आखिर हो ही गया मंत्रिमंडल में फेरबदल। छह मंत्रियों की छुट्टी हुई। सात की शपथ। पर सबको खुश नहीं कर पाई सोनिया। अलबत्ता खुश कम हुए, नाराज ज्यादा। पहले अपन जाने वालों की बात करें। अपने सुरेश पचौरी का राज्य सभा सीट में जुगाड़ नहीं बना। सो पचौरी को जाना ही था। पचौरी का राज्य सभा का जुगाड़ लग जाता। तो प्रियरंजन दासमुंशी की तरह मंत्री भी रह जाते। पचौरी मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। तो दासमुंशी भी पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष बने। सो पार्टी की जिम्मेदारी से मंत्री पद का कुछ लेना देना नहीं। सोनिया तो राहुल बाबा को भी मंत्री बनाना चाहती थी। पर राहुल बाबा डबल जिम्मेदारी से बचे। पार्टी महासचिव का बोझ कोई कम नहीं। एक व्यक्ति, एक पद का सिध्दांत अब काफूर। नरसिंहराव ने बनाया था यह सिध्दांत । वैसे तो यह सिध्दांत बंगाल में पहले भी लागू नहीं था। अपने प्रणव दा मंत्री भी थे, प्रदेश अध्यक्ष भी। पर राहुल बाबा की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा।
बाकी महासचिवों को मंत्री पद की आफर नहीं हुई। एम.एस. राजशेखर भी सांसद नहीं बन पाए। सो छुट्टी हुई। जहां तक गोवित,अखिलेश दास, दसारी नारायण राव और सुबी रामी रेड्डी की बात। तो चारों परफॉरमेंस पर गए। गोवित, अखिलेश की तो परफॉरमेंस बेकार थी। पर आंध्र के दसारी और रेड्डी पर तो भ्रष्टाचार के भी आरोप थे। दसारी के पास था कोयला और सुबी रामा रेड्डी के पास खनन। आंध्र के हनुमंत राव को बहुत उम्मीद थी। पर नम्बर नहीं लगा। हनुमंत राव मंत्री बनते। तो तेलंगाना में कांग्रेस को फायदा होता। पर लगता है सी.एम.राजशेखर रेड्डी ने कोई फच्चर फंसाया। अहमद पटेल ने हनुमंत राव को फोन करके बोला-'सॉरी'। सो आंध्र घाटे में रहा। फायदे में रहा राजस्थान। आखिर चुनाव की घंटी जो बज चुकी। पर राजस्थान से नंबर लगा अपने संतोष बागरोडिया का। अपने जुगाड़ की फिर धाक जमाई। सचिन पायलट आते-आते रह गए। जरूर गुर्जर को बनाने पर मीणाओं की नाराजगी का डर होगा। राहुल चाहकर भी सचिन को नहीं बनवा पाए। पर राहुल लॉबी से जितिन प्रसाद हो गए। जहां तक ज्योतिरादित्य की बात। तो वह राहुल लॉबी में नहीं। अलबत्ता सीधे सोनिया से जुड़ाव। जो शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखा। जब ज्योतिरादित्य ने सोनिया के पांव छुए। ताकि सनद रहे सो बता दें- बाकी किसी ने पांव नहीं छुए। रामेश्वर ओराव आदिवासी कोटे से बने। इस पर अपने शिबू सोरेन बेहद खफा। हत्या के मामले से बरी हो गए। पर सोनिया-मनमोहन ने बेदाग नहीं माना। अब शिबू झारखंड में संकट खड़ा करें। तो अपन को हैरानी नहीं होनी। जहां तक बात रघुनाथ झा की। तो बेचारे एनडीए सरकार के वक्त से लगे थे। पर मंत्री नहीं बन पाए। जार्ज-नीतीश-शरद का पल्लू छोड़ा। लालू यादव का पल्लू पकड़ा। तो हो गए मंत्री। जिंदगी की सबसे बड़ी मुराद पूरी हुई। सोनिया ने लालू पर कोई कृपा नहीं की। अलबत्ता कम्युनिस्टों-मुलायम से दोस्ती बना रहे लालू को पुचकारा। नारायण सामी को तो मजबूरी में मंत्री बनाना पड़ा। पांडीचेरी सीएम पद के दावेदार थे। सीएम नहीं बनाया। तो आए दिन सीएम की नाक में दम किए रहते थे। अब केन्द्र में मंत्री हो गए। तो एक कांग्रेसी सीएम को तो राहत मिलेगी। पर दूसरे सीएम विलासराव पर तलवार लटक गई। भले ही सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति भवन में कहा-'देशमुख पर खतरा नहीं।' पर खतरा अभी टला भी नहीं। अपन को महाराष्ट्र में जल्द ही सीएम बदलने का भरोसा। नारायण राणे ने देशमुख की नाक में दम कर रखा है। सोनिया ने सीएम न बदला। तो महाराष्ट्र में कब बगावत हो जाए, कौन जानें। यों तो राणे को भी सीएम पद का वादा था। पर राणे नहीं, सुशील कुमार शिंदे की उम्मीद ज्यादा। हां एक बात तो रह ही गई। एमएस गिल क्यों बने। करुणानिधि की बेटी कन्नीमूरी क्यों नहीं बनी। तो गिल को बनाने का मतलब अपने गोपालस्वामी को सीधा-सीधा संदेश। कांग्रेस का फायदा करोगे। तो रिटायरमेंट के बाद रेवड़ी मिलेगी। वैसे गोपालस्वामी इस चक्रव्यूह में फंसने वाले नहीं। गिल को बनाकर सोनिया ने नवीन चावला का रास्ता भी साफ किया। यों भी गिल का दस जनपथ से सीधा रिश्ता। जहां तक कन्नीमूरी की बात। तो करुणानिधि ने आखिरी समय पर फच्चर फंसा दिया। सोनिया-मनमोहन दोनों ने गुहार लगाई। पर करुणानिधि नहीं माने। कन्नीमूरी की मां राजाथी अमल ने भी कोशिश की। पर करुणानिधि नहीं माने। लगता है- करुणानिधि का मोह भंग होने लगा। वैसे भी चुनावों से पहले पाला बदलने के माहिर।
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