सरकार पर चुनावी झटके का असर दिखने लगा। पर कांग्रेस अपनी जहनियत बदलने को तैयार नहीं दिखती। अपन ने 19 दिसम्बर को लिखा था- 'नगालैंड में कांग्रेसी छेड़छाड़ की तैयारी।' उसमें अपन ने लिखा- 'गुजरात-हिमाचल में लोकतंत्र का कार्यक्रम निपट चुका। अब नगालैंड में लोकतंत्र के क्रियाक्रम की तैयारी।' देर भले ही लगी, पर हुआ वही। मंगलवार को इसी काम के लिए कैबिनेट हुई। मनमोहन सिंह ने वही किया। जिसका हुक्म दस जनपथ से आया। आखिर विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति राज की सिफारिश हो गई। अपनी राष्ट्रपति दिल्ली से बाहर थी। सो देर लगी। गुरुवार को वह काम भी हो गया। रबड़- स्टैंप लग गई।
अपन 19 दिसंबर को ही खुलासा कर चुके। स्पीकर ने दलबदलियों के वोट नहीं गिने। स्पीकर को फैसला लेने का पूरा हक। कोर्ट भी स्पीकर के फैसले में दखल नहीं देता। पर यूपीए सरकार मनमानियों से बाज नहीं आई। गोवा में अपने कांग्रेसी स्पीकर ने बागियों को वोट नहीं डालने दिया। कांग्रेसी सरकार बचा ली। तो स्पीकर का किया केंद्र सरकार को ठीक लगा। पर वही काम नगालैंड के स्पीकर ने किया। तो गिरा हुआ कांग्रेस का अविश्वास मत दिल्ली में बदल गया। तीन सौ छप्पन का दुरुपयोग करने में कांग्रेसी सरकारों की महारत। नगालैंड एसेंबली का टर्म सिर्फ 31 मार्च तक। अपने गवर्नरी राज में चुनावी फायदा हो। इसलिए राष्ट्रपति राज लगा। केंद्र सरकार के ऐसे कदमों से ही पूर्वोत्तर में विद्रोह की चिंगारियां। नगालैंड के मामले में कांग्रेसियों का सत्ता का नशा साबित हुआ। यों ऐसी बात भी नहीं। जो यूपीए सरकार ने सबक न सीखा हो। कांग्रेस ने नहीं सीखा, यह अलग बात। जहां तक बात यूपीए सरकार की। कैबिनेट की कमेटियों ने गुफ्तगू शुरू कर दी। यों महंगाई पर आठ जनवरी को गुफ्तगू होगी। पर बाकी जनविरोधी फैसलों पर फिर से विचार शुरू। जैसे सेज नीति को ही लो। गोवा में सेज के खिलाफ बवाल शुरू हुआ। तो वहां की सरकार ने सारे सेज रद्द करने की सिफारिश की। सेज का खेल बहुत लंबा। मंजूरी होते-होते दर्जनों की जेब गरम। सो सेज इतनी जल्दी रद्द भी नहीं होंगे। गोवा की सिफारिश पर केंद्र ने नाक-भौंह सिकोड़ी। पर गोवा के सीएम दिल्ली आ धमके। तो यूपीए सरकार को फिर से विचार करना पड़ा। गुरुवार को अपने कमलनाथ बोले- 'सेज के मामले में फूंक-फूंककर कदम रखेंगे। फिर से विचार पर हर्ज नहीं।' यानी वोट बैंक खिसकेगा, तो नोटिफिकेशन भी वापस होगा। गुरुवार को सिविल एविएशन का जीओएम बैठा। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी भी बैठी। डी लिमिटेशन यानी परिसीमन पर गुफ्तगू हुई। कांग्रेस का इरादा डी लिमिटेशन पर चुनाव कराने का नहीं। पर बीजेपी की तैयारी डी लिमिटेशन के मुताबिक। अब मामला कोर्ट में। आखिर नार्थ-ईस्ट को छोड़ बाकी राज्यों का काम पूरा। अब तो कोर्ट ने नार्थ-ईस्ट के काम पर लगी रोक भी हटा दी। सो कांग्रेस मुश्किल में। सात जनवरी को कोर्ट में क्या रुख हो। इस पर सीसीपीए में विचार हुआ। पर अपन बात कर रहे थे आम आदमी से जुड़े फैसलों की। गुजरात-हिमाचल में आम आदमी ने सबक सिखाया। तो खुदा याद आया। वह शे'र है ना- 'दिया जब रंज बुत्तों ने, तो खुदा याद आया।' सो अब महंगाई पर भी आम आदमी का फिक्र होगा। यों महंगाई की बात चली। तो बताते जाएं- यूपीए सरकार के सामने पेट्रोलियम पदार्थो की कीमत का नया संकट। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत सौ डालर बैरल पार कर गई। अपनी तेल कंपनियां पहले से सत्तर हजार करोड़ के घाटे में। पेट्रोल-डीजल की कीमत न बढ़ी। तो कंपनियों का बंटाधार होगा। कीमतें बढ़ी, तो लेफ्ट का लाल झंडा उठेगा।
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