अपन ने चिली को हराया। ब्रिटेन ने आस्ट्रेलिया को हराया। तो अपन इस बात पर खुश थे। अब ओलंपिक में पहुंचने का रास्ता साफ। अपना मुकाबला आस्ट्रेलिया से होता। तो मुश्किल होती। पर अपने पैरों तले से तो जमीन खिसक गई। जब अपन ब्रिटेन जैसी फिसड्डी टीम से भी हार गए। पर अपनी भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष एम एस गिल को शर्म नहीं आई। अपन जब यह लिख रहे थे। तो गिल ने बड़ी बेशर्मी से इस्तीफे की मांग ठुकरा दी। उनसे धनराज पिल्ले ने इस्तीफा मांगा। प्रगट सिंह ने इस्तीफा मांगा। खुद इस्तीफा देकर फेडरेशन के उपाध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने भी इस्तीफा मांगा। डेरी डिसूजा ने तो कहा- 'ऐसी हॉकी फेडरेशन ही भंग करो।' सीपीआई के सांसद गुरुदास दासगुप्त ने तो कहा- 'गिल को धक्का मारकर बाहर निकाल दो।'
पर अपने खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर बड़ी लाचारी से बोले- 'गिल को हटाना हमारे वश में नहीं।' यों सरकार चाहे। तो क्या नहीं कर सकती। क्यों नहीं भंग हो सकती फेडरेशन। जब चुनाव से पहले नगालैंड विधानसभा भंग कर सकती है। तो देश की नाक कटाने वाली हॉकी फेडरेशन के सामने लाचारी क्यों। नगालैंड की बात चली। तो याद कराएं- कांग्रेस ने नगालैँड में गवर्नर का बेजा इस्तेमाल किया। चुनावों से ठीक पहले चीफ मिनिस्टर रियो को बर्खास्त करवा दिया। पर गवर्नर राज में भी नहीं जीत पाई कांग्रेस। अब मेघालय में गवर्नर के बेजा इस्तेमाल की कोशिश। संगमा ने सोमवार को तीस विधायकों की फिर परेड करवाई। परेड करने वालों में एनसीपी के चौदह। यूडीपी के दस। एक बीमार था। एचएसपीडीपी के दो, केएचएनएएम का एक। बीजेपी का एक। और दो इंडीपेंडेंट थे। तीस एमएलए गवर्नर के सामने पेश हुए। पर गवर्नर सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को बुलाने पर बाजिद। अपन याद करा दें- शंकर दयाल शर्मा ने 1996 में बड़ी पार्टी के नाते वाजपेयी को न्यौता दिया। तो इसी कांग्रेस ने विरोध किया था। फिर 1998 में के आर नारायणन ने बड़ी पार्टी के बावजूद वाजपेयी को तब तक न्यौता नहीं दिया। जब तक बहुमत सांसदों की चिट्ठियां नहीं पहुंची। कांग्रेस ने यही बेशर्मी पहले झारखंड में भी की थी। तब पहले राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से सिब्ते रजी को डांट पड़ी। फिर सुप्रीम कोर्ट से भी डांट पड़ी। बूटा सिंह अपनी मनमानी से कुर्सी गंवा चुके। अब एसएस सिध्दू मनमानी पर बाजिद। सिध्दू पर केंद्र का दबाव। अपनी मारग्रेट अल्वा दबाव डालने शिलांग जा बैठी। पर अपन बात कर रहे थे हॉकी की। ताकि सनद रहे सो बता दें। अस्सी साल पहले 1928 में हॉकी फेडरेशन बनी। यह श्रेय जाता है ग्वालियर को। अपन ने पहले ही साल अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन में गोल्ड मेडेल जीता। तब से 1956 तक अपन छह गोल्ड मेडेल जीत चुके थे। चौंसठ और अस्सी में फिर बाजी मारी। पर अस्सी के बाद तो ग्रहण लग गया। अपन एशियाई कप जरूर 1998 में जीते। चैंपियन चैंलेंज भी 2001 में जीते। पर अस्सी साल में ऐसी हालत तो कभी नहीं हुई। जब अपन ओलंपिक में एंट्री ही न पा सके हों। इतनी शर्मनाक हालत। और एमएस गिल कहते हैं- 'इंस्टेंट कॉफी की तरह काम नहीं हो सकता। हॉकी का पुराना रुतबा लौटने में वक्त लगेगा।' यानी इस्तीफे का इरादा नहीं। जब यह पूछा। तो बोले- 'टीम लौट आए। गलती का पता तो चले। तब बोलूंगा।' अपन ने सेंट्रल हाल में बैठे शरद पवार से कहा- 'आप ही क्यों नहीं संभाल लेते हॉकी भी।' वह बोले- 'बीसीसीआई के कारण ही आप लोग कहते हो- कृषि मंत्रालय ठीक से काम नहीं कर रहा।' उनने कहा- 'मैं बीसीसीआई का चुनाव भी नहीं लड़ूंगा।' अपन ने याद कराया- 'आप बारामती से भी बेटी को चुनाव लड़ाने की बात कह चुके। तो क्या करेंगे।' एक खबरची ने चुटकी ली- 'क्या लंदन जाकर बसेंगे?' वह बोले- 'लंदन क्यों। आईसीसी का मुख्यालय दुबई में है।'
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