बुधवार को भी अपनी दिल्ली और दिनों की तरह रही। अभिषेक मनु सिंघवी तेलंगाना-बुंदेलखंड पर उलझे रहे। प्रकाश जावड़ेकर बोफोर्स घोटाले में सीबीआई की कारगुजारी पर। मधु कोड़ा अपनी सरकार बचाने दिल्ली दरबार में घूमते रहे। पिछले हफ्ते अर्जुन मुंडा दिल्ली आए। तो अपन को बता रहे थे- 'झारखंड की गद्दी फिर आ रही है।' यों बिल्लियों की लड़ाई में बंदरों का ही फायदा। पर दिल्ली में राजनीति के अलावा भी बहुत कुछ। कम से कम दो जगह अपनी दिलचस्पी बनी। एक था ताज पैलेस में जागरण कनक्लेव। जहां लाल कृष्ण आडवाणी सभ्यताओं की जंग पर बोले। दूसरा था एसोचम में जीएफसीएच कांफ्रेंस। ग्लोबल फाउंडेशन फॉर सिविलाइजेशनल हारमोनी।
यानी दोनों जगह मुद्दा एक। ताज पैलेस में आडवाणी, जेटली, सिब्बल बोले। तो एसोचम में विजय कपूर, अजीत दोवल, सुभाष चंद्र। विजय कपूर कश्मीर के चीफ सेके्रटरी रहे। बाद में दिल्ली के लेफ्टीनेंट गवर्नर। अजीत दोवल आईबी के चीफ रिटायर हुए। सुभाष चंद्र जी टीवी के चेयरमैन। रिटायर्ड अधिकारियों, वाइसचांस्लरों, उद्योगपतियों का नया ट्रस्ट। फिलहाल आठ मेंबर। ट्रस्ट का इरादा दुनियाभर में ब्रांचें खोलना। सभ्यताओं की जंग रोक सह अस्तित्व पर जोर देना। ठीक यही बात ताज पैलेस में आडवाणी बोल रहे थे। आडवाणी का लब्बोलुबाब था- 'पश्चिम का जमाना जा रहा है। दो दशक तक दुनिया की इकोनामी पर पश्चिम का राज रहा। अब एशिया का जमाना होगा। भारत-चीन दुनिया की पुरानी सभ्यताएं। दोनों दुनिया पर छा जाएंगी।' उनने यह भी कहा- 'एशिया की सभ्यताओं में संस्कृति और अध्यात्म। शांति, मेल-मिलाप, इंसाफ एशियन सभ्यता के खून में। दूसरे धर्मों के लिए सम्मान, सह अस्तित्व और बातचीत से हल निकालने की प्रवृत्ति भी। एशिया दुनिया पर छाएगा। तो सभ्यताओं की जंग खत्म हो जाएगी।' यों उनने एशियाई संस्कृति की तारीफ की। तो उनने फिलिस्तीन, इस्राइल का झगड़ा भी बताया। अफगानिस्तान के गृहयुध्द का जिक्र भी किया। पर इन दोनों जगह तनाव की वजह पश्चिम। उधर एसोचम में अपन ने इराक का सवाल उठाया। आखिर दुनियाभर में सभ्यताओं की मौजूदा जंग की वजह इराक। अमेरिका अपनी फौजें इराक में न भेजता। तो सभ्यताओं की जंग शुरू ही न होती। जब तक अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान में थी। दुनिया ने आतंकवाद के खिलाफ जंग ही माना। पर जब जार्ज बुश ने इराक में धोंसपट्टी दिखाई। संयुक्त राष्ट्र भी अमेरिका को नहीं रोक पाया। तो सभ्यताओं की जंग शुरू हो गई। यह जंग ईसाई और मुस्लिम सभ्यताओं की। इस जंग में जो-जो मुस्लिम देश अमेरिका के साथ। वह भी आतंकवाद का शिकार बनेगा। पाकिस्तान में अपन जो नया आतंकवाद देख रहे। वह उसका सबूत। पर अपन हो सकते थे शांतिदूत। अगर अपन गुटनिरपेक्ष रहते। अमेरिकी फौजें जब इराक में घुसी। तो वाजपेयी सरकार गुटनिरपेक्ष आंदोलन की रहनुमाई करती। यूपीए सरकार ने तो बात और बिगाड़ दी। अब भारत पूरी तरह अमेरिकी खेमे में। यह बात अपन नहीं कह रहे। मंगलवार को रूस के विदेशमंत्री सरगोई लवरोव ने भी कही। जब पूछा गया- 'मनमोहन सिंह रूस आए। तो चार रिएक्टरों के सौदे पर दस्तखत क्यों नहीं हुए।' सरगोई बोले- 'हम पर वाजपेयी सरकार के समय से दबाव था। पर अब यूपीए सरकार ने यू टर्न ले लिया। शायद अमेरिका की तरफ झुकाव के कारण।' अपन ने जीएफसीएच के तीनों रहनुमाओं से पूछा- 'अगर संयुक्त राष्ट्र कुछ नहीं कर पाया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन कुछ नहीं कर पाया। अगर भारत सरकार कुछ नहीं कर पाई। तो भारत की कोई संस्था सभ्यताओं की जंग कैसे रोक लेगी?' तीनों इस सवाल के लिए तैयार नहीं थे। पर जवाब था- 'वियतनाम से अमेरिकी फौजें समाज के दबाव में लौटी थी।' सो जीएफसीएच की कोशिश रुकेगी नहीं। बाईस जनवरी से शुरू होगी। जब अब्दुल कलाम-दलाईलामा दुनिया में शांति के लिए ट्रस्ट का श्रीगणेश करेंगे।
आपकी प्रतिक्रिया