एटमी करार के दो फैसलाकुन महीने

Publsihed: 12.Jan.2008, 20:39

अपन ने बारह अक्टूबर को लिखा था- 'तो रूस से एटमी करार तोड़ेगा लेफ्ट से गतिरोध। ' हू-ब-हू वही हुआ। मनमोहन सिंह रूस गए। लौटे भी नहीं थे। लेफ्ट ने आईएईए से बात की हरी झंडी दे दी। यह अलग बात। जो रूस से एटमी करार नहीं हुआ। जिस पर लेफ्ट लाल-पीला भी हुआ। तब प्रणव दा ने सफाई दी थी- 'जब तक आईएईए के सेफगार्ड तय न हों। जब तक एनएसजी की हरी झंडी न हो। तब तक किसी से करार का कोई फायदा नहीं।' पर अपन ने बारह अक्टूबर को यह भी लिखा था- 'आईएईए-एनएसजी समझौते तीन महीने ठंडे बस्ते में पड़ेंगे।' सो तीन महीने कुछ नहीं हुआ।

आईएईए से तीन दौर की बातचीत हुई। पर वैसे नतीजे नहीं निकले। जैसा मनमोहन ने प्रकाश करात को वादा किया। पर मनमोहन-सोनिया की रूस-चीन लाइन बरकरार। यह लाइन आईएईए चीफ अल बरदई देकर गए थे। उसी लाइन के तहत अक्टूबर में मनमोहन रूस गए। सोनिया चीन। अब मनमोहन चीन। जनवरी-फरवरी एटमी करार के इम्तिहान की घड़ी। फरवरी से बुश सरकार की उल्टी गिनती शुरू। यों शनिवार को चीन जाने से पहले न मनमोहन ने जुबान खोली। न विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने। पर अपन को मनमोहन-हू जिंताओ के साझे बयान से उम्मीद। रूस-फ्रांस की तरह चीन भी एनएसजी में सहयोग का वादा करेगा। यों जब मनमोहन-बुश एटमी सहयोग का बयान आया। तो चीन की पहली प्रतिक्रिया थी- 'यूरेनियम सिर्फ उसे दिया जाए। जो सीटीबीटी पर दस्तखत करे।' सीटीबीटी की बात चली। तो अपने भारत के आधे लेफ्टियों की लाइन अब चीन जैसी। जब लगा- 'आईएईए से बात सिरे चढ़ जाएगी। तो जाने-माने लेफ्टियों ने एनएसजी से अपील जारी कर दी- भारत को तब तक ईंधन न दिया जाए। जब तक सीटीबीटी पर दस्तखत न करे।' एनएसजी को अपील करने वालों में मेधा पाटेकर जैसे लोग। जो पहले सरदार सरोवर पर अड़ंगा डालकर बैठी थी। अब एटमी ऊर्जा पर अड़ंगा। यों तो अपन भी ऐसे एटमी करार के घोर विरोधी। जिससे अपना परमाणु विस्फोट करने का हक खत्म हो। पर लेफ्टियों का स्टेंड पूरी तरह भारत विरोधी। आप कहेंगे मेधा पाटेकर तो नंदीग्राम में लेफ्ट के खिलाफ खड़ी थी। पर वह लेफ्टियों का मार्क्स-पूंजीवाद का अंदरूनी झगड़ा। पहले लेफ्टियों को रूस-चीन से उम्मीद थी। जब रूस-चीन मनमोहन के साथ होते दिखे। तो लेफ्टियों का मेधा पाटेकर-प्रफुल्ल बिदवई जैसों को आगे कर नया कुचक्र। यह नहीं, तो फिर नंदीग्राम के बाद एटमी करार पर लेफ्ट में दरार की शुरूआत। यों आईएईए-एनसीजी पर दुनियाभर का यही दबाव। बिना सीटीबीटी पर दस्तखत के ईंधन न दिया जाए। शिवशंकर मेनन की मानें। तो शुक्रवार को आईएईए से होने वाली चौथी मीटिंग महत्वपूर्ण। पहली तीन मीटिंगों में दो बातों पर फच्चर। पहला- परमाणु विस्फोट करने पर सप्लाई रोकने वाला। दूसरा- यूरेनियम के भंडारण वाला। बुधवार से इन्हीं दो फच्चरों पर बात होगी। दोनों ही मुद्दों पर मनमोहन ने संसद से वादा किया था। अब आईएईए सेफगार्ड में इसकी झलक न मिली। तो लेफ्ट किस मुंह से हरी झंडी देगा। यों गुजरात-हिमाचल के बाद लेफ्ट के तेवर भी ढीले। पर अपन बात कर रहे थे आईएईए के फच्चर की। आईएईए सेफगार्ड में ऐसी कोई बात शामिल नहीं करेगा। जिससे किसी और देश को ईंधन मांगने का बहाना मिले। सो भंडारण, बिना बाधा सप्लाई कोई मामूली फच्चर नहीं। आईएईए इन पर कैसे राजी होगा। अपन को शक। शक तो प्रणव दा को भी। आखिर मनमोहन इन्हीं दो बातों का लेफ्ट को वादा कर चुके। लेफ्ट ही नहीं, यह वादा संसद से भी किया। सो प्रणव दा ने एक अंग्रेजी अखबार को इंटरव्यू में कहा- 'लेफ्ट को मंजूर नहीं होगा। तो यूपीए सरकार कैसे करेगी करार।'

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