भी आपका रास्ता नहीं रोक सकता। इरादे मजबूत हों और मन में लगन तो आदमी हो या औरत क्या नहीं कर सकता। ऐसा ही जीता जागता उदाहरण यूपीएससी परीक्षा में पास हुई उम्मुल खेर का है।
उम्मुल खेर एक ऐसी लड़की का नाम है जो ऑस्टियो जेनेसिस बीमारी से जूझ रही है। इस बीमारी में हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि वे बहुत आसानी से टूट जाती हैं। उम्मुल की उम्र अभी 28 साल की है और वह 16 बार फ्रैक्चर और आठ बार सर्जरी का सामना कर चुकी है। इन सबके बावजूद उसने आईएस बनकर मिसाल पेश की है।
बहुत गरीब घर की है उम्मुल
राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल खेर को अपनी कहानी याद है जब वह पांच साल की थीं। वह बताती हैं कि गरीबी थी। हम तीन भाई-बहन का परिवार था। पिता यहां दिल्ली आ गए। पिता के जाने से मां को सीजोफ्रीनिया(मानसिक बीमारी) के दौरे पड़ने लगे। वह प्राइवेट काम करके हमें पालती थीं। मगर बीमारी से उनकी नौकरी छूट गई। दिल्ली में फेरी लगाकर कमाने वाले पिता हमें अपने साथ दिल्ली ले आए। यहां हम हजरत निजामुद्दीन इलाके की झुग्गी-झोपड़ी में रहने लगे। 2001 में यहां से झोपड़ियां उजाड़ दी गईं। हम फिर से बेघर हो गए।
बहुत मुश्किल से कमाती थी 100-200 रुपये
मैं तब सातवीं में पढ़ रही थी। पिता के पैसे से खर्च नहीं चलता था तो मैं झुग्गी के बच्चों को पढ़ाकर 100-200 रुपये कमा लेती थी। उन्हीं दिनों मुझे आईएएस बनने का सपना जागा था। सुना था कि यह सबसे कठिन परीक्षा होती है। हम त्रिलोकपुरी सेमी स्लम इलाके में आकर रहने लगे। घर में हमारे साथ सौतेली मां भी रहती थीं। हालात पढ़ाई लायक बिल्कुल नहीं थे। मुझे याद है कि तब तक कई बार मेरी हड्डियां टूट चुकी थीं। पिता ने मुझे शारीरिक दुर्बल बच्चों के स्कूल अमर ज्योति कड़कड़डूमा में भर्ती करा दिया। यहां पढ़ाई के दौरान स्कूल की मोहिनी माथुर मैम को कोई डोनर मिल गया। उनके पैसे से मेरा अर्वाचीन स्कूल में नौवीं में दाखिला हो गया। दसवीं में मैंने कला वर्ग से स्कूल में 91 प्रतिशत से टॉप किया। उधर, घर में हालात बदतर होने लगे थे। मैंने त्रिलोकपुरी में अकेले कमरा लेकर अलग रहने का फैसला कर लिया। वहां मैं अलग रहकर बच्चों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई करने लगी।
पास होने पर घर में छाया खुशियों का माहौल
अब 12वीं में भी 89 प्रतिशत में मैं स्कूल में सबसे आगे रही। यहां मैं हेड गर्ल ही रही। कॉलेज जाने की बारी आई तो मन में हड्डियां टूटने का डर तो था। फिर भी मैंने डीटीसी बसों के धक्के खाकर दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहां से फिर जेएनयू से शोध और साथ में आईएएस की तैयारी। हंसते हुए कहती हैं बाकी परिणाम आपके सामने है। ..और सफर जारी है। घरवालों ने भी फोन करके बधाई दी है। भाई-बहन बहुत खुश हैं।
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