टी. आर. बालू मंत्री पद का दुरुपयोग करते रंगे हाथों पकड़े गए। मनमोहन सिंह भी बालू की तरफदारी करते रंगे हाथों पकड़े गए। मनमोहन सिंह ने शपथ ली थी- 'बिना राग-द्वेष के जिम्मेदारी का निवर्हन करूंगा।' कोई और देश होता। तो कम से कम टी. आर. बालू का इस्तीफा हो जाता। अपने यहां तो राजनीति अब अपना घर भरने का जरिया बन गई। इसीलिए रंगे हाथों पकड़े गए। तो बालू ने कहा- 'इसमें मैंने गलत क्या किया।' तो अपन याद दिला दें उनने क्या गलत किया। प्रताप सिंह कैरो ने भी यही किया था। दास कमीशन ने परिजनों को फायदा पहुंचाने का दोषी पाया। तो कैरो को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। पर अब मंत्री अपने बेटों को फायदा पहुंचाने पर भरी संसद में कहता है- 'मैने सिफारिश करके क्या गलत किया।' मनमोहन खुद सिफारिशी चिट्ठियां लिखते हैं। मनमोहन को भी लोक-लाज का डर नहीं। पहले तो अपने पीएम ही राजनीतिज्ञ नहीं थे। अब उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी।
गुरुवार को अपन ने उपराष्ट्रपति का गैर राजनीतिक जलवा देखा। तो शुक्रवार को मनमोहन का। लेफ्ट के नेता मंहगाई पर पीएम से मिले। तो पीएम के मीडिया सलाहकार ने बयान जारी किया। कहा- 'राजनीतिक दल मंहगाई का हौव्वा खड़ा करने का काम न करें। मंहगाई पर राजनीति से बाज आएं।' तो क्या अब राजनीतिक दलों को दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। क्या फिर इमरजेंसी के हालात पैदा होंगे। स्वाभाविक है- लेफ्ट नेताओं की भौंहें तनीं। येचुरी-बर्धन लाल-पीले हुए। पर सवाल दूसरा। क्या मंहगाई का हौव्वा राजनीतिक दल खड़ा कर रहे हैं। क्या मुद्रा स्फीति का आंकड़ा विपक्ष ने बनाया। ताजा आंकड़ा ही देख लो। एक हफ्ते की गिरावट के बाद फिर उछल गया। खुद मंहगाई रोक नहीं पा रहे। ऊपर से मंहगाई का सवाल उठाने वालों पर गीदड़ भभकियां। यह तो रहा गैर राजनीतिज्ञ प्रधानमंत्री का हाल। अब गैर राजनीतिज्ञ उपराष्ट्रपति का किस्सा देखो। मंत्री-प्रधानमंत्री रंगे हाथों राग-द्वेष करते पकड़े गए। पर चेयरमैन हामिद अंसारी ने रंगे हाथों पकड़ने वाले सिपाही को सदन से निकाल दिया। ऐसा नहीं जो पहले लोग नौकरशाही से लोकशाही में नहीं आए। के.आर.नारायणन, नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा, मणिशंकर अय्यर, अजीत जोगी, एम.एस. गिल, एन.के. सिंह। ढेरों उदाहरण। पर पहले सबने संसद में जाकर लोकशाही के गुर सीखे। लेफ्ट ने जिद करके गैर राजनीतिज्ञ को उपराष्ट्रपति बनवाया। हामिद अंसारी ने राज्यसभा की रूल बुक तो पढ़ी। पर पिछले चेयरमैनों ने सदन कैसे चलाया। उस पर लिखी किताबें नहीं पढ़ी। कम से कम के. आर. नारायणन का कार्यकाल तो पढ़ते। जो कूटनीति से ही राजनीति में आकर उपराष्ट्रपति बने थे। गुरुवार को सदन नहीं चला। अंसारी उसी की गंभीरता समझते। तो शुक्रवार को सुधार हो जाता। अपन को मैत्रेय बता रहे थे- 'मेरे सस्पेंशन का समय तो निकल गया। वह तो लौट नहीं सकता। पर सस्पेंशन रद्द करने का प्रस्ताव पास नहीं होगा। तो राज्यसभा नहीं चलेगी।' वही हुआ, राज्यसभा नहीं चली। सदन से निकलते-निकलते मैत्रेय अपन को फिर बता गए- 'सोमवार को भी नहीं चलने देंगे।' पर हामिद अंसारी ने शुक्रवार को अलग तरह का विरोध झेला। सदन शुरू हुआ। तो शरद यादव-जनेश्वर मिश्र ने सस्पेंशन पर सवाल उठाया। पर हामिद अंसारी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। बोले- 'मैंने किसी को कोई सजा नहीं दी। मैंने तो रूल बुक का पालन किया।' पर विपक्ष का सवाल लाख टके का- 'रूल बुक का पक्षपातपूर्ण इस्तेमाल क्यों। मंत्री तक हंगामा करने से बाज नहीं आते।' हामिद अंसारी ने शुक्रवार को लोकशाही का विराट रूप देखा। जब विपक्ष के सांसद मुंह पर उंगली रखकर बैठे रहे। जब तक हामिद सदन में रहे किसी ने मुंह नहीं खोला। नाम पुकारा गया, तो सवाल नहीं पूछा। विरोध की यह गांधीगिरी पहली बार अपनाई गई। अंसारी सदन से उठकर गए। तो विपक्ष फिर वेल में उतर आया। नारेबाजी शुरू हो गई। गुरुवार की तरह शुक्रवार भी नहीं चला सदन। पर यह बात सिर्फ अंसारी पर अटक गई। बालू-मनमोहन राग-द्वेष करते पकड़े जाने के बावजूद बेपरवाह।
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