लेफ्ट ने मनमोहन को चिट्ठी लिखी- 'इजराइली फर्म से बाराक का नया सौदा न किया जाए। सवाल अमेरिका और इजराइल का हो। तो अपन को लेफ्ट का रवैया पहले से मालूम। सवाल चीन-रूस-ईरान-इराक का हो। तब भी लेफ्ट की राय से वाकिफ। आखिर रूस-चीन वैचारिक जन्मभूमि। तो ईरान-इराक अल्पसंख्यक वोट बैंक का हथियार। पर अपन को हैरानी तब हुई। जब प्रगतिशीलता पर अल्पसंख्यक वोट बैंक हावी हो गया। तसलीमा नसरीन को बंगाल से निकाल बाहर किया गया। लेफ्ट के साथ कांग्रेस का सेक्युलरिज्म भी बेनकाब हुआ। कांग्रेसी इदरिस अली की रहनुमाई में ही तसलीमा के घर हमला हुआ। प्रगतिशील और सेक्युलर? बुध्ददेव सरकार को अच्छा मौका मिला। नंदीग्राम में गोलीबारी से मुस्लिम खफा थे ही। जहां ज्यादातर मुस्लिम ही मारे गए।
खफा मुस्लिमों को खुश करने का इससे बड़ा मौका क्या होता। सो रातों-रात तसलीमा को जयपुर भेज दिया। तसलीमा से पूछा तक नहीं। राजस्थान की बीजेपी सरकार के हाथ-पांव फूल गए। रातों-रात दिल्ली रवाना कर दिया। तब अपने प्रणव दा लोकसभा में बोले- 'भारत ने शरण मांगने वाले को कभी मना नहीं किया। यही नीति तसलीमा पर भी लागू होगी।' पर अब देखो हाल। साढ़े तीन महीने से तसलीमा मनमोहन सरकार की कैद में। बोली- 'मैं भारत में रहना चाहती थी, अब भी चाहती हूं। मैंने भारत को अपना घर बनाया। पर देखों मेरी हालत। मेरे मित्र मुझे नहीं मिल सकते। ऐसी जिंदगी भी क्या जिंदगी? फांसी से पहले रखे जाने वाली काल कोठरी में हूं। इससे अच्छा है, मैं भारत छोड़ दूं। मुझे डॉक्टर भी मुहैया नहीं कराया जा रहा।' तो यह था वादा जो प्रणव मुखर्जी ने संसद में किया। प्रणव मुखर्जी और मनमोहन के वादों की क्या बात। मंगलवार की बात ही लो। प्रणव दा संसद में बोले- 'हम पाक सरकार से अपील करते हैं- मानवीय आधार पर सरबजीत की फांसी माफ की जाए।' अब बात मनमोहन की। प्रकाश सिंह बादल की चिट्ठी के जवाब में उनने कहा- 'सरबजीत की फांसी रुकवाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।' पर शाम होते-होते इस्लामाबाद से चौंकाने वाली खबर आई। पाक की होम मिनिस्ट्री के प्रवक्ता जावेद इकबाल चीमा बोले- 'भारत ने सरबजीत की फांसी माफ करने के बाबत कोई आग्रह नहीं किया।' सरबजीत की फांसी के लिए पहली अप्रेल मुकर्रर। सोमवार को भिखीविंड में सरबजीत के परिवार वालों ने ऐलान किया- 'सरबजीत को फांसी हुई। तो सारा परिवार आत्मदाह कर लेगा।' सरबजीत की बहन दलजीत सोमवार को राहुल से मिली। मंगलवार को सोनिया-लालू-प्रणव दा से भी मिली। अपन बताते जाएं- अट्ठारह साल पहले लाहौर और मुल्तान में बम धमाके हुए। चौदह लोग मारे गए। सरबजीत पर इन्हीं बम धमाकों का आरोप। पर आरोपी की पहचान में पाक को मुगालता। पर बात हो रही थी लेफ्ट की। सरबजीत के मुद्दे पर लेफ्ट की वैसी सख्त राय नहीं। जैसी तसलीमा नसरीन या दलाई लामा के बारे में। तसलीमा नसरीन का अब बंगाल में सिर्फ कागजी स्वागत। जो ज्योतिबसु और बुध्ददेव ने खुद को प्रगतिशील बताने को किया। लेफ्टिए प्रणव दा को साफ बता चुके- 'तसलीमा बंगाल में कबूल नहीं।' तसलीमा को लेफ्टियों पर बड़ा गुमान था। कांग्रेस के सेक्युलरिज्म पर भी भरोसा था। पर अब इन दोनों से भरोसा उठ गया। तो यूरोप जाने की तैयारी। तसलीमा की यह तैयारी देख अपनी तो रुह कांप गई। कहीं अगली बारी दलाई लामा की न हो। तसलीमा के बाद दलाई लामा वामपथिंयों की आंख में किरकिरी। सारी दुनिया ल्हासा में तिब्बतियों पर गोलीबारी से कांप उठी। अमेरिका-आस्ट्रेलिया-यूरोपियन यूनियन सबने चीन की निंदा की। पर अपने लेफ्टिए बोले- 'यह चीन का अंदरूनी मामला।' लेफ्टियों पर निर्भर प्रणव दा चीन की निंदा को राजी नहीं हुए। तो चीन के पीएम वेन जियाबाओ मंगलवार को बोले- 'भारत का रुख काबिल-ए-तारीफ।' अपनी सरकार एक तरफ। पर सारा देश दर-बदर तिब्बतियों के साथ।
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