वैसे इतनी जल्दी भी क्या थी। चौदहवीं लोकसभा का अभी सवा साल बाकी। सवा साल आडवाणी घूमते रहे। तो चुनाव आते-आते यों भी थक जाएंगे। अपन को तो पहले ही अंदेशा था। पता नहीं किस अनाड़ी ने सलाह दी होगी। पीएम-इन-वेटिंग को जरा इंतजार तो करना चाहिए। रैलियां जल्दी हो जाएंगी। तो जल्दी पीएम नहीं बन जाएंगे। अपन ने पाकिस्तान की पीएम-इन-वेटिंग का हाल तो देखा ही। मुशर्रफ भी बेनजीर को समझा-समझाकर थक गए। पर बेनजीर नहीं मानी। रैलियों पर रैलियां करती गई। यह संयोग ही, जो बेनजीर-आडवाणी दोनों सिंधी। दोनों कराची में पैदा हुए। यह भी संयोग। जो दोनों एक ही वक्त पीएम इन-वेटिंग बने।
बेनजीर को जब गोली लगी। तो अपना मन कहता था- बेनजीर बच जाएंगी। आडवाणी भी तब मिनट-मिनट की खबर लेते रहे। आडवाणी को भी लगता था- 'बेनजीर बच जाएंगी।' पर यह अपन सब की दिली इच्छा थी। जो पूरी नहीं हुई। शायद आडवाणी ने बेनजीर से सबक लिया। वरना 1998 में जब कोयंबटूर में धमाके हुए। तो आडवाणी ने अपना रैली अभियान नहीं छोड़ा था। पर 1998 और 2008 में दस साल का फर्क। इन दस सालों में दुनिया बदल चुकी। न्यूयार्क के नाईन-इलेवन ने दुनिया बदल दी। अपनी संसद पर आतंकी हमला हो चुका। अफगानिस्तान-इराक पर अमेरिका का कब्जा हो चुका। जो पाकिस्तान अपने यहां आतंकी भेज रहा था। वह खुद आतंकवाद का शिकार। सो सोमवार की शाम जब अपने एमपी नारायणन ने आडवाणी को समझाया। तो आडवाणी की बात पल्ले पड़ गई। पर आडवाणी और सोनिया में बहुत फर्क। सोचो, नारायणन सुरक्षा का खतरा सोनिया को बताने जाते। तो वह फौरन रैलियां रद्द कर देती। पर आडवाणी ने ऐसा नहीं किया। उनने मंगलवार सुबह कोर कमेटी बुलाई। कोर कमेटी में वही लोग जो अपन 29 दिसंबर को बता चुके। राजनाथ सिंह समेत जो दिल्ली में थे, सब पहुंचे। आडवाणी ने फैसला पंचों पर छोड़ दिया। पंचों ने फैसला किया- 'आज की जबलपुर की रैली तो हो। रामपुर की रैली रद्द की जाए। बाकी का फैसला फिर करेंगे।' अपने वेंकैया नायडू खंडन के मास्टर। उनने आव देखा न ताव। कलकत्ते में कह दिया- 'रैलियां जस की तस रहेंगी।'अपन बताते जाएं। रैलियां देवनगिरे, दिल्ली, रांची, वाराणसी, लखनऊ, बरीपाड़ा, हैदराबाद, चेन्नई, पुणे, रोहतक और जम्मू में तय थी। यों रैलियां तो होंगी। पर एमके नारायणन की सलाह भी नजरअंदाज नहीं होगी। चलते-चलते नारायणन की सलाह बताते जाएं। उनने आडवाणी से कहा- 'एक महीना एहतियात बरतें।' अपन याद करा दें- पिछले हफ्ते ही आडवाणी-मोदी को उड़ाने की नया सुराग मिला। अपने इंटेलीजेंस ब्यूरो ने होममिनिस्ट्री को रपट दी- 'आईएसआई ने दाऊद को आडवाणी-मोदी को उड़ाने की सुपारी दी है।' यों अपने शिवराज पाटिल फाइल दबाकर बैठ जाते, तो बैठ ही जाते। पता नहीं इस बार कैसे मुस्तैदी दिखाई। यों राजनीतिक गलियारों में अलग तरह की चुहलबाजी। कहीं एनडीए के बढ़ते प्रभाव को रोकने की रणनीति तो नहीं। जो नारायणन को आगे कर आडवाणी को रोका। यों आडवाणी से ज्यादा जल्दी अपने मुख्तार अब्बास नकवी को। नकवी ने बाकायदा बीजेपी दफ्तर से रामपुर रथ रवाना किया। अब उस रथ पर फिलहाल आडवाणी तो नहीं चलेंगे। राजनाथ सिंह भले ही चल दें। सुनते हैं रामपुर की रैली रद्द होने से नकवी बेहद खफा। अब भाई लोग नकवी को राजनाथ खेमे से जोड़कर देखें। तो अपन क्या करें। जिस मीटिंग में रामपुर की रैली रद्द हुई। वहां राजनाथ सिंह भी थे। आखिर आडवाणी की सुरक्षा से महत्वपूर्ण कोई चीज नहीं। नकवी की अपनी जयाप्रदा को हराने की हसरत भी। आखिर बेनजीर का उदाहरण बीजेपी आलाकमान के सामने।
आपकी प्रतिक्रिया