गोवा में भी बीजेपी की सरकार बन गई | मणिपुर में भी बन रही है | अलबता उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड से पहले बन रही है | उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में तो दो अनार, सौ बीमार हैं | गोवा में अनार था ही नहीं, बीमार कौन होता | जिन्होंने अनार दिया, उन्हीं ने बीमार भी बता दिया | असल में 40 के सदन में भाजपा को सिर्फ 13 सीटें मिली | जबकि कांग्रेस को 17 सीटें मिली | पर बीजेपी को 32.5 फीसदी वोट मिले | जबकि कांग्रेस को 28.4 फीसदी वोट मिले | भाजपा को सीटें तो 4 कम मिली, पर वोट 4 फीसदी ज्यादा मिले |
मजेदार बात बताएं | भाजपा के 13 विधायकों में से 6 ईसाई हैं | ग्लेंन टिक्लो, माराकेल विन्सेंट लोगो, एलिना सल्दिन्हा ,मोबिन हेलियोदोरो, फ्रांसिस्को ई सोका ,जोंस जीस कालौस | कांग्रेस-भाजपा को तीस सीटें मिली, तो बाकी की दस सीटें बंट गई | तीन महाराष्ट्रवादी गोमान्तक पार्टी को, तीन गोवा फारवर्ड पार्टी को ,एक एनसीपी को और तीन निर्दलीय | त्रिशंकू जनादेश में यह तो तय था कि सरकार जोड़-तोड़ से बनेगी | पर जोड़-तोड़ करने का पहला हक कांग्रेस का था | उसे सिर्फ चार सीटों की जरूरत थी | जबकि भाजपा को आठ सीटों की जरूरत थी | कांग्रेस के लिए काम बहुत आसान था | भाजपा के लिए बहुत मुश्किल | गोवा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी दिग्विजय सिंह हैं | अनुभवी और खिलाड़ी किस्म के थे | खिलाड़ी इतने कि दस साल खुद तो मध्य प्रदेश के सीएम रहे | उस के बाद कांग्रेस पर ताला ही लगा गए |
दिग्गी राजा की कृपा से शिवराज सिंह चौहान चौथी बार सीएम बनेंगे | अब ऐसा खिलाड़ी चाहता तो चार एमएलए का जुगाड़ क्या मुश्किल था | वह चाहते तो चुटकियों में खेल कर लेते | पर अगर वह फुर्ती दिखा देते तो डेमोक्रेसी की ह्त्या का आरोप कैसे लगाते | गवर्नर को बदनाम करने का मौक़ा कैसे मिलता | सेक्यूलर बुद्धिजीवियों को शौर मचाने का मौक़ा कैसे मिलता | आखिर उन बेचारों को भी तो कोई काम देना था | सो दिग्विजय लम्बी तान कर सौ गए | कांग्रेस आसान काम भी न कर पाई | जबकि भाजपा ने मुश्किल काम भी चुटकियों में कर डाला | भले ही भाजपा के प्रभारी जुगाडू किस्म के नहीं थे | पुरषोतम रूपाला ठहरे सीधे-सादे आदमी | तो कमान नितिन गडकरी ने संभाल ली | गोवा में पहले भी जब जब संकट आया | नितिन गडकरी संकट मोचक साबित हुए थे | पर गडकरी को मेहनत करनी ही नहीं पडी | एमजीएफ और जीऍफ़पी ने छूटते ही शर्त रख दी | मनोहर पर्रीकर को सीएम बना दो, तो आगे बात करें | भाजपा को पहले ही पता था कि गोवा की कमान पर्रीकर को देनी पड़ेगी | पर्रीकर को दिल्ली नहीं लाया गया होता | तो जुगाड़ की जरूरत ही नहीं पड़ती | भाजपा समर्थन ले कर ही आती |
परिकर को दिल्ली लाना मोदी की गलती थी | उनकी जगह सीएम बनाए गए पारसेकर फ्लाप साबित हुए | खुद ही चुनाव हार गए , तो पार्टी को क्या जीताना था | याद करो कर्नाटक, उतराखंड , झारखंड और गोवा | भाजपा ने जब जब सीएम बीच रास्ते में बदले नुकसान उठाना पडा | मध्यप्रदेश में उमा भारती को हटाया नहीं था | वह हुबली की तिरंगा यात्रा के केस में फंस गई थी | पर अपन बात कर रहे थे त्रिशंकू गोवा विधानसभा की | तो क्या गवर्नर का मनोहर पर्रीकर को न्योता देना डेमोक्रेसी की ह्त्या है ?
याद करो 1996, जब भाजपा सब से बड़ी पार्टी उभर कर आई थी | तब डा. शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति थे | उनने परम्परा के मुताबिक़ अटल बिहारी वाजपेयी को न्योता दिया था | अब जो डेमोक्रेसी की हत्या बता रहे हैं | तब उन्ही ने सब से बड़े दल को न्योता के खिलाफ प्रदर्शन किया था | देश में पहली बार राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शन हुआ था | फिर याद करो 1998 , जब भाजपा फिर बड़ी पार्टी उभरी | तो के.आर.नारायण ने वाजपेयी को तब तक न्योता नहीं दिया | जब तक उनने सदन में बहुमत का आंकड़ा नहीं दिखा दिया था | जय ललिता की आख़िरी चिट्ठी पर भी बहुमत नहीं हुआ था | तब के.आर. नारायण ने खुद चन्द्र बाबू नायडू को फोन कर के पूछा था | नायडू ने कहा था वह कांग्रेस का समर्थन नहीं करेंगे | तब जा कर नारायण ने वाजपेयी को न्योता दिया था |
उमर अब्दुल्ला ने तो बता ही दिया है | 2002 में नॅशनल कांफ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी थी | पर न्योता पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद को मिला था | दूसरे नंबर की पीडीपी और तीसरे नंबर की कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया था | तब डेमोक्रेसी की ह्त्या नहीं हुई | तो अब कैसे हुई | कांग्रेस दावा पेश करने ही नहीं गई | भाजपा ने 21 विधायक ला कर खड़े कर दिए | तो गवर्नर मृद्ला सिन्हा क्या करती | क्या वह 21 विधायको का दावा ठुकरा देती | सत्रह विधायकों वाली कांग्रेस को न्योता दे देती | डेमोक्रेसी की ह्त्या तब होती या अब हुई | अब इस में गवर्नर का क्या कसूर , जो कांग्रेस 17 की सत्रह पर खडी रही | भाजपा 13 से 21 पर पंहुच गई | नालायकी किस की है |
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