प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की सरकार ने आम आदमी के हित में कितने काम किए, इसका हिसाब-किताब तो अगले चुनावों में ही पता चलेगा। वैसे एक वर्ग का मानना है कि पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात ने अपना फैसला सुना दिया है। इस बड़े तबके के हिसाब से मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी आम आदमी की बात करके सत्ता तक तो पहुंचे पर आम आदमी को कोई फायदा नहीं हुआ। दूसरी तरफ आजादी से पहले के भारत के दो बड़े औद्योगिक घरानों बिड़ला और टाटा ने अचानक आम आदमी की फिक्र करना शुरू कर दिया है।
बिड़ला घराना आईडिया का मोबाइल नेटवर्क आज की युवा पीढ़ी का सबसे लोकप्रिय रिचार्ज कूपन बन चुका है। जबकि जेआरडी टाटा के वारिस रतन टाटा ने मध्यम वर्ग की जेब के मुताबिक छोटी और सस्ती कार मार्केट में लाकर आम आदमी का सपना साकार कर दिया है। टाटा घराने ने लखटकिया कार दिखाकर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को भौंचक कर दिया है। पहले ऐसा माना जा रहा था कि कार दो सीटों वाली होगी और उसका चेहरा-मोहरा बजाज थ्री व्हीलर जैसा होगा। यह भी कहा जा रहा था कि दो थ्री व्हीलरों को मिलाकर एक कार पेश कर दी जाएगी। लेकिन आगे से मैटीज और पीछे से सेंट्रो की तरह दिखने वाली नैनो ने मारुति ही नहीं अलबत्ता हुंडई को संकट में लाकर खड़ा कर दिया है।
रतन टाटा की मातृ भाषा गुजराती है और गुजराती में 'नैनो' का मतलब होता है 'छोटा'। धीरू भाई अंबानी और नरेंद्र मोदी के बाद अब गुजराती नैनो दुनियाभर में लोकप्रिय होगी। रतन टाटा ने चार साल पहले देश को लखटकिया कार का सपना दिखाया था, लेकिन सिंगूर में जमीन का झगड़ा होने के कारण कार का मॉडल आने में ही तीन साल की देरी हो गई। इस देरी की वजह से स्टील और टायर की कीमतों में काफी बढ़ोत्तरी हुई है इसके बावजूद रतन टाटा ने जून से शुरू होने वाली कम से कम पहली बुकिंग एक लाख रुपए में ही करने का ऐलान किया है हालांकि सड़क पर लाते समय आम आदमी को सवा लाख रुपए चुकाना होगा। फिर भी यह बड़ी बात है कि दो सवारी वाले मोटर साईकिल आज पचास-साठ हजार रुपए में मिलते हैं और सर्दी-गरमी, बारिश से राहत देने वाली चार सवारियों वाली कार एक लाख में मुअस्सर होगी। अपना वायदा पूरा करने के लिए रतन टाटा एक कार से सिर्फ चार हजार रुपए का मुनाफा हासिल करेंगे।
अब देश के दो और पुराने औद्योगिक घराने भी आम आदमी की तरफ आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। सब जानते हैं कि बिड़ला परिवार की तरह जमनालाल बजाज परिवार की भी आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका रही है। बिड़ला और टाटा की ओर से आम आदमी की क्रांति शुरू करने के बाद अब बजाज भी जल्द ही छोटी कार मार्केट में लाने जा रहा है। एक समय था जब देश में बजाज स्कूटरों का ही दबदबा था। जमनालाल बजाज परिवार की कांग्रेस से निकटता के कारण जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने किसी अन्य को स्कूटर बनाने का लाइसेंस नहीं दिया। तब कोटा-परमिट, लाइसेंस राज हुआ करता था। कोटा-परमिट, लाइसेंस राज खत्म