यूपी-एमपी में कांग्रेस को जोरदार झटका धीरे से लगा। बेतूल में भले ही बीजेपी डेढ़ लाख की बजाए सिर्फ पैंतीस हजार से जीती। पर कमलनाथ-पचौरी-सिंधिया नाक की लड़ाई लड़ रहे थे। यूपी में तो कांग्रेस की और गत बनी। लोकसभा की दोनों सीटें मायावती ले उड़ी। विधानसभा की तीनों सीटें भी। कांग्रेस कहीं दूसरे नंबर पर भी नहीं आई। अर्जुन सिंह को अब समझ आया होगा। चले थे राहुल बाबा को पीएम बनवाने। राहुल के दलित की झोपड़ी में सोने का असर नहीं हुआ। सबने इसे राजनीति के घड़ियाली आंसू माना। कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद से यूपी-एमपी में कांग्रेस की गत पर पूछा। तो बोले- 'यूपी का नाम मत लो। वहां तो हम थे ही नहीं। हम उड़ीसा-बंगाल में जीते। उस पर क्यों नहीं पूछते।' यही है कांग्रेस की मीठा-मीठा सुनने की संस्कृति। चापलूसी की संस्कृति। पर अर्जुन ने राहुल को पीएम बनाने की बात क्या कही। सोनिया का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
जयंती नटराजन से कहलवा दिया- 'सोनिया-राहुल को चाटुकारिता पसंद नहीं।' अर्जुन का मुंह खुलते ही बंद करने पर उनके विरोधियों की बांछे खिल गई। अर्जुन ने तो अपमान का घूंट पी लिया। पर अर्जुन के चंपुओं की नींद हराम। अपन को एक कांग्रेसी दिग्गज बता रहा था- 'सोनिया के अर्जुन से खफा होने की वजह राहुलगिरी नहीं। अलबत्ता ओबीसी मामले में क्रीमी लेयर पर कांग्रेस की फजीहत करवाना। मनमोहन क्रीमी लेयर को आरक्षण के हक में नहीं थे। यह फच्चर अर्जुन ने फंसाया। अब कोर्ट के फैसले से मनमोहन सही साबित हुए।' यानी गुस्सा तो क्रीमी लेयर पर था। पर उतर गया राहुलगिरी पर। अब कांग्रेसियों के सामने नया संकट। अगर सोनिया-राहुल चालीसा नहीं गाएंगे। तो कहने को बचेगा भी क्या। विजय कुमार मल्होत्रा सही बोले- 'चाटुकारिता तो कांग्रेस की संस्कृति। देश की हर परियोजना राजीव के नाम पर होना क्या चाटुकारिता नहीं।' पर अपने अरुण जेतली का दर्द एकदम अलग। बोले- 'मैंने जब राज्यसभा में कांग्रेसियों को चाटुकार कहा। तो कांग्रेसी मुझ पर चढ़ दौड़े थे। चाटुकार शब्द को कार्यवाही से निकलवाकर माने। अब खुद अर्जुन को चाटुकार बता रहे हैं।' अर्जुन को चाटुकार कह तो दिया। पर अब सबकी नींद हराम। बुधवार को शकील से कुछ कहते नहीं बना। बोले- 'किसी व्यक्ति विशेष को चाटुकार नहीं कहा।' तो फिर किसको कहा। इसका जवाब नहीं सूझा। शकील की बात तो छोड़िए। वीरप्पा मोइली तक मुंह खोलने को तैयार नहीं हुए। पूछा तो बोले- 'इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहूंगा।' पर अपन को मीडिया सेल के एक नेता ने कहा- 'फौरन न रोका जाता। तो देशभर से राहुल लाओ-मनमोहन हटाओ गूंज उठता।' तो क्या मनमोहन विरोधी खेमा सचमुच सक्रिय हो गया था। अपने जनेश्वर मिश्र ने कुछ गलत नहीं कहा। राज्यसभा में मंहगाई पर बोल रहे थे। तो बोले- 'एक लड़का पीएम पद का उम्मीदवार उभरा। तो चल रहा था- मनमोहन का पत्ता गोल होगा। तभी अचानक मंहगाई बढ़ा दी गई। ताकि मनमोहन को उतारने में आसानी हो। कितनी राजनीति होती है? हमारे पेट की आग में इतनी राजनीति जलाई जाएगी। दस-पंद्रह दिन का समय लो। मंहगाई नहीं रोक सकते। तो जाओ, देश को माफ करो।' यही बात अपने लालकृष्ण आडवाणी ने बीजेपी पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में कही। बोले- 'मंहगाई नहीं रोक सकते तो जाओ।' पर बात लेफ्ट-यूएनपीए की। क्या सचमुच लेफ्ट-यूएनपीए सरकार गिराएगा। नहीं, ऐसा कतई नहीं होगा। हर भोंकने वाला कुत्ता काटता नहीं। हर गरजने वाला बादल बरसता नहीं। देखो- लोकसभा में गुरदास दासगुप्त कितना बरसे। यहां तक कह दिया- 'यूपीए को समर्थन देने पर हमें अफसोस। हमारा प्रयोग फेल हो गया।' पर राज्यसभा में जब मुरली मनोहर जोशी ने ललकारा- 'हिम्मत है, तो विपक्ष में आकर बैठो।' तो लेफ्टियों की जुबान पर ताला लग गया। जहां तक बात जादू की छड़ी की। तो जनेश्वर मिश्र बोले- 'मोरारजी देसाई ने जादू की छड़ी घुमाई थी। तो कीमतें चौथाई पर आ गई थी। आपके पास जादू की छड़ी नहीं। तो जाइए।' जोशी बोले- 'तो जनता ऐसी छड़ी मारेगी, दिमाग दुरस्त हो जाएगा।'
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