अपन ने बीजेपी की चुनावी रणनीति तीस दिसंबर को बताई थी। तब से टुकड़ों-टुकड़ों में बीजेपी तीन बार खुलासा कर चुकी। तीसरा खुलासा शुक्रवार को सुषमा ने किया। पर टुकड़ों-टुकड़ों में जो बातें सामने आईं। अपन ने सारी की सारी तीस दिसंबर को लिख दी थीं। उन्हीं में से एक थी- 'पिछले छह चुनावों में जीती 300 सीटों पर निशाने की।' यह खुलासा सुषमा स्वराज ने पंद्रह जनवरी को किया। उन्हीं में से एक थी- 'महिलाओं को टिकट की।' शुक्रवार को यह खुलासा हुआ। सुषमा स्वराज के घर हुई एक ग्रुप मीटिंग को छोड़ दें। तो शुक्रवार को तीसरी मीटिंग आडवाणी के घर हुई। आडवाणी के घर की बात चली। तो याद करा दें- आडवाणी की जब संघ से कुट्टी शुरू हुई। तो संघ के एक खेमे को एतराज इसी बात पर था।
पर यूपी चुनाव के बाद संघ ने अपना दखल छोड़ा। तो आडवाणी को फ्यूचर का पीएम उम्मीदवार भी माना। तब से आडवाणी का घर फिर से राजनीति का अड्डा। पर अपन को भनक लगी- बहुतेरों को अभी यह पच नहीं रहा। आडवाणी की राजनीतिक महारत का जवाब नहीं। जागरण कन्क्लेव में दर्जनों के भाषण हुए। पर अखबारों में सिर्फ आडवाणी को जगह मिली। आडवाणी ने खुद को स्टेट्समैन साबित किया। जब उनने पीएम के चीन दौरे को सफल बताया। विदेशनीति पर राजनीति से परहेज किया। आडवाणी ने जब वाजपेयी को भारत रत्न की सिफारिश की। तो अपन ने इसे राजनीति बताया था। बाद में बहुतेरों ने इसे राजनीति कहा भी। आडवाणी की यह राजनीति महंगी पड़ी। भारत रत्न के दावेदार कुकुरमुत्तों की तरह उग आए। आडवाणी पीएम को लिखी चिट्ठी लीक न करते। तो गंभीरता बनी रहती। आडवाणी ने अपने स्टेट्समैन बनने का सबूत गुरुवार को भी दिया। जब उनने बेंगलुरु में कहा- 'बीजेपी गोवा में सरकार बनाने की दावेदार नहीं।' बेंगलुरु की बात चली। तो बताते जाएं। गुरुवार को जार्ज फर्नाडीस का जन्मदिन धूमधाम से मना। नीतीश कुमार तो नहीं पहुंचे। पर शरद यादव का पहुंचना अहम था। शरद अब संबंध सुधारने लगे। आखिर शरद की निगाह एनडीए के कनविनर पद पर। अटल-जार्ज का इस्तीफा हो। तो नया चेयरमैन-कनविनर बने। शायद यह रास्ता 22 जनवरी से खुले। जब एनडीए की चुनावी रणनीति मीटिंग होगी। पर बात गोवा की। दल-बदल, उठा-पटक से बनी सरकारें ज्यादा देर नहीं चलती। पिछले साल जून में भी जब राजनाथ 21 एमएलए लेकर राष्ट्रपति भवन गए। तब भी आडवाणी खिलाफ थे। आखिर वही हुआ- सभी नाराज एमएलए कांग्रेस खेमे में लौट गए। तो बीजेपी के हाथों के तोते उड़ गए। अब फिर राजनाथ की शह पर राजीव प्रताप रूढ़ी वही खेल करने लगे। आडवाणी ने मना किया। फिर भी रूढ़ी ने शुक्रवार को एनसीपी के तीनों एमएलए से बात की। एनसीपी के एमएलए उसी तरह सरकार बनाने को उतावले। जैसे झारखंड में मधु कोड़ा की सरकार। छोटी एसेंबलियों का हाल देख लो। तीन-तीन एमएलए मिलकर बड़े-बड़े दलों को छकाने लगे। अब कांग्रेस-बीजेपी को सोचना चाहिए। पर दोनों बड़े दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में। अब महिला आरक्षण को ही लो। गंभीर कोई दल नहीं। पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़। अपन बात महिला आरक्षण की ही कर रहे थे। अपन ने तीस दिसंबर को लिखा था- 'बीजेपी इस बार महिलाओं को ज्यादा टिकट देगी।' फिर अपन ने नौ जनवरी को खुलासा किया- 'साठ से पैंसठ महिला उम्मीदवार होंगी।' सुषमा स्वराज ने यह पत्ता शुक्रवार को फेंका। बोली- 'तैंतीस फीसदी महिला आरक्षण तो सिरे नहीं चढ़ रहा। क्यों न चुनाव आयोग का सुझाव मान लिया जाए। राजनीतिक दल महिलाओं को तैंतीस फीसदी टिकट दें।' पहले से हताश सोनिया के सामने नई चुनौती। बजट सत्र में महिला आरक्षण मुद्दा बनेगा। इस बार मुद्दा बीजेपी के हाथ।
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