एटमी ईंधन को चीन भी राजी, अब लेफ्ट लाचार

Publsihed: 14.Jan.2008, 20:37

अपने गोपालस्वामी ने तीन राज्यों में चुनावी बिगुल बजा दिया। त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड। तीनों एसेंबलियों की मियाद मार्च में खत्म। पर कर्नाटक में चुनावी बिगुल नहीं बजा। अपने नरेंद्र मोदी सोमवार को पहुंचे तो चेन्नई। पर बात बेंगलुरु की बोले। कहा- 'बीजेपी लोकसभा चुनाव जीतने का श्रीगणेश दक्षिण से करे।' चेन्नई में बीजेपी वर्करों ने मोदी से जीत का मंत्र पूछा। तो वह बोले- 'महिलाओं की अहम भूमिका रही।' सो मोदी तमिलनाडु की बीजेपी को जीत का मंत्र दे आए।

यानी जयललिता से गठजोड़ जीत के दरवाजे खोलेगा। मोदी सीएम बनकर पहली बार चेन्नई गए। तो बुलावा जयललिता का ही था। मकर संक्राति के पोंगल के बहाने गठजोड़ की खिचड़ी पकी। बीजेपी की चुनावी भागमभाग में कांग्रेस कैसे चुप रहे। सो अपने वीरप्पा मोइली ने दिल्ली में मीटिंग की। वह याद है ना- 'पार्टी को भविष्य की चुनौतियों के मुताबिक ढालने वाली कमेटी।' कमेटी में राहुल मेंबर बनें। सो जमकर प्रचार हुआ। जैसे राहुल चुनाव जीतने का मंत्र समझाएंगे। इधर अनुभवी मोइली के साथ अनाड़ियों की टीम। जो तेईस जनवरी को फिर बैठेगी। उधर आडवाणी की चुनावी मैनेजमेंट कमेटी राजनाथ के हवाले। राजनाथ कमेटी की मीटिंग भी पंद्रह जनवरी को। यानी चुनावी तैयारियां शुरू। पर चुनाव रोकने की जद्दोजहद जारी। मनमोहन के चीन दौरे का बड़ा मकसद यही। बारह जनवरी को अपन ने लिखा- 'आईएईए से बात का पीएम के चीन दौरे से सीधा रिश्ता' शिवशंकर मेनन ने अपन को बताया था- 'एटमी करार पर चीन से समर्थन की उम्मीद।' सो दौरे का मतलब साफ था- आखिर यही 'एटमी करार के दो फैसलाकुन महीने' अपन ने जब तेरह जनवरी को यह लिखा। तो उसमें अपन ने बताया था- 'रूस-फ्रांस की तरह चीन भी एनएसजी में सहयोग का वादा करेगा।' व्यापार-सीमा विवाद तो अपनी जगह। पर असली मकसद था लेफ्ट को नकेल डालना। मनमोहन सफल रहे। चीन ने विरोध का रवैया बदल लिया। एटमी करार पर बुश-मनमोहन का पहला बयान आया। तो चीन के हवाले से कहा गया- 'सीटीबीटी पर दस्तखत हों। तभी यूरेनियम दिया जाए।' चीन वाला रुख अपन ने भारत के लेफ्टियों का भी बताया था। पर सोमवार को जब मनमोहन वेन जियाबाओ का बयान जारी हुआ। तो दोनों बातें लिखी मिली। एक तरफ एटमी हथियारों की दौड़ खत्म करने की बात। तो दूसरी तरफ एटमी ऊर्जा पर सहयोग की बात। अब जब रूस और चीन एटमी ऊर्जा पर सहयोग को राजी। तो भारत के लेफ्टिए कैसे और क्यों पंगा डालेंगे। पर लेफ्टिए अपने रुख में बदलाव कैसे लाएंगे। यह अपन को आने वाले दिनों में देखना होगा। अपने मनमोहन तो चीन के सामने पूरी तरह लेटे। पिछले साल अपन ने चीनी कंपनी को बंदरगाह का टेंडर नहीं दिया। वजह थी सुरक्षा। पर लेफ्ट ने कड़ा एतराज जताया था। अब लेफ्ट कोई फच्चर न फंसाए। सो मनमोहन ने चीन की एयरलाईन को चेन्नई में उतरने की मांग भी मान ली। अपन को सुरक्षा कारणों से एतराज था। आखिर चेन्नई में अपना एटमी रिएक्टर। बदले में अपनी जेट एयरलाइंस शिंघाई उतरेगी। याद है- जेट ने सहारा खरीदा। तो सरकार को क्या एतराज था। एतराज था- 'जेट एयरलाइंस के मालिक नरेश गोयल के विदेशी संबंधों पर।' पर अब वही गोयल पीएम के साथ चीन गए। चीन की विस्तारवादी रणनीति पर भी घुटने टेक दिए। ताईवान के मुद्दे पर- वन चाईना पॉलिसी दोहरा दी। तिब्बत पर अपने वाजपेयी ही घुटने टेक आए थे। जाते हुए मनमोहन व्यापार का संतुलन ठीक करने की बात कह गए थे। पर चीन ने तंबाकू के पत्ते खरीदने का लॉलीपाप ही थमाया। अपन ने घुटने टेके। तो टेक ही दिए। एटमी करार के लिए क्या-क्या होगा। चुनाव टालने के लिए क्या-क्या होगा।

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