पंजाब में अकाली दो बार जीत लिए. तो यह 43 साल बाद करिश्मा हुआ था. अब पंजाब में चुनाव हो रहे . तो आम आदमी पार्टी उम्मींद से है. जब अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सल्तनत छोड मोदी को हराने बनारस गए थे. तो आम आदमी पार्टी सारे देश में उम्मींद से थी. पर जब केजरीवाल-कुमार विश्वास समेत सारे लुढक गए. तब भी पंजाब में तीन आपिए जीत गए थे. सो अब पंजाब में केजरीवाल ज्यादा ही उम्मींद से हैं. उन के हनुमान मनीष सिसोदिया मंगलवार को पंजाब में थे. वह केजरीवाल को पंजाब का सीएम प्रोजेक्ट कर आए. अब कोई माने या न माने. पर पंजाब में अकालियो की वापसी होगी. तो करिश्मा ही होगा. पर करिश्मे हो ही जाते हैं. आखिर 2012 में किस ने सोचा था अकाली वापस आएंगे. पर अकालियो ने 1967-69 के बाद रिकार्ड बनाया. जब अकाली लगातार दूसरी बार जीते. वरना तो पहली नवम्बर 1966 को जब पंजाबी सूबा बना. अपन पहला 1967 का और दूसरा 1969 का चुनाव छोड दे. जब दोनो बार अकाली जीते थे. उस के बाद तो एक बार अकाली. एक बार कांग्रेस का खेल चलता रहा. अपन पंजाब की बात कर ही रहे. तो बंटवारे के बाद का राजनीतिक इतिहास बताते जाए. इंदिरा गांधी ने पजाबी सूबा बना तो दिया . पर अपने जिंदा-जी पंजाबियो को राज कभी नही करने दिया. इंदिरा की हत्या के बाद पंजाब ने राहत की सांस ली. वरना 1966 से 1984 तक के 18 साल में पांच बार राष्ट्रपति राज लगाया. राजीव गांधी के समय तो पूरे पांच साल राष्ट्रपति राज रहा. कांग्रेस जब 1991 में खुद कमजोर हो गई. तब तक पंजाब को चैन नहीं लेने दिया. इंदिरा गांधी ने कभी किसी अकाली सरकार को 5 साल राज नहीं करने दिया. यही बात राजीव गांधी ने भी की. लो अपन जरा खुल कर इतिहास बता दे. पहली नवम्बर 1966 को पंजाबी सूबा बना. तो कांग्रेस का बहुमत था. सो 1967 के चुनाव तक कांग्रेस के ज्ञानी गुरमख सिंह मुसाफिर सीएम रहे. चुनाव के बाद अकाली जीते. जीते तो नहीं खैर तब विधान सभा की 104 सीटे थी. कांग्रेस 38 जीती और अकाली 48 सीटे. भाजपा तब भारतीय जन संघ थी. जन संघ ने जीती 8 सीटे. तो अकाली-जन संघ गठबंधन हो गया. मुख्यमंत्री बने गुरनाम सिंह. पर अकालियो में गुटबाजी हुई . मुख्यमंत्री बदल के बने लक्ष्मण सिंह गिल. 262 दिन गुरनाम चले थे, तो 272 दिन लक्षमण चले. मौका देख इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति राज लगा दिया. छह महीने बाद चुनाव हुए. तो अकाली फिर जीत गए. पर अकाली खुद एक-दूसरे की जडे खोदते रहे. सो पहला एक साल एक महीना गुरनाम सिंह रहे. अकाली विधायको ने उन का तख्ता पल्टा. तो प्र्काश सिंह बादल बने. बादल को इंदिरा गांधी ने टिकने नहीं दिया. एक साल बाद तख्ता पलट दिया. फिर 9 महीने राष्ट्रपति राज रहा.1972 में चुनाव हुए तो कांग्रेस जीती. ज्ञानी जैल सिंह मुख्यमंत्री बने. इमरजेंसी में वही पंजाब के सीएम थे. वह पांच साल सीएम बने रहे. इमरजेंसी हटी. चुनाव हुए तो कांग्रेस का सूपडा साफ हो गया. अकाली-जनता सरकार फिर सत्ता में आ गई. प्रकाश सिंह बादल दूसरी बार सीएम हुए. पर 1980 में मोरार जी सरकार गिर गई. इंदिरा फिर पीएम बन गई. पंजाब और इंदिरा का तो ईंट कुत्ते का वैर था. सो सब से पहले पंजाब में राष्ट्रपति राज लगा. पंजाब की जनता को पता था. अकाली जीता दिए. तो इन्दिरा उन की सरकार चलने तो देगी नही. सो उन ने कांग्रेस को ही जीता दिया. इंदिरा गांधी ने दरबारा सिंह को सीएम बनाया. पर पंजाब में आतंकवाद खडा हो गया. इंदिरा गांधी को फिर अपनी ही सरकार बर्खास्त करनी पडी. अक्तूबर 1983 में जो राष्ट्रपति राज लगा. फिर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सितम्बर 1985 में जा कर चुनाव हुए. अकाली फिर सत्ता में आ गए. सुरजीत सिंह बरनाला सीएम बने. पर आतंकवाद काबू नहीं आया. कोई पौने दो साल बाद फिर राष्ट्रपति राज. इस बार जो राष्ट्रपति राज लगा. वह फिर पांच साल रहा. अपन तब चंडीगढ में ही जनसत्ता में हुआ करते थे. नरसिंह राव के राज में कांग्रेस सत्ता में तो आ गई. पर सत्ता सम्भली नहीं. पांच साल में तीन सीएम रहे. बेअंत सिंह,हरचरण सिंह बरार और राजेंद्र कौर भट्टल. फिर 1997 से अब तक पंजाब में जरूर अमन है. पहले पांच साल 1997 से 2002 तक बादल. फिर 2002 से 2007 तक कांग्रेस के अमरेंद्र सिंह. और फिर 2007 से अब तक बादल. आप ने एक बात नोट की होगी. जब से पंजाबी सूबा बना. पंजाब में सारे सीएम सिख बने. इंदिरा गांधी ने भी कभी किसी हिंदू को सीएम बनाने की हिम्मत नही की. और ये सिसोदिया हरियाणवी केजरीवाल को सीएम प्रोजेक्ट कर आया. अपन से पूछो तो केजरीवाल के पैरो में कुल्हाडी मार आया. कांग्रेस का काम आसान कर आया. पंजाब में अकाली तो आने से रहे. अब पंजाबी हरियाणवी केजरीवाल को आने नहीं देंगे. अपन तो त्रिशंकु एसेम्बली समझ रहे थे. अब आप का तो बंटाधार हो गया. सिखो को गोपी चंद भार्गव , भीम सेन सच्चर , राम कृष्ण ही मंजूर होते, तो संत फतेह सिंह पंजाबी सूबे का आंदोलन ही क्यो चलाते.
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