दुनियाभर में बड़े दिन का खास महत्व। ईसू मसीह का जन्म हुआ। तो अपने यहां भी बड़े-बड़े नेता हुए। मदन मोहन मालवीय से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक। अपन दूर न जाएं। तो मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म भी बड़े दिन हुआ। यों अपन सुनामी याद कर लें, तो बुरी बात नहीं। तीन साल पहले बड़े दिन से पहली रात मनहूस साबित हुई। पर बात इस पच्चीस दिसम्बर की। अपने अटल बिहारी 84 के हुए। तो उनके घर पर भीड़ उमड़ पड़ी। वाजपेयी का यह जन्मदिन खास उत्साह से मना। इधर वाजपेयी के घर भीड़ उमड़ी। उधर नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण पर भीड़ उमड़ी। यों मोदी की जीत बहुतेरों को रास नहीं आई।
मीन-मेख निकालना जारी। कांग्रेस तो हार मानने को तैयार नहीं। वीरप्पा मोइली बोले- 'मोदी एक्सीडेंटल जीत गए।' वैसे यह एक्सीडेंट देश के साथ 2004 में हुआ। तब से विकास की गाड़ी रुक गई। पर बात मोदी के शपथ ग्रहण की। जैसी अपन को उम्मीद थी, वैसा ही हुआ। मोदी के शपथ ग्रहण पर अपने नवल किशोर शर्मा छा गए। मोदी ने झुककर सम्मान दिया। तो पंडित जी ने कंधा थपथपाकर आशीर्वाद दिया। सिर्फ इतना काफी नहीं था। उनने एनडीए नेताओं को गले लगाया, हंसी-ठठ्ठा किया। मुरली मनोहर जोशी सेगले मिले। शेखावत-वसुंधरा से आत्मीयता दिखाई। पंडित जी का आशीर्वाद नकली नहीं। गुजरात से देश की राजनीति फिर पलटा खाएगी। भले ही झेंप मिटाने को मीडिया का एक खेमा कहता फिरे- 'बीजेपी नहीं जीती, मोदी जीते।' पर मोदी को घमंडी कहने वाले शर्मसार हुए होंगे। जब मोदी ने पहले जनता का झुककर अभिवादन किया। फिर खुली जीप पर चढ़कर जनता के बीच गए। नजारा रोड-शो जैसा लगा। फर्क बस इतना लगा। सोनिया-राहुल के रोड-शो पर कांग्रेस भीड़ जुटाती रही। मोदी के रोड-शो पर भीड़ खुद-ब-खुद उमड़ी। अपन को बीके हरिप्रसाद याद आ गए। जो बोले- 'गुजरात में संगठन नहीं था। सो रोड-शो पर उमड़ी भीड़ वोट में नहीं बदल सकी।' पर यह सच को छुपाने की कोशिश। भीड़ तो कांग्रेसी ही जुटाते रहे। बात मोदी के रोड-शो की चली। तो मोदी की जीत से जले-भुने बैठे एक चैनलीय खबरची ने नया विवाद छेड़ा। कहा- 'मोदी ने खुद को आडवाणी से बड़ा बताया। खुद आडवाणी से आगे खड़े हुए। पीछे की सीट पर आडवाणी को खड़ा किया।' खबरचियों की ऐसी-ऐसी टिप्पणियों पर अपन तो हैरान-परेशान। जनर्लिज्म का यह दिन भी देखना था। कौन नहीं जानता- जश्न तो मोदी का था। ड्राइवर के साथ वाली एक सीट पर दोनों कैसे खड़े होते। पिछली दो जनों की सीट पर तीन कैसे खड़े होते। सब कुछ प्रोटोकॉल के मुताबिक हुआ। सीएम ड्राइवर के साथ आगे खड़े थे। आडवाणी-राजनाथ पिछली सीट पर। उसके पीछे पुरुषोत्तम रूपाला और अपने ओम माथुर। चुनावी बागडोर रूपाला-माथुर के हाथ थी। आडवाणी की बात चली। तो बताते जाएं। एक और खबरची ने अपनी खुन्नस निकाली। बोला- 'मोदी ने शेखावत के पांव छुए। आडवाणी के नहीं।' पर आडवाणी के साथ जितनी आत्मीयता से मिले। गले लगे, वह खबरची को नहीं दिखा। बॉडी लेंगवेज की जनर्लिज्म में अपन को तो अब खुन्नस झलकने लगी। पर बात हो रही थी गुजरात के असर की। तो सबसे पहला असर महाराष्ट्र में दिखने लगा। पवार ने बाल ठाकरे का रुख अचानक क्यों किया। नारायण राणे अचानक दिल्ली क्यों आ धमके। आने वाले तूफान की आहट अपन को तो होने लगी। अभी हिमाचल के नतीजों का इंतजार कीजिए। चुनाव आयोग ने भी बकरा किस्तों में वाली बात कर दी। एक ही साथ झटका लगा देता, तो जान छूटती। बात हिमाचल की चली। तो बता दें- वीरभद्र एसेंबली की टर्म पूरी होने तक कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं। आखिर यह बात आई क्यों। हार को लेकर पूरा यकीन होगा। तभी तो यह बात आई।
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