अपन लेफ्ट-कांग्रेस की जंग को दो भाईयों की जंग कहें। तो कोई बुराई नहीं। विदेश और आर्थिक नीति पर दोनों भाईयों की तू-तू, मैं-मैं जारी। इसी तू-तू, मैं-मैं में अब प्रणव दा धमकियों पर उतर आए। धमकियां भी ऐसी, पूछो मत। लेफ्टियों की मांद कोलकाता में जाकर बोले- 'एटमी करार सिरे न चढ़ा। तो समस्याएं खड़ी होंगी।' समस्याओं में उनने बताए आर्थिक प्रतिबंध। लेफ्टियों की खिल्ली उड़ाते हुए कहा- 'सत्तर-अस्सी के दशक में कम्युप्टर का विरोध कर रहे थे। अब एटमी करार का।' दादा की बात सोलह आने सही। पर प्रतिबंध तो पहले से मौजूद। अब और प्रतिबंध लगे। तो जिम्मेदार होंगे मनमोहन सिंह।
उनकी गलती का खामियाजा भुगतेगा देश। जब सरकार को सदन में बहुमत नहीं। तो विदेशी करार का हक किसने दिया? यों प्रणव दा की धमकी लेफ्ट को। पर पता नहीं, अभिषेक मनु सिंघवी को दादा का बयान समझ क्यों नहीं आया। पूछा, तो बोले- 'प्रणव दा ने जो भी कहा, वामपंथियों से बनी समझ के आधार पर ही कहा। आखिर करार पर यूपीए-लेफ्ट कमेटी के चेयरमैन।' बात सिंघवी की चली। तो बताएं- उन्हें चिदंबरम-करुणानिधि में छिड़ी जंग भी समझ नहीं आई। बोले- 'कोई मतभेद नहीं। जो भी समस्या होगी। मिल-बैठकर सुलझा लेंगे।' तो अपन बताते जाएं- नागरकोइल में जाकर चिदंबरम कह आए थे- 'करुणानिधि सरकार लिट्टे घुसपैठ रोकने में नाकाम।' इस पर भड़के करुणानिधि बोले- 'कांग्रेस मेरी सरकार गिराना चाहती है। मैं झुकुंगा नहीं। चुनाव का सामना करने को तैयार।' उनने तो सेतुसमुद्रम की अलाइनमेंट बदलने को भी कांग्रेस की साजिश कहा। बात सेतुसमुद्रम की चली। तो बताएं- सरकार अब वैसा हल्फनामा देने को तैयार नहीं। जैसा पहले देकर भद पिटा चुकी। शुक्रवार को केबिनेट में अंबिका-बालू में तू-तू, मैं-मैं हुई। यों अंदरखाते डीएमके नई अलाइनमेंट पर सहमत थी। पर अब चिदंबरम ने करुणानिधि को भड़का दिया। मनमोहन सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्या कहे। समझ नहीं आ रहा। दो बार मोहलत ले चुकी। बात मोहलत की चली। तो बताते जाएं- सोमवार को डी लिमिटेशन वाले मामले की भी तारीख थी। यों तो केबिनेट फैसला कर चुकी। पर सरकार ने फिर दो हफ्ते मांग लिए। अदालत ने भी फिर मोहलत दे दी। पर अपन बताते जाएं- समय काटना मनमोहन सरकार की साजिश। अब फरवरी के आखिर में नोटिफिकेशन होगा। तो कर्नाटक चुनाव छह महीने टलेगा। अपन ने रविशंकर प्रसाद से पूछा। तो वह बोले- 'अनुच्छेद 82 के मुताबिक डी लिमिटेशन के कारण चुनाव नहीं टल सकते।' पर अपने कानून मंत्री भारद्वाज के सामने किताबी ज्ञान नहीं चलता। सो येदुरप्पा की फिक्र बढ़ गई। उनने राजनाथ सिंह से गुहार लगाई- 'कोर्ट में कर्नाटक का ऐंगल रखा जाए।' याद दिला दें- येदुरप्पा यही बात पहले आडवाणी को कह गए थे। तब आडवाणी ने रविशंकर के जिम्मे लगाया। अब राजनाथ जेटली से बात करेंगे। यों पहली पीआईएल भी भाजपाई विजय जौली के दिल्ली स्टडी ग्रूप की। चलते-चलते बताते जाएं। अपने करतार सिंह भड़ाना ने भी एक पीआईएल डाल दी। पर अपन बात कर रहे थे- दो भाईयों में जंग की। लेफ्ट-कांग्रेस हो। या डीएमके-कांग्रेस। पर असली जंग तो महाराष्ट्र के दो ठाकरे भाईयों उध्दव-राज में। जिसका खामियाजा भुगत रहे हैं उत्तर भारतीय। बाल ठाकरे तो बूढ़े हो चुके। शिवसेना को खड़ा रखने का मादा नहीं रहा। उध्दव ठाकरे की बीजेपी से पंगा लेने की औकात नहीं। बीजेपी-शिवसेना गठबंधन रहेगा। तो उध्दव गैर मराठियों पर वैसे तेवर नहीं दिखा सकते। जैसे सत्तर के दशक में बाल ठाकरे ने दिखाए। तब निशाने पर दक्षिण भारतीय थे। बीच में कुछ देर उत्तर भारतीय निशाने पर रहे। पर अब उध्दव की शिवसेना के तेवर ढीले। शिवसेना की ताकत सिर्फ मराठी अस्मिता। राज ठाकरे वही छीनना चाहते हैं उध्दव से। सो दो भाईयों की लड़ाई में पिट रहे हैं बेकसूर उत्तर भारतीय। मौन बैठी है विलासराव सरकार।
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