हुआ, तो कई तरह के स्कूटर, मोटर साईकिल मार्केट में आए। बजाज स्कूटर को तब हीरो साईकिल बनाने वाले मुंजाल परिवार ने पहले स्कूटी मार्केट में उतारकर टक्कर दी और बाद में हीरो होंडा मोटर साईकिल। अब स्कूटर-मोटर साईकिल की औद्योगिक लड़ाई लड़ने वाले बजाज और मुंजाल भी जापानी और कोरियन छोटी कारें लेकर मैदान में कूदेंगे। लेकिन छोटे दुकानदार, रेहड़ी वाले, नाई, मोची, धोबी और यहां तक कि घर में काम करने वाली बाई भी अगले दशक में टाटा, बजाज या मुंजाल की छोटी कार पर सवार होकर काम पर आया करेंगे। अभी भले ही यह हंसी-ठठ्ठे का मुद्दा लगता हो, लेकिन एक दशक पहले जब मोबाइल फोन मार्केट में आया था तो किसी ने सोचा नहीं था कि पान की दुकान में पान की डंडी तोड़ने वाले, रिक्शा चलाने वाले, माल की ढुलाई वाली रेहड़ी चलाने वाले, घर की मेहतरानी, घर का कचरा ले जाने वाले की जेब में मोबाइल होगा।
इस समय देश में पचास लाख कारें और सात करोड़ ऑटो-रिक्शा, मोटर साईकिल और स्कूटर सड़कों पर मौजूद हैं। आधी कारें डीजल का धुंआ उगलकर पर्यावरण को प्रदूषित कर रही हैं, बजाज के ऑटो ने दिल्ली-चेन्नई-कोलकाता जैसे महानगरों को सांस लेने लायक भी नहीं छोड़ा है। आने वाले समय में जल्द ही कम से कम पांच लाख नैनो सड़कों पर होंगी लेकिन पर्यावरणवादियों के लिए यह खुशी की बात है कि रतन टाटा ने मारुति-800 में मौजूद यूरो-3 से कहीं आगे यूरो-4 मुहैया करवाने का वादा किया है। दस जनवरी 2008 को रतन टाटा ने देश को 'नैनो' दिखाकर एक ही झटके में नई क्लास पैदा कर दी है। आम आदमी के नैनों में नैनो का सपना संजोते हुए रतन टाटा ने कम से कम तीन बड़ी हस्तियों पर चुटकी ली। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य के अकुशल प्रबंधन के कारण कार तीन साल लेट आएगी, इसलिए उन्होंने कार का नाम बुध्दू रखने के सुझाव का जिक्र किया। सिंगूर में कारखाना नहीं लगने देने का आंदोलन चलाने वाली ममता बनर्जी के बावजूद कार आ रही है, इसलिए उन्होंने कार का नाम ममता रखने का सुझाव आने का जिक्र भी किया। कार यूरो-4 मानक पर खरी उतरेगी, इसीलिए उन्होंने पर्यावरणविद सुनीता नारायणन का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें फिक्र की जरूरत नहीं। आम आदमी की आंखों में चमक भरने वाला ऐसा सपना जिसके बारे में पांच पेज के लंबे बायोडाटा वाले अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने कभी सोचा भी नहीं था, टाटा घराने ने पूरा कर दिखाया। मनमोहन सिंह की बात तो छोड़िए, कार्ल मार्क्स ने भी हर घर में कार का सपना नहीं लिया था। चार दशक पहले देश में रोटी-कपड़ा और मकान मिल जाए तो जीवन की सारी सुख-सुविधा मिलना मान लिया जाता था। इसीलिए इंदिरा गांधी ने सबको रोटी-कपड़ा और मकान मुहैया करवाने का नारा देकर चुनाव जीता। हालांकि अब भी देश में लाखों-करोड़ों लोग रोटी-कपड़ा और मकान के लिए दिन-रात जद्दोजहद में लगे हुए हैं, लेकिन अब आम मध्यम वर्ग के लिए रोटी-कपड़ा और मकान जिंदगी की जरूरत नहीं होगा, अलबत्ता रोटी-कपड़ा-मकान और एक नैनो एजेंडे में शामिल हो जाएगा।
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