अपनी सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को नोटिस दिया। तो जयंती नटराजन बाग-ओ-बाग हो गई। बोली- 'अदालत पहले भी कई बार मोदी की निंदा कर चुकी। फासिस्ट मोदी गोधरा की लाशों पर सवार होकर सत्ता में पहुंचे।' लाशों की राजनीति पर अपने जावड़ेकर बोले- 'लाशों की राजनीति में कांग्रेस की महारत।' उनने याद कराया 1984 का चुनाव। उनने याद कराया 1991 का चुनाव। बात 1984 की चली। तो बता दें- बुधवार को अपने सिध्दू भाजी ने अमदाबाद में मनमोहन को 84 के दंगे याद कराए।
पर बात सुप्रीम कोर्ट की। कोर्ट ने मोदी के वकीलों की दलीलें नहीं सुनी। दलीलें थीं- 'चुनाव के दौरान दिए भाषणों का नोटिस न लिया जाए। कम से कम चुनाव के दौरान नोटिस दिया। तो चुनाव प्रभावित होंगे। आयोग के पास फैसला अभी लंबित।' पर कोर्ट में सेक्युलरिज्म के ठेकेदारों ने मोदी को घेरा। ऐसे घेरा, जैसे मोदी अभिमन्यु हों। जावेद अख्तर ने एफआईआर दायर कराने की मांग रखी। सीबीआई से जांच कराने की मांग भी हुई। किसी और प्रदेश में ट्रायल की मांग भी रखी। पर अदालत ने फिलहाल मोदी को सिर्फ नोटिस दिया। तो प्रकाश जावड़ेकर बोले- 'आतंकवाद पर मोदी-सोनिया की राजनीतिक बयानबाजी अदालती जांच के दायरे में नहीं आती।' यों अदालत का नोटिस सिर-माथे। पर जब चुनाव चल रहा हो। तो अदालत दखलअंदाजी नहीं करता। अदालत की बारी आयोग का काम खत्म होने के बाद। अब जैसे चुनाव आयोग को जवाब गया। वैसे अदालत को भी चला जाएगा। जब चार हफ्ते बाद अदालत में जवाब जाएगा। तब तक नतीजे आ चुके होंगे। बात नतीजों की चली। तो पहले जयंती नटराजन की बात। बोली- 'मोदी हार रहे हैं। कांग्रेस आ रही है। इस बार तो वाजपेयी भी मोदी के साथ नहीं। वाजपेयी ने हिमाचल में तो अपील जारी की। पर गुजरात में नहीं की।' अपन ने ओम माथुर से पूछा। तो वह ठहाका लगाकर हंसे। बोले- 'कांग्रेस की खाम-ख्याली का जवाब नहीं।' बात खाम-ख्याली की चली। तो याद कराएं। मनमोहन सिंह ने कहा था- 'बीजेपी ने मोदी से डरकर आडवाणी को पीएम का उम्मीदवार बना दिया।' मनमोहन की इस खाम-ख्याली पर आडवाणी भी हंसे। बोले- 'मुझे पीएम के बयान पर हैरानी हुई। इससे सिर्फ यही दिखाई देता है- कांग्रेस गुजरात में मोदी से मुकाबला नहीं कर सकती। मोदी फिर जीतकर आएंगे।' बात तो सही। मोदी ताकतवर होंगे। तभी तो पीएम पद के दावेदार होंगे। ताकतवर तो तभी होंगे, जब जीतेंगे। इसी बात पर जयंती नटराजन फंस गई। तो बोली- 'चुनाव नतीजों के बाद मोदी खाली होंगे। बीजेपी की परंपरा- जो सीएम हारे। वह केंद्र में आ जाता है। राजनाथ सिंह यूपी हारे। तो केंद्र में मंत्री बने थे।' कांग्रेस की टिप्पणियां हंसी-ठठ्ठे का बायस बन गई। जब एक खबरची ने पूछ लिया- 'मोदी हार जाएं, तो क्या आडवाणी को दावा छोड़ देना चाहिए?' यों अपन को तो वी एन गाडगिल के बाद कोई प्रवक्ता गंभीर नहीं लगा। बाकी खबरची भी यही सोचते होंगे। अपन को नहीं लगता था। पर बात हो रही थी चुनाव नतीजों की। ओम माथुर से अपन ने बुधवार को भी पूछा। शुरू-शुरू में किया गया दावा कई बार खाम-ख्याली ही होता है। पर वह बोले- 'मेरे दावे में कोई बदलाव नहीं।' राजदीप सरदेसाई बोले थे- 'कोली जाति ने मोदी विरोधी वोट किया। इसलिए सौराष्ट्र में भारी बदलाव होगा।' योगेन्द्र यादव बोले- 'ज्यादा मतदान मोदी को नुकसान पहुंचाएगा।' बात आईबीएन 7 के सरदेसाई की चली। तो याद आ गया एचटी सम्मेलन। जहां मोदी ने उन्हें अपना कट्टरविरोधी घोषित किया था। सो इस बार खबरिया चैनलों ने फूंक-फूंककर कदम रखा। ज्यादातर चैनलों का आंकलन भी मोदी के जीतने का। एनडीटीवी को छोड़कर। जिनने मोदी को अभिमन्यु की तरह घेरने में कसर नहीं छोड़ी।
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