बुधवार को मनमोहन-मोदी आमने-सामने हुए। तो मोदी के तीर नहीं झेल पाए मनमोहन। यह हुआ एनडीसी यानी राष्ट्रीय विकास परिषद की मीटिंग में। मीटिंग का मकसद था- ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना को मंजूरी। मनमोहन-मोदी में तू-तू, मैं-मैं किस बात पर हुई। वह बाद में बताएंगे। पहले मीटिंग के एजेंडे की बात। योजना का ड्राफ्ट तैयार था। उसमें हेर-फेर की गुंजाइश ही नहीं थी। फिर भी सारे सीएम मनमोहन-मोंटेक-चिदंबरम के बहरे कानों तक आवाज पहुंचाने में जुटे। नीतीश कुमार बोले- 'नदियों को जोड़कर बिहार को बाढ़ से बचाएं। नेपाल के साथ समझौता न हो। तो कम से कम भारतीय नदियां तो जोड़िए।'
पर कांग्रेस तो यह प्रोग्राम स्वाहा कर चुकी। सो आंध्र के सीएम राजशेखर रेड्डी नदियों को जोड़ने के खिलाफ बोले। नदियों को जोड़ने की बात तो दूर। वाजपेयी की सड़कों का जाल बिछाने वाली स्वर्णिम चतुर्भज योजना भी बंद। पर अपन को तब हंसी आई। जब एनडीसी मीटिंग में चिदंबरम ने सड़कों की हालत पर घड़ियाली आंसू बहाए। उनने तीन मुद्दों पर जोर दिया। पहला-'पीडीएस' दूसरा- 'एक्सपोर्ट' तीसरा- 'इंफ्रास्ट्रक्चर।' चिदंबरम की पीडीएस राम कहानी सुनेंगे। तो लेफ्टिए डंडा लेकर पीछे पड़ेंगे। बोले- 'पूरी दुनिया में खुराक महंगी होने लगी। सस्ता खाना अब बीते जमाने की बात। पीडीएस सिस्टम गले का फंदा बन चुका। गरीबों तक अनाज पहुंचता नहीं। बिचौलिए माल-ओ-माल। केंद्र तीन रुपए पैंसठ पैसे भेजती है। तो गरीब तक पहुंचता है एक रुपया। अट्ठावन फीसदी पीडीएस का अनाज गरीब तक नहीं पहुंचता।' भले ही चिदंबरम ने गरीबों के लिए आंसू बहाए। पर असली इरादा पीडीएस खत्म करने का। अब दूसरी बात सुनिए। बोले- जबसे रुपया डालर के मुकाबले मजबूत हुआ। तब से एक्सपोर्टर मुश्किल में। राज्य सरकारें एक्सपोर्टरों को रियायत दें। तो बात बने। यानी अब एक्सपोर्ट-इमपोर्ट की मुश्किल भी स्टेट संभालें। राज्यों की मुश्किलों का बखान अपनी वसुंधरा ने खूब किया। उनने तो ताल ठोककर कहा- 'यूपीए सरकार जिस रास्ते पर चल पड़ी। उससे संघीय ढांचा बर्बाद होने के कगार पर।' वसु-चिदंबरम में हुई आंकड़ेबाजी की लड़ाई देखिए। चिदंबरम बोले- 'ग्यारहवीं योजना में राज्यों को केंद्र से मिलेगा 3,24851 करोड़।' वसु बोली- 'यह आंकड़ेबाजी छलावा। केंद्र की सीएसएस, एसीए, एससीए योजनाओं का बजट निकालें। तो असली केंद्रीय मदद होगी सिर्फ 1,11000 करोड़।' शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, कृषि, सिंचाई सब इसी में से। पर बात चिदंबरम के तीसरे एजेंडे की। तीसरा एजेंडा इंफ्रास्ट्रक्चर का। तो बोले- 'राज्य सरकारें इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाएं। तभी पॉवर प्लांट लगेंगे।' उनने याद दिलाया- दसवीं योजना में 41,110 मेगावाट बढ़ाने का टारगेट था। पर बिजली बढ़ी सिर्फ 21,080 मेगावाट। अब लक्ष्य 78,577 मेगावाट बढ़ाने का। सड़कें बनेंगी, जमीन-पानी का बंदोबस्त होगा। तभी तो कोई पॉवर प्लांट लगाने आएगा। यानी चुनावी साल में बड़े धंधे-पानी की तैयारी। पर असली बात मोदी-मनमोहन की। यों मोदी ने पहल की। पर सारे भाजपाई सीएम बोले एक ही जुबान में। सबने मोदी की लाइन पकड़ी। अलबत्ता सब लिखकर ही लाए थे। ताकि कोई रह न जाए। सो राजनाथ सिंह ने मंगल की रात को भी याद कराया। सो अपने शिवराज-वसुंधरा-रमण और खंडूरी भी मोदी की लाइन अपनाते दिखे। सबने निशाना साधा- बजट में अल्पसंख्यकों को आबंटन पर। अपन याद दिलाते जाएं। मनमोहन गुजरात में बोले थे- 'संविधान में सबको बराबरी का हक। पर गुजरात में भेदभाव।' मोदी ने बुधवार को मनमोहन पर पलटवार किया। बोले- 'जरा अपने गिरेबान में झांकिए। बजट का भी सांप्रदायिकरण कर दिया।' चोर की दाड़ी में तिनके वाली बात थी। सो मनमोहन के साथ मोंटेक सिंह भी पसीन-ओ-पसीन हो गए। मोंटेक सिंह ने भी सफाई दी- 'अल्पसंख्यकों के लिए बजट वादे के मुताबिक। यूपीए का वादा था- सबका एक समान विकास।' मनमोहन बोले- 'बजट सांप्रदायिक आधार पर नहीं। अलबत्ता जो पिछड़े रह गए, उन्हें बराबरी पर लाने का। अल्पसंख्यकों की बेहतरी किसी और की कीमत पर नहीं।'
आपकी प्रतिक्रिया