टी.आर. बालू के मुद्दे पर कांग्रेस का हाल सरुपनखा जैसा। जवाब देते नहीं बन पा रहा। सोमवार को अभिषेक मनु सिंघवी के पसीने छूटे। तो मंगलवार को जयंती नटराजन की हालत खराब हुई। किसी एक सवाल का जवाब नहीं दे पाईं। मुंह पर जैसे ताला लग गया हो। संसद में पांचवें दिन भी मुद्दा छाया रहा। आडवाणी ने पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में कहा- 'यह दागी मंत्रियों की सरकार है। पीएम बालू के मामले पर चुप्पी नहीं साध सकते। कुनबापरस्ती पर बालू को इस्तीफा देना चाहिए। बीजेपी शुक्रवार को मंहगाई के साथ बालू का मुद्दा भी उठाएगी।' अपने राजनाथ सिंह तमिलनाडु में जाकर बोले- 'प्रधानमंत्री संसद में जवाब दें।' पर संसद में बीजेपी ने इसे दमदार ढंग से नहीं उठाया। जयललिता के चार सांसद खड़े हुए। तो बीजेपी साथ देती जरूर दिखी।
नए-नए मंत्री नारायणसामी राज्यसभा में बोले- 'बुधवार को मुरली देवड़ा जवाब देंगे।' अपन को एआईडीएमके सांसद मैत्रेय ने कहा- 'मुरली देवड़ा का जवाब अंत नहीं होगा। वहां से तो शुरुआत होगी।' कटघरे में सिर्फ बालू और देवड़ा नहीं। जसवंत सिंह ने पीएम को कटघरे में खड़ा किया था। सो देवड़ा के जवाब से संकट का हल नहीं। देवड़ा का जवाब अपन को पहले से पता। वह वही बोलेंगे, जो उनने मंगलवार को अपन से कहा। बोले- 'पीएमओ की चिट्ठियों में कोई कुनबापरस्ती नहीं। हर रोज हमें लोगों की दरख्वास्तें मिलती हैं। अगर कोई मुझे कहे- यह दो हजार लोगों की नौकरी का सवाल है। तो मैं अपने अफसरों से कहूंगा- तथ्यों का पता लगाओ। हम कैसे मदद कर सकते हैं। हम लोगों की मदद के लिए हैं। उन्हें परेशान करने के लिए नहीं।' तो आपको क्या लगता है- यह जवाब संतुष्ट कर पाएगा। बालू ने भरी संसद में छाती ठोककर कहा- 'अपने बेटों की कंपनियों को गैस दिलाने की कोशिश करना गलत नहीं।' इसे कुनबापरस्ती नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे। कुनबापरस्ती को कांग्रेस भी समझती है। तभी तो कांग्रेस प्रवक्ताओं की बोलती बंद। पर सरकार पूरी तरह बेशर्मी पर उतर आई। यानि बुधवार को दोनों सदनों में हंगामे के आसार। लेफ्ट के दबाव में सत्र नौ मई तक चलाने का फैसला। लोकसभा का काम तो निपट गया। राज्यसभा का एक-आध दिन का बाकी। कांग्रेस ने नौ तक सत्र की मुसीबत बिना वजह मोल ली। मुसीबतों का पहाड़ तो बुधवार को ही टूटना शुरू हो जाएगा। शुरुआत बालू से होगी। पर लेफ्ट का डंडा अगले हफ्ते चलेगा। मनमोहन-सोनिया ने खुद लेफ्ट से पंगा लिया। मनमोहन ने मंहगाई पर राजनीति न करने की सीख देकर। तो सोनिया ने नंदीग्राम की कानून-व्यवस्था का सवाल उठाकर। धुरंधरों की मानें। तो यह मनमोहन-सोनिया का पंगा नहीं। अलबत्ता अगली राजनीति का इशारा। दोनों मुद्दों पर सीताराम येचुरी भड़के। तो मंगलवार को मनमोहन सिंह तो थोड़े ढीले पड़े। पर सोनिया की सेहत पर कोई असर नहीं। मनमोहन राजनीति के धुरंधर तो हैं नहीं। सो सीआईआई में बोले- 'मंहगाई पर रोक राजनीतिज्ञों की मदद से ही संभव। पैसे कोई पेड़ों पर नहीं लगते।' यानि येचुरी के एक बयान से पसीने छूट गए। जहां तक सवाल सोनिया का। तो सोनिया के खिलाफ भी लेफ्ट ने मोर्चा खोल लिया। तेवरों का अंदाज ज्योति बसु के बयान से लगाइए। वह बोले- 'सोनिया को भाव देने की कोई जरूरत नहीं। वह कुछ नहीं जानती। उसे बंगाल के बारे में धेला नहीं पता। कानून-व्यवस्था पर बोलती है। मंहगाई पर क्यों नहीं बोलती। सरकार सीएमपी पर नहीं चल रही।' बात सीएमपी की चली। तो बता दें- अगले हफ्ते की जंग होगी एटमी करार पर। कोई माने न माने। अपन को सरकार चलती दिखाई नहीं देती।
